“जिनके बाप दादा ने पोलियो की दो बूँद पिलाने में 25 साल से ज़्यादा लगा दिए थे वो कहते हैं 6 महीने में सबको वैक्सीन लग जाए”
“जिनके बाप दादा ने मात्र 19 करोड़ बच्चों को पोलियो की दो बूँद पिलाने में 25 साल लगा दिए उनके वंशज कहते हैं कि 6 महीने में 140 करोड़ को वैक्सीन लग जाए”
आपकी नज़रों से भी इस तरह की प्रोपेगैडा सामग्री गुज़री होगी। इसका उदय पहली बार किस वेबसाइट से हुआ और कब हुआ, मेरे लिए बताना मुश्किल है। फिर भी जानना चाहूँगा।मोदी और योगी समर्थकों के फ़ेसबुक पेज और नाना प्रकार के हिन्दुत्वा फ़ेसबुक पेज इसी तर्क को फैलाया गया है।
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इसके पैटर्न को देख कर समझा जा सकता है कि आई टी सेल का काम होगा। यही नहीं इस तरह के भरमाने के तर्क और तथ्य की कोई केंद्रीय व्यवस्था है जहां से लोगों को मूर्ख बनाने के लिए ऐसे लॉजिक का पूरे देश में वितरण होता है। बिना केंद्रीय व्यवस्था के समान रुप से गढ़ गए तर्क थोड़े बहुत फेर बदल के हर जगह नहीं दिखेंगे।
हुआ यह होगा कि जब मार्च और अप्रैल महीने में लोगों के सामने कोरोना से लड़ने और हरा देने का सारा दावा ध्वस्त होने लगा और उनके अपने तड़प तड़प कर मरने लगे तब उसी दौर में ऐसे तर्कों की तलाश हो रही थी कि भले लोग मर जाएँ लेकिन मोदी की महानता बनी रहे। पहले की तरह झूठ की बुनियाद पर खड़ी रहे।
कोशिश थी उस झूठ की बुनियाद को बचाने की इसलिए पोलियो अभियान से जोड़ने का झूठ गढ़ा गया। ऐसा लगता है कि झूठ फैलाने की कोई अदृश्य केंद्रीय व्यवस्था है जिसमें ऐसे तर्क गढ़ने के लिए काफ़ी प्रतिभाशाली लोग रखे गए हैं।
आप देखेंगे कि ऐसे दलील यूँ ही हवा में नहीं बनाए जाते हैं। इनका एक मनोविज्ञान होता है। मूर्ख बनने के बाद भाव विद्वान होने का आए इसका गुण डाला जाताहै। इन तर्कों के दो काम होते हैं। पहले लगातार विवेक को ख़त्म करना और ख़त्म हो चुके विवेक को पनपने न देना।
इस बार शुरूआतें आबादी के तर्क से हुई। लोगों के मरने के बीच यह तर्क चलने लगा कि अस्पताल तो थे ही लेकिन आबादी इतनी अधिक है कि कोई भी सरकार इतने मरीज़ को भर्ती नहीं कर सकती। चाहें कितना ही अस्पताल बना ले। जल्दी ही यह तर्क भस्म हो गया। अस्पताल का कम पड़ना और अस्पताल का न होना दोनों दो अलग अलग चीज़ें हैं।
दवा और सिलेंडर तक नहीं था। फिर भी आबादी वाला तर्क दायें बायें से आता जाता रहा। इन दिनों जब भी सरकार असफलता के चरम पर होती है आबादी वाला तर्क झूठ की बुनियाद का खाद बन जाता है। ऐसा हमेशा नहीं था। 2014 के साल में नरेंद्र मोदी इसी आबादी को एक ताक़त के रुप में पेश करते थे और गुण गाते थे।
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जब सारे हवाई दावे ज़मीन पर गिरने लगे तो आबादी का तर्क पलट दिया गया। आपको अनेक भाषण सुना सकता हूँ जिसमें वे भारत की युवा आबादी का गुण गा रहे हैं। आज जब उस युवा को नौकरी नहीं मिली, वो बर्बाद हो गया तो झूठ फैलाने की केंद्रीय व्यवस्था बताने लगी है कि उसकी सारी तकलीफ़ आबादी, आरक्षण और मुसलमान के कारण है।
मार्च अप्रैल और मई के महीने में जिस तेज़ी से लोग मर रहे थे और समाज में हाहाकार मच रहा था उसमें समर्थक भी स्तब्ध थे। उनके घरों में भी वही हालत थी। अचानक वे मोदी मोदी करने को लेकर तर्कविहीन हो गए।
अदृश्य केंद्रीय व्यवस्था ने तुरंत डोज़ देना शुरू किया कि मृत्यु को ईश्वर की इच्छा बता कर समर्थक तबके को नए तर्क देने होंगे। ताकि उसका विवेक न लौट आए। साथ ही जो बचे हुए लोग थे उनके विवेक को ख़त्म करने की सतत प्रक्रिया बाधित न हो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने राष्ट्र के नाम संदेश के लिए जिन संदर्भों को लेकर माहौल बनाया है उनका झूठ फैलाने की केंद्रीय व्यवस्था के तर्कों से ग़ज़ब क़िस्म का मेल बन जाता है। शब्दशः नहीं बनता लेकिन उसी भाव को जगह मिलती है जो मैंने आपको बताई।यह भाषण भ्रमों को दूर करने के लिए नहीं बल्कि नए-नए भ्रमों को स्थापित करने के लिए था जिसका ट्रायल केंद्रीय व्यवस्था के द्वारा किया जा चुका था।
पोलियो से तुलना कर अपनी विवशता को स्थापित करने का तर्क। इससे बोगस बात कुछ नहीं हो सकती। जब इस देश में आज के जैसे तकनीकि संसाधन नहीं थे तब यूनिसेफ़, रोटरी क्लब, विश्व स्वास्थ्य संगठन और सरकार के ढाँचे ने मिलकर पल्स पोलियो का अभियान चलाया। पल्स पोलियो अभियान में दो दो दिन में 17 करोड़ बच्चों को दो बूँद पिलाई गई थी।
पल्स पोलियो अभियान पोलियो के उन्मूलन का था। इसके तहत सफलता 90 या 99 प्रतिशत नहीं मानी जाती थी। 100 परसेंट होने पर ही मानी जाती थी। सभी बच्चों को दो बूँद पिलाने और पोलियो का एक केस न होने पर ही सफलता घोषित होती थी। इतना मुश्किल काम था लेकिन फिर भी इसे यहीं के लोगों ने कर दिखाया।
इसलिए जिनके बाप दादों ने पोलियो के नाम पर जो झूठ फैलाया है ताकि अपनी असफलता को छिपा सके, उनके वंशजों से भी अनुरोध है कि प्राइम टाइम का यह एपिसोड देख लें। ताकि समझ सकें कि उन्हें मूर्ख बनाने के किस लेवल की मेहनत होती है। और गर्व करें कि वे ऐसे ही मूर्ख नहीं बने हैं। मेहनत से बने हैं।