अब्दुल्लाह नासिर
लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद कांग्रेस एक प्रकार से कोमा मे चली गयी लगती है पार्टी अध्यक्ष के पद से राहुल गाँधी के इस्तीफे ने पार्टी के सामने एक विकट स्थिति पैदा कर दी थी, विभिन्न नेताओं के तरह तरह के बयानों से कार्यकर्ताओं का हौसला टूटता जा रहा था पार्टी जिस स्थिति में थी उस में कोई भी अध्यक्ष पद स्वीकार करने को तैयार नहीं था पार्टी में एक प्रकार से निराज की सी स्थिति पैदा हो गयी थी छोटे बड़े नेता पार्टी छोड़ने का इशारा दे रहे थे ऐसे में फिर सोनिया गांधी को आगे आ कर कांग्रेस की डूबती नाव का पतवार थामना पड़ा उनके कार्यकारी अध्यक्ष बनने से पार्टी में संभावित भगदड़ रुक गयी।
देश के सब से बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में पार्टी सब से खराब स्थिति में है लोक सभा चुनाव में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी का अपने पारिवारिक और परम्परागत क्षेत्र अमेठी से चुनाव हार जाना पार्टी के लिए बहुत बड़ा धक्का है केवल सोनिया जी ही राय बरेली से अपनी सीट बचा पायी थी। प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर ने हार की नैतिक सज़िम्मेदारी स्वीकार करते हुए इस्तीफ़ा दे दिया लेकिन पार्टी महा सचिव के तौर पर प्रियंका गाँधी ने कमान संभाले रखी और सोनभद्र में आदिवासियों की ह्त्या का मसला हो या पेट्रोल डीज़ल के दामों में बढ़ोत्तरी बिजली का रेट बढाए जाने की बात हो या बलात्कार के आरोपी चिन्मयानंद को सरकार द्वार बचाये जाने की कोशिश प्रियंका गांधी ने इन सब मुद्दों पर सड़क पर लड़ाई लड़ी और इस लड़ाई में उनके कंधे से कन्धा मिला कर लड़ते रहे विधान मंडल दल के नेता अजय कुमार लल्लू, उन्हों ने कार्यकर्ताओं को सड़क पर उतारा खुद धरना प्रदर्शन में आगे आगे रहे पुलिस की लाठियां खायीं कार्यकर्ताओं के साथ रिक्शा चलाया साइकिल से चले और एक स्ट्रीट फाइटर की अपनी इमेज के अनुसार पार्टी कार्यकर्ताओं को मोबिलाइज किया जिन्हें पहले कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और अब उन्हें पूर्ण कालीन अध्यक्ष बना के नवजवानो की एक टीम उनके साथ कर दी गयी है जबकि वरिष्ठ नेताओं को प्रियंका गांधी ने अपनी सलाहकार समिति में जगह दी है।जिन नवजवानों को अजय कुमार लल्लू की टीम में शामिल किया गया वह अधिकतर क्षात्र राजनीति से निकले और जनता के मुद्दों पर सड़क पर संघर्ष करने वाले रहे हैं जिनसे उम्मीद की जा सकती है की वह कांग्ग्रेस को दुबारा एक संघर्ष शील पार्टी बना सकते हैं
अजय कुमार लल्लू की इमेज एक सड़क पर संघर्ष करने वाली नेता की है वह अपने दम पर संघर्ष कर के इस स्थान तक पहुंचे है वह सही अर्थों में एक अत्यंत गरीब परिवार से संबंध रखते हैं जिन्हें ने मेहनत मज़दूरी की, दिहाड़ी मज़दूर के तौर पर भी काम किया और सिनेमा का टिकट बेच कर घर में शाम को चूल्हा जलने का प्रबंध करते , मेहनत मज़दूरी करते हुए उन्होंने घर चलाने में अपने पिता का हाथ भी बंटाया और अपनी शिक्षा भी जारी रखी किसान पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज की क्षात्र यूनियन का चुनाव लड़ कर अपना राजनैतिक करियर शुरू किया जनत के मुद्दों को ले कर संघर्ष किया जेल गए और जनता का प्यार और विश्वास जीत कर तीन बार विधायक बने यह संघर्ष करते हुए उनको अपना घर बसाने का भी अवसर नहीं मिला ,उत्तर प्रदेश कांग्रेस को एक ऐसा जुझारू और ज़मीन पर काम करने वाला अध्यक्ष मिलने से कार्यकर्ताओं में बेशक जोश है अपने स्वागत समारोह में बड़े नेताओं के साथ मंच पर न बैठ कर सामने दरी पर कार्यकर्ताओं के बीच बैठ कर उन्होंने कार्यकर्ताओं का दिल जीत लिया लेकिन ?
लेकिन यह एक बहुत बड़ा सवालिया निशान है उत्तर प्रदेश में कांग्रेस तीस वर्षों से सत्ता से बाहर है ज़ाहिर है उसके पास कार्यकर्ताओं की अब उतनी बड़ी फ़ौज नहीं बची है जितनी अन्य पार्टियों के पास है जो सत्ता में रही हैं और जिनके फिर सत्ता में इमकान है जबकि फ़िलहाल कांग्रेस के पास सिर्फ संघर्ष का ही रास्ता बचा है सत्ता उस से कोसों दूर दिखाई दे रही तीस वर्षों की गठजोड़ की राजनीति में जिसमे कभी कांग्रेस ने साइकिल की सवारी की और कभी हाथी की उसका नतीजा यह निकला की पार्टी का कोर वोट बैंक (दलित और मुस्लिम )यह पार्टियां तोड़ ले गयीं ब्रह्मण को मजबूरन बी जे पी का सहारा लेना पड़ा। इन पार्टियों ने कांग्रेस के सहारे सत्ता हासिल की और कांग्रेस बीजेपी को रोकने के नाम पर इनका साथ देती रही और यह पार्टियां अमर बेल की तरह उसका वोट बैंक छीनती रहीं सितम की बात तो यह रही है कि मुलायम सिंह यादव रहे हों या मायावती दोनों कांग्रेस की मदद से सरकार भी बनाते थे और सब से ज़्यादा निशाना भी उसी पर साधते थे। ऐसा नहीं की वोट बैंक के इस बिखराव में कांग्रेस की अपनी पहाड़ जैसी गलतियां न रही हों जिसका फायदा इन पार्टियों ने खूब खूब उठाया।
प्रियंका गांधी और अजय कुमार लल्लू की टीम ने अब पुरानी गलतियां न दोहराने का निश्चय किया है पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के स्वागत समारोह में कार्यकर्ताओं से सम्बोधित करते हुए अजय कुमार लल्लू समेत पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं ने स्वीकार किया की गठबंधन की राजनीति के कारण कांग्रेस को बहुत नुकसान उठाना पड़ा है अब कांग्रेस सब चुनाव अपने दम पर अकेले लड़ेगी और 2022 के विधान सभा चुनाव सरकार बनाने के मक़सद को सामने रख कर पूरी ताक़त से लड़ेगी।अजय कुमार लल्लू ने यह भी एलान किया है की कार्यकर्ताओं की चुनाव में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस स्थानीय निकाय के चुनाव भी पूरे दम ख़म से लड़ेगी।