आपको बताना चाहती हूँ कि पूरी दुनियाभर में किसी कोने में गयी हूँ, किसी भी अनजान, साधारण, असाधारण व्यक्ति से मिली हूँ, और कहा है कि मैं भारत से हूँ तो पहचानी गयी हूँ दो बातों से, गाँधी और ताजमहल। एक शांति, अहिंसा का प्रतीक। दूसरा प्रेम का प्रतीक। यहाँ आशय प्रतीकात्मक महत्व से है।
मैं आज अब भी जब सोचने बैठती हूँ कि कैसे गाँधी ने सोचा होगा इस विचारधारा पर। करुणा, अहिंसा, सत्याग्रह से क्या हो सकता है ये सामान्य व्यक्ति के सोच में भी ना समाये। इतने हानिरहित कोमल प्रतीत होने वाले विचार लेके कैसे कोई इतना महत्वकांक्षी हो सकता है जो विश्व के सबसे शक्तिशाली कोने कोने को चपेट में लिए अंग्रेजी साम्राज्य को चुनौती देने की सोच सकता है, पराजित करना तो और भी असंभव लक्ष्य है।
गाँधी की विचारधारा ने एक नहीं दो देशों( भारत और दक्षिण अफ्रीका) को इतने शक्तिशाली साम्राज्य की दासता से छुड़ाया। दो देशों की स्वतंत्रता ऐसी विचारधारा से? आज भी आश्चर्य और अविश्वास से मन भर आता है। फिर जब भी मैं देखती हूँ अपने, दूसरे के देशों में अधिकारों और न्याय के लिए लड़ते, मुझे हर जगह गाँधी दिखते हैं। चाहें वो देश के किसान आंदोलन कर रहे हों। चाहें नन्हीं सी ग्रेटा थनबर्ग पृथ्वी और पर्यावरण को बचाने के लिए विश्व भर में मुहीम चला रही हों।
सोचिये ये कितने कमाल की बात है कि आज हर आवाज़ और बात उठाने के लिए गाँधी बनते हैं लोग। उससे भी कमाल की बात है ये विधि काम कर जाती है। और भी कमाल की बात यह है कि गाँधी से पहले यह आइडिया या विचार किसी को नहीं आया था। आता भी कैसे? कैसे कोई सोच ले कि ये संभव है कि निहत्थे आवाज़ और अधिकार की बात करना मुमकिन है सबसे क्रूर अन्यायी निरंकुश शक्तियों के विरुद्ध?
गाँधी की आप बुराई कर सकते हैं। कोई मनुष्य सम्पूर्ण नहीं होता। सबसे बड़ी बात गाँधी ने कभी ख़ुद को सम्पूर्ण नहीं कहा। बचपन में मैंने उनकी लिखी किताब ‘My Experiments with Truth’ ( सत्य के साथ मेरे प्रयोग) पढ़ी थी। पढ़ते हुए लगा कि गाँधी अलौकिक नहीं विश्वसनीय है।
अपने जीवन में किये गये कामों को ‘धर्म’ नहीं ‘प्रयोग’ पुकार रहे हैं। और उनके प्रयोग उदाहरणों और परिणामों का विश्लेषण कर के थोड़े सुधार के साथ फिर नये रूप में किये गये। स्वयं को सम्पूर्ण या भगवान स्वरूप ना मानना और निरंतर सीख कर नया करके आगे बढ़ने वाले को सम्पूर्ण ना होने का आरोप लगा कर आलोचना करना मेरी समझ से बाहर है। दूसरी बात जो महत्वपूर्ण हैं वो यह है कि गाँधी को व्यावहारिकता की बहुत ठोस समझ थी। और इसीलिए उनका अहिंसा का असंभव और अविश्वसनीय विचार पनपा और आज विश्व व्यापक है।
एक बात जो गाँधी के विरोधियों के लिए कहूँगी। कि गाँधी का विरोध आपका उतना सच्चा नहीं है जितना आपको लगता है। वही गाँधी के कट्टर विरोधियों को जब देश में किसी विरोध के स्वर में एक पत्थर भी फेंक दें तो गलत लगता है।
आप कहते हैं शांति से आवाज़ उठानी चाहिए। बंदूक उठा ले तो ख़ैर आप उसे अपराधी ही कहेंगे। इतना विरोधाभासी विरोध मेरी समझ नहीं आता। उन्हीं गाँधी के विरोधी और गोडसे को पूजने वालों से पूछूंगी कि देश से एक कदम बाहर निकलते ही क्यूँ गाँधी के नाम का भाषण देना पड़ता है? क्यूँ गाँधी की तस्वीरों के सामने सर झुकाते हैं दूसरों की दिखाने को? क्यूँ चरखा चला के बताते हैं? क्या गोडसे को पूजने वाले अपने बच्चे को गोडसे की तरह हत्यारा बनाना चाहेंगे? नहीं, पता है मुझे। क्या वो चाहेंगे कि उनके बच्चे गोली बंदूक उठा कर किसी की हत्या मारपीट के रस्ते पर चलें? नहीं, पता है मुझे।
गाँधी के विचार इतने बड़े हैं कि गाँधी और भारत एक दूसरे का पर्याय हैं।
सारा विश्व आश्चर्यचकित था और है उनके विचारों और विचारों की सफलता पर। उनके विचार नया आविष्कार थे उस समय। आज भी हर कोने कोने में गाँधी जिंदा हैं क्यूँकि वो जो अर्थ दे गये हैं लड़ाई का, विद्रोह का वो किसी की कल्पना से परे था। मानवजाति के इतिहास में ऐसा विद्रोह, अधिकारों की मांग, आंदोलन कभी नहीं हुआ था। गाँधी व्यक्ति नहीं विचार हैं। हमेशा जीवित रहेंगें, हमेशा प्रासंगिक रहेंगे।
गाँधी का कद इतना बड़ा है कि उसे घर के अंदर बैठ कर आंकना मुश्किल होगा आपके लिए, उसके लिए आपको बाहर निकलना होगा। गाँधी के अलावा कोई और व्यक्ति कभी भी विश्व में घर घर की सूक्ति नहीं बन पाया।