जामिया मिल्लिया इस्लामिया का क़याम अस्ल में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एंगलो मुहम्मदन कालेज) के रद्द ए अमल के तौर पर हुआ था। ऐसे बहुत सारे स्टूडेंट और दूसरे लोग थे जिन का ख़याल था कि एक ऐसा तालीमी इदारा क़ायम किया जाए जिस में हुकुमत का कोई अमल दख़ल न हो। इसी मक़सद के तहत डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन हकीम अजमल खां वग़ैरह की कोशिशों से जामिया का क़याम 1920 में अलीगढ़ में अमल आया।
जामिया के तमाम ख़र्च खिलाफ़त कमेटी उठाती थी लेकिन जब 1924 में खिलाफत तहरीक ख़त्म हो गई तो जामिया को पैसे की दुश्वारी होने लगी। कुछ मुस्लिम लीडरों और तालिब इल्मों का ख्याल था कि जामिया को बंद कर दिया जाए। सिर्फ़ गांधी जी और हकीम अजमल ख़ां ही ऐसे थे जो जामिया को जारी रखने के लिए मुस्तैद थे। गांधी जी ने ये भी कहा कि अगर कोई मुस्लिम लीडर जामिया की ज़िम्मेदारी ले ले तो जामिया चलाने का एक साल का ख़र्च मेरी तरफ से होगा। ये 1925 की बात है।
1926 में ज़ाकिर हुसैन साहब जर्मनी से तशरीफ़ लाए और गांधी जी से साबरमती आश्रम में मिलने गए। गांधी जी कहना था कि जामिया को चलाने के लिए सिर्फ मुसलमानों से चंदा लिया जाए अगर हिन्दू भी चंदा देंगे तो उस से जामिया की अहमियत मुसलमानों के नजदीक कम हो सकती है। इसलिए गांधी जी खुद भी जामिया के तमाम कामों से दूर रहे। सिर्फ ज़ाकिर हुसैन और हकीम अजमल खां को ही जामिया की जिम्मेदारी देने की वकालत करते रहे।
एक मर्तबा गांधी जी के एक साथी ने ये मशविरा दिया कि अगर जामिया मिल्लिया इस्लामिया से ‘इस्लामिया’ लफ्ज़ हटा दिया जाए तो ज़्यादा चंदा मिल सकता है। गांधी जी ने इस मशविरे की सख्त मुख़ालफ़त की और कहा कि अगर ऐसा हुआ तो वो खुद को इस इदारे से अलग कर लेंगे।
47 में जब दिल्ली में दंगे हुए तो गांधी सितम्बर में दिल्ली आए स्टेशन पर उतरते ही पूछा कि क्या ज़ाकिर हुसैन महफ़ूज़ हैं? क्या जामिया महफ़ूज़ है?
गांधी जी को जामिया से दिली लगाव था इसीलिए उन्होंने अपने बेटे देवी और एक शागिर्द रामचंद को जामिया की खिदमत करने भेजा और अपने पोते रसिक को जामिया में पढ़ने भेजा।
गांधी जी के लिए जामिया एक घर की तरह थी जब दिल चाहा जामिया आ जाते। उनके आने पर न कोई प्रोग्राम होता न कोई खर्च यूँ भी गांधी बिना बताये ही जामिया तशरीफ़ लाते थे।
गांधी इस बात के हिमायती थे कि माइनॉरिटी के अपने आज़ाद तालीमी इदारे हों और ये इदारे मुल्क को मज़बूत करने में एक अहम किरदार अदा करेंगे इसीलिए गांधी जी जामिया की तरक़्क़ी और इसके बक़ा के लिए हमेशा कोशिश करते रहे।