पुलवामा हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव को जहां कुछ अमन पंसद लोग युद्ध के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद कर कम करने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं देश का मेनस्ट्रीम मीडिया ऐसे अति-संवेदनशील महौल में लोगों को भड़काने का काम कर रहा है।
मीडिया के इसी रवैये पर पूर्व IPS ध्रुव गुप्त ने प्रतिक्रिया दा है। उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट के ज़रिए कहा, “हमारे अपने देश में ही जैश और लश्कर के आतंकियों से भी ख़तरनाक कुछ लोग हैं जो सरकारी संरक्षण में देश को भावनात्मक रूप से बांटने और देशवासियों को मानसिक तौर पर पंगु और विक्षिप्त बनाने के सतत अभियान में लगे हुए हैं”।
उन्होंने आगे कहा, “पाकिस्तान का इलाज करने से पहले अगर इन भूतों और भूतनियों का इलाज़ नहीं हुआ तो अगले कुछ सालों में यह समूचा देश पागलखानों में होगा। किसी मिराज से इन्हें लाइन ऑफ कंट्रोल के उस पार गिरा आईए। यक़ीनन देश की नब्बे प्रतिशत से ज्यादा समस्याओं का स्वतः समाधान हो जाएगा”।
ग़ौरतलब है कि पुलवामा हमले के बाद से ही गोदी मीडिया के पत्रकार युद्ध का उन्माद फैलाते नज़र आ रहे हैं। वह स्टूडियो से ही पाकिस्तान में घुसकर उसे तबाह और बर्बाद कर देने की बात कर रहे हैं। लगातार चैनलों पर सिर्फ युद्ध पर ही चर्चा की जा रही है और युद्ध को ही समस्या का समाधान बताने की कोशिश की जा रही है।
कुछ लोगों का दावा है कि मीडिया युद्ध का उन्माद फैलाकर लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए माहौल बनाने का काम कर रही है। भारतीय वायुसेना की एयर स्ट्राइक का श्रेय मीडिया मोदी सरकार को देकर इन दावों को काफी हद तक सही भी साबित कर रही है।
लेकिन स्टूडियो से लगातार युद्ध का बिगुल फूंकने वाली मीडिया दर्शकों को युद्ध के दुष्परिणाम नहीं बता रही है, क्योंकि इससे सत्ताधारी दल को राजनीतिक फायदा नहीं मिलेगे। स्टूडियो में बैठे एंकर अपने दर्शकों को यह नहीं बता रहे कि युद्ध में हजारों-हजार इंसानी जानें जाती हैं, माओं की गोदें सूनी हो जाती हैं, पत्नियों के सुहाग उजड़ जाते हैं और हज़ारों बच्चे अनाथ हो जाते हैं।
युद्ध के बाद का मंजर तो हद से ज्यादा भयावह होता है। आर्थिक तबाही जो होती है वह अलग… लेकिन इन सब से मीडिया को क्या मतलब? कौन सा इन एंकरों को युद्ध लड़ने जाना है। युद्ध तो गरीब और किसान परिवार से आने वाले युवाओं को लड़ना होता है।