नियोगी ने शोषण मुक्त , जाति मुक्त , वर्ग भेद मुक्त जिस छत्तीसगढ़ का सपना देखा था उसका ताना बाना बुनना तक औरों के लिए मुश्किल काम रहा है। नये छत्तीसगढ़ का सपना उनके लेखे पानी का बुलबुला या हवा में छोड़ा गया कोई गुब्बारा नहीं था जो असलियत की जमीन पर गिर कर गायब हो जाए। नियोगी एक स्वप्नशील व्यक्ति थे और अमरता के इतिहास में कोई महापुरुष स्वप्नशील हुए बिना न तो संघर्ष कर सकता है और न ही शहीद हो सकता है।
उनका रचनात्मक सपना इतिहास की भीत पर आधारित था। छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाके में शंकर गुहा नियोगी ने अतीत की बीहड़ गहराइयों में डूब कर सोनाखान के जमींदार नारायण सिंह को ढूंढकर निकाला जिन्होंने 1857 के स्वाधीनता संग्राम के एक बरस पहले अंग्रेजों को चुनौती दी थी और वह भी आर्थिक सवालों पर।
इतिहास की गुमनामी में दफ्न नारायण सिंह को एक मिथक पुरुष बनाकर शंकर गुहा नियोगी ने समकालीन संघर्ष का ऐसा आदर्श बनाया जिसके झंडे तले छत्तीसगढ़ के पिछड़े वर्गों के लोग अनथक संघर्ष करते रहें। नियोगी में जबरदस्त इतिहास बोध था और उनका भविष्य का सपना कोई लुंजपुंज कल्पना लोक नहीं था। वह राजनीति और ट्रेड यूनियन की ऊबड़-खाबड़ धरती पर रोपा हुआ बबूल का बिरवा है जिसे ऐयाश पूंजीपतियों , भ्रष्ट नौकरशाहों और अवसरवादी राजनीतिज्ञों के आंगन में रोपे गये गुलाब के पौधों की परवाह नहीं रही।
कामरेड नियोगी के नये छत्तीसगढ़ का सपना एक तरह से अब सपना नहीं है। वह उस प्रक्रिया की पहली मंजिल में है जहां सपने यथार्थ में बदल जाते हैं। इस सपने में वे वैचारिक अणु छिपे हैं जिनका प्रजातांत्रिक विस्फोट तो होगा। नियोगी का जीवन हम सबके लिए खुद एक सपने की तरह है। वह एक ऐसी जलती हुई मशाल की तरह है जिसके बुझ जाने पर फिलहाल अंधेरा अट्टहास कर रहा है कि मैंने रोशनी को निगल लिया परन्तु अंधेरे को क्या बात मालूम है कि मशाल की रोशनी उस वक्त बुझती है जब सूरज उगने को होता है।
कामरेड शंकर गुहानियोगी, छत्तीसगढ़ की धरती में दफ्न हुए लगभग सबसे जुझारू, संघर्षशील और गैरसमझौतावादी जननेता के रूप मेंयाद रखे जाएंगे। उनका दहकता इस्पाती जीवन छत्तीसगढ़ के असंख्य और असंगठित किसानों, मजदूरों के साथ साथ युवा पीढ़ियों और बुद्धिजीवियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है।
बंगाल की शस्य श्यामला धरती का यह सपूत विद्रोही कवि काज़ी नजरुल इस्लाम की कविता के एक छंद के रूप में छत्तीसगढ़ की धरती में बिखरकर आत्मसात हो गया। दलों, गुटों, जातियों और क्षेत्रीयता के आधार पर टूटे हुए राजनेताओं के लिए शंकर गुहानियोगी अपनी मृत्यु के बाद भी एक तिलिस्मी व्यक्तित्व बने हुए हैं। यही उनकी कालजयी ख्याति का प्रमाण है। नियोगी ने मध्यप्रदेश के उपेक्षित, शोषित लेकिन विपुल संभावनाओं वाले छत्तीसगढ़ के निवासियों के लिए भगीरथ प्रयत्न किया। वे न केवल अनोखे और बेमिसाल थे। भविष्य में भी कोई अकेला जानदार नेता उन कामों को पूरा कर सकेगा-इसमें सन्देह है। नियोगी के व्यक्तित्व में वह स्निग्धता, सरलता और अनूठापन था जो राष्ट्रीय ख्याति के नेताओं के स्वभाव में होता है।
नियोगी सर्वहारा वर्ग के प्रति जन्मजात उपजी करुणा थी। ऊपर से दिखने वाले उनके जिद्दी और अड़ियल व्यक्तित्व की बुनियाद में कोमल मन धड़कता था। उन्हें राजनीति का कवि कहा जाना चाहिए। नियोगी ने छत्तीसगढ़ की धरती से सम्पृक्त होकर भूगोल की सरहदों से ऊपर उठकर राजहरा के मजदूर आन्दोलन को राष्ट्रीय आधार पर प्रतिष्ठित किया। संवेदनशीलता का भावी इतिहास अपनी सिसकियों में सदैव पूछेगा-शंकर गुहा नियोगी तुम कहां हो?
शंकर गुहा नियोगी ने लाल हरे झंडे के माध्यम से किसानों और मजदूरों को एक जुटकर वर्गविहीन राज्य का सपना देखा था। वह केवल राजनीतिज्ञों के बस की बात नहीं है। नियोगी स्वप्नदर्शी जननेता थे जो मजदूर आन्दोलन के पीछे किसानों की एकजुट ताकत की पृष्ठभूमि खड़ी करने के पक्षधर थे। वे राजनीति की पृष्ठभूमि में सांस्कृतिक आन्दोलन की आग को सुलगाने के काम में जीवन भर मशगूल रहे।
वे पुरुष प्रधान समाज में हर दूसरे कदम या हाथ पर महिलाओं की बराबर की भागीदारी के फार्मूले पर अटल रहे। यह नियोगी थे जो शराबखोरी , जुआखोरी और सट्टेबाजी जैसी सामाजिक व्याधियों की गिरफ्त में आये पुरुष वर्ग को शासकीय कानूनों या उपदेशों के सहारे दूर करने के बदले महिला वर्ग की संगठित ताकत के जरिए खत्म कराने का ऐलान कर सकते थे। पुरुष वर्ग से कहीं बढ़कर राजहरा जैसी श्रमिक बस्तियों की एक-एक महिला की आँख में शंकर गुहा नियोगी का सपना सदैव जीवित रहेगा।
(श्रृंखला समाप्त लेकिन नियोगी का यश जीवित)