नई दिल्ली: मौजूदा हिन्दुस्तान मंदी के दौर से गुजर रहा है, सारे सेक्टर घाटे में चल रही है और सरकार की तरफ से कोई संतोषजनक बयान सुनने को नहीं मिल रहा है। इस मंदी पर भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय ‘सुस्ती’ के चंगुल में फंसी है और इसमें बेचैनी और अस्वस्थता के गहरे संकेत दिखाई दे रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों पर काफी आर्थिक दबाव
इंडिया टुडे मैगजीन को दिए अपने लेख में उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों पर काफी आर्थिक दबाव है। भारत की विकास दर घटती जा रही है। वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में यह 4.5 फीसदी पर पहुंच गई थी, जो पिछले छह सालों में सबसे कम है। आगे उन्होंने कहा कि भारत में बेरोजगारी भी एक बड़ी समस्या है।
अपने लेख में रघुराम राजन ने बताया कि मोदी सरकार के सामाजिक और राजनैतिक एजेंडे के बारे में बात करते हुए लिखा कि “सरकार को राष्ट्रीय और धार्मिक महापुरूषों की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं लगाने की बजाय मॉर्डन स्कूल और यूनिवर्सिटीज खोलनी चाहिए, जिससे बच्चों का दिमाग खुले। वो और ज्यादा सहिष्णु और दूसरों के प्रति दयावान बनें।”
‘पीएम के लोग लेते हैं सारे फैसले’
रघुराम राजन ने कहा, ‘कहां गलती हुई है यह समझने के लिए हमें मौजूदा सरकार के केंद्रीकृत प्रकृति को समझने की जरूरत है। केवल फैसला ही नहीं, बल्कि विचार और योजना पर निर्णय भी प्रधानमंत्री के कुछ नजदीकी लोग और पीएमओ के लोग लेते हैं।’
आपको बता दें कि भारत में 47 अरब डॉलर यानी करीब 3.3 लाख करोड़ रुपये के प्रॉजेक्ट फंसे हुए हैं। साथ ही 4.65 लाख यूनिट घर निर्माण की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है। इन सभी प्रॉजेक्ट को पूरा करने में दो से आठ सालों का वक्त लग सकता है।
बेरोजगारी के मामले में उन्होंने कहा कि युवाओं के बीच यह बढ़ रही है। इससे युवाओं के बीच असंतोष भी बढ़ रहा है। ‘‘घरेलू उद्योग जगत नया निवेश नहीं कर रहा है और यह स्थिति इस बात का पुख्ता संकेत देती है कहीं कुछ बहुत गलत हो रहा है।’’