महाराष्ट्र में सभी राजनीतिक दल, विशेष रूप से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी-शिवसेना के बीच बेचैनी का माहौल है, क्योंकि 288 विधानसभा क्षेत्रों के लिए 21 अक्टूबर को होने वाले चुनाव में बागी नेता कई निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकृत उम्मीदवारों की जीत की संभावनाओं पर पानी फेर सकते हैं।
जहां कुछ दलों ने बागियों के खतरे को ‘साम या दाम’ से दूर करने की कोशिश की। वहीं, बीजेपी के बागियों से परेशान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने चेतावनी दी है कि अगर बागी चुनावी मैदान से नहीं हटे तो ‘उन्हें उनकी जगह दिखा दी जाएगी’। लेकिन कई बागी नेताओं पर इस चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ है।
बीजेपी-शिवसेना के अलावा, विपक्षी कांग्रेस-एनसीपी भी बागियों पर नकेल कसने को लेकर सिर खपा रही है, जो सभी पक्षों के लिए दोधारी तलवार की तरह काम कर सकते हैं। एक तरफ, बागी नेता अधिकृत उम्मीदवारों की जीत की संभावनाओं में रोड़ा अटका सकते हैं या विरोधियों को लाभ पहुंचा सकते हैं, तो वहीं कुछ मामलों में यह भी संभावना है कि वे कहीं-कहीं अपनी व्यक्तिगत पकड़ के कारण जीत भी हासिल कर सकते हैं।
बीजेपी-शिवसेना पहले 27 से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में 110 बागियों का सामना कर रही थी। वहीं लगभग 20 सीटों पर कांग्रेस-एनसीपी को भी इसी स्थिति से दो-चार होना पड़ा है और करीब आधा दर्जन सीटों पर आधिकारिक गठबंधन भी एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं। लेकिन, बीजेपी-शिवसेना अभी भी कम से कम 30 सीटों पर विद्रोहियों का सामना कर रही हैं। वहीं इसका फायदा उठाते हुए कांग्रेस-एनसीपी ने बागी नेताओं को समर्थन देकर सत्तारूढ़ गठबंधन के माथे पर पसीना ला दिया है।
कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में, विपक्ष का राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के साथ सुविधाजनक, लेकिन अनौपचारिक रूप से समझौता हो गया हैं, जिसके उम्मीदवार बीजेपी -शिवसेना के प्रत्याशियों के वोटबैंक में सेंध लगा सकते हैं।
दोनों गठबंधनों के शीर्ष नेताओं ने विद्रोहियों से निपटने के लिए चेहरा बचाने के फार्मूले पर काम किया है। कुछ मामलों में उन्हें आकर्षक मोलभाव के साथ लुभाया गया और अन्य में विद्रोहियों को जीत के बाद कैबिनेट में पद देकर पार्टी में लौटने की पेशकश की गई है।