पिछली सदी के तीसरे दशक में चीन और तिब्बत की सीमा पर खुदाई के दौरान एक गुफा से पत्थर के बने कुछ डिस्क मिले। एक-दो नहीं, पूरे सात सौ सोलह। वे तमाम गोलाकार डिस्क ठीक वैसे ही थे जैसे ग्रामोफोन रिकॉर्ड होते हैं। बीच में एक छेद और चारो तरफ बहुत महीन ग्रूव्स। कार्बन डेटिंग से उन डिस्क की उम्र बारह हज़ार साल से ज्यादा पाई गई।
रूस के वैज्ञानिक डॉ सर्जीएव ने प्रमाणित किया कि वे डिस्क वास्तव में रिकॉर्डस ही हैं, लेकिन उन्हें किस यंत्र पर और किस सुई के माध्यम से बजाया जा सकेगा, यह तय नहीं हो सका। हैरानी तब हुई जब परीक्षण के दौरान उनसे विद्युत किरणों का विकिरण भी होता पाया गया।
जिस काल के ये बताए जा रहे हैं वह मनुष्यों का प्रस्तरयुग था। उस युग में ऐसे उन्नत इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण और इस्तेमाल की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस खोज के कुछ दशक बाद चीनी शोधकर्ता डॉ त्सुम ऊम नुई ने पाया कि रिकॉर्ड्स के ग्रूव्स वस्तुतः बहुत बारीक लिखी गई सांकेतिक भाषा थी। उन्होंने कोड भाषा को अनकोड किया तो उनके हैरतअंगेज अर्थ निकले।
चीन द्वारा सालों तक गुप्त रखने के बाद इस संबंध में 1965 में ज़ारी रिपोर्ट से अंतरिक्ष विज्ञान जगत में हलचल मच गई। रिकॉर्ड्स की ग्रूव्ड लिपि बारह हज़ार साल पहले एक असफल एलियन अभियान के बारे में दर्ज़ सूचनाएं थीं। शायद भविष्य में आने वाले एलियंस के लिए। खुद को ड्रोपा बताने वाले परग्रही प्राणियों के अनुसार उनका अंतरिक्ष यान उस पर्वतीय क्षेत्र में दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के कारण उनकी वापसी के रास्ते बंद हो गए थे।
तब वहां गुफाओं में रहने वाले हैम जनजाति के लोगों ने शत्रु समझ कर उनपर हमले किए। उनके कुछ लोगों की हत्या कर हुई। बाद में ड्रोपा के मित्रतापूर्ण व्यवहार से गुफावासी हैम लोगों को अपनी भूल का अहसास हुआ। इस रहस्योद्घाटन के बाद इन डिस्क को ड्रोपा स्टोन कहा जाने लगा।
दुनिया के ज्यादातर अंतरिक्ष विशेषज्ञों ने साक्ष्यों को देखते हुए कोड लिपि की नुई की व्याख्या को सही ठहराया है। इस बात की पुष्टि इस तथ्य से भी होती है कि उस पर्वतीय इलाके की लोककथाओं में प्राचीन काल में बादलों से उतरने वाले छोटे कद के पीले और बड़े चेहरे वाले लोगों के उल्लेख मिलते हैं।
आश्चर्यजनक रूप से पिछली सदी के आरंभ में उस इलाके की खुदाई में बड़े सिर वाले जो कुछ नरकंकाल मिले थे वे ड्रोपा के बताए हुलिए से मेल खाते हैं। और कुछ बचे हुए ड्रोपा पृथ्वी पर ही रह गए थे, इसका इससे बड़ा सबूत क्या होगा कि उस पर्वतीय क्षेत्र में अभी जो दो जनजातियां आबाद हैं, उनके नाम हैम और ड्रोपा हैं।
ध्रुव गुप्त