आखिरकार भारत ने सिंधु जल समझौते में संशोधन के लिए पाकिस्तान को बातचीत का नोटिस भेज दिया है।
इस तरह उसे नब्बे दिन के अंदर इस मसले पर वार्ता के लिए आना होगा। मगर वह आसानी से इस नोटिस को स्वीकार कर लेगा, कहना मुश्किल है। दरअसल, पिछले पांच सालों से भारत कोशिश करता रहा है कि सिंधु जल समझौते में संशोधन हो, मगर पाकिस्तान इसे लगातार टालता रहा है।
पाकिस्तान ने सात साल पहले भारत की रातले और किशनगंगा पनबिजली परियोजनाओं पर आपत्ति जताते हुए अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की अपील की थी। उसके बाद भारत लगातार प्रयास करता रहा है कि इस मसले को परस्पर निपटाया जाए, मगर पाकिस्तान का रुख टालमटोल का रहा है। इसी के चलते उसे यह नोटिस भेजा गया है। सिंधु जल समझौता करीब बासठ साल पहले छह नदियों- व्यास, सतलुज, रावी, सिंधु, झेलम और चेनाब के पानी की हिस्सेदारी को लेकर हुआ था। उसमें विश्व बैंक ने भी हिस्सेदारी की थी।
उसके बाद से दोनों देशों के बीच तीन युद्ध हुए, मगर भारत ने कभी पाकिस्तान के हिस्से का पानी नहीं रोका। इस मसले पर कभी कोई बड़ा विवाद नहीं उभरा। हालांकि ये सभी नदियां भारत से होकर गुजरती हैं और उनके पानी के उपयोग का उसे पूरा अधिकार है, फिर भी पाकिस्तान ने उसकी पनबिजली परियोजनाओं पर आपत्ति जाहिर कर दी।
दरअसल, सिंधु जल समझौते में भारत को रावी, सतलुज और व्यास नदियों के पानी के निर्बाध उपयोग का अधिकार है, मगर बाकी तीन नदियों पर परियोजनाएं शुरू करने और पानी रोकने को लेकर कुछ शर्तें लगाई गई हैं।
उन्हीं शर्तों के आधार पर पाकिस्तान ने भारतीय पनबिजली परियोजनाओं पर आपत्ति जताई। हालांकि हकीकत यह भी है कि इन नदियों का केवल बीस फीसद पानी भारत इस्तेमाल कर पाता है और अगर वह पानी रोक दे, तो पाकिस्तान में सूखे की स्थिति पैदा हो जाएगी। मगर उसने कभी ऐसा नहीं किया। अब पिछले बासठ सालों में स्थितियां काफी बदली हैं। भारत की जल संबंधी जरूरतें तो बढ़ी ही हैं, कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद वहां नई परियोजनाओं का रास्ता खुला है।
सब जानते हैं कि नदियों के पानी का सबसे अधिक इस्तेमाल सिंचाई और औद्योगिक इकाइयों में होता है। ऐसे में आने वाले समय में भारत को उन नदियों के पानी में हिस्सेदारी बढ़ानी पड़ेगी, जिनका बड़ा हिस्सा पाकिस्तान इस्तेमाल करता है। आ रहा है।
कई बार विशेषज्ञ रेखांकित कर चुके हैं कि कश्मीर से होकर गुजरने वाली नदियों के पानी का भारत को अधिकतम उपयोग करना चाहिए। मगर अभी तक अड़चन यह है कि उन नदियों के पानी का संचय करने का कोई प्रबंध नहीं है। सिंधु जल समझौते में एक शर्त यह भी है कि भारत नदियों का रुख मोड़ नहीं सकता। इस तरह अगर नदी जोड़ परियोजना पर काम शुरू हो, तो मुश्किल पैदा हो सकती है।
मजबूरन भारत अपने हिस्से का बहुत सारा पानी पाकिस्तान की तरफ बह जाने देता है। इस लिहाज से भी जल समझौते में संशोधन की आवश्यकता है, ताकि नदी जोड़ परियोजना शुरू कर मैदानी भागों में पानी की उपलब्धता बढ़ाई जा सके। मगर जैसी कि पाकिस्तान की आदत है, वह किसी भी ऐसे समझौते में संशोधन को शायद ही आसानी से तैयार हो, जिससे भारत को लाभ मिलता हो । मगर नब्बे दिनों की नोटिस के बाद अगर उसकी तरफ से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई, तो भारत का पलड़ा भारी होगा और वह अपने ढंग से कुछ फैसला करने की सोच सकता है।