समूचे जीव जगत में मनुष्य को सबसे खास इसलिए माना जाता है कि सभ्यता के विकास क्रम में इसके भीतर पारिस्थितिकी के चक्र को समझने की सलाहियत भी पैदा हुई और उसी के तहत इंसान ने अपने आसपास न सिर्फ अपने लिए उपयोगी और जरूरी जीव-जंतुओं की पहचान की, बल्कि अन्य पशुओं और पक्षियों के प्रति भी एक संवेदनशील व्यवहार का रुख अपनाया।
वक्त के साथ मनुष्य ने भले अपने एक संगठित समाज को आकार दिया, एक दुनिया बनाई, मगर इसमें जीव- जगत में मौजूद कई पशु-पक्षी भी इसके सहायक बने। इसी के समांतर कुछ खास जीव-जंतुओं की अहमियत को इंसानी समाज ने दर्ज भी किया, उसे उचित महत्त्व दिया और अपने जीवनयापन में उसकी उपयोगिता को समझा। लेकिन जैसे-जैसे समाज आधुनिक होता जा रहा है, वैसे-वैसे कई बार ऐसी स्थितियां भी देखी जाती हैं जब किसी व्यक्ति को नाहक ही पशु-पक्षियों के प्रति बेहद क्रूरतापूर्ण बरताव करते देखा जाता है।
यह न केवल अमानवीय और संवेदनहीनता का सूचक है, बल्कि ऐसे व्यवहार के खिलाफ सख्त नियम-कायदे या कानून भी हैं। इसके बावजूद कुछ लोग महज अपनी कुंठा को बाहर निकालने के लिए किसी पशु के खिलाफ बर्बरता से पेश आते हैं। इसी मसले पर दिल्ली की एक अदालत ने एक पुलिसकर्मी के विरुद्ध ऐसी शिकायत के बाद नरमी बरतने पर सवाल उठाया है। गौरतलब है कि पिछले महीने उत्तर-पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद इलाके में एक कुत्ते को बेरहमी से डंडे से पीटते पुलिसकर्मी का वीडियो सुर्खियों में आया था। इस मसले पर अब अदालत ने दिल्ली पुलिस के आरोपी अधिकारी पर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया है।
दरअसल, किसी भी शिकायत के संबंध में प्राथमिकी दर्ज करने से पहले पूछताछ के आधार पर मामले को बंद करने की अनुमति नहीं है। लेकिन इस मामले में कथित जांच के बाद कहा गया कि आरोपी ने कोई दंडनीय अपराध नहीं किया और कानून के तहत किसी कार्रवाई की आवश्यकता नहीं है। ऐसा अक्सर देखा जाता है कि पुलिस आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत निर्धारित नियमों को दरकिनार करके ऐसे रुख का सहारा लेती है। इस संदर्भ में अदालत ने कहा कि बिना मामला दर्ज किए आरोपी को पूरी तरह निर्दोष घोषित करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
जाहिर है कि यह न केवल जीव-जंतुओं के प्रति क्रूर व्यवहार, बल्कि कानूनी प्रावधानों के भी उचित तरीके से पालन में कोताही का मामला है। सवाल है कि क्या ऐसा इसलिए संभव हो सका कि नाहक ही बेरहमी का शिकार एक ऐसा पशु था, जो आमतौर पर अपने ऊपर अत्याचार को सहता रहता है! यह समझना मुश्किल है कि किसी व्यक्ति के भीतर ऐसी आक्रामकता का स्रोत क्या होता है कि वह केवल मौज लेने के लिए कुत्ते या अन्य पशुओं पर हमला करता है।
इस तरह की संवेदनहीनता के खिलाफ पशु क्रूरता निवारण अधिनियम है, जिसके तहत ऐसा करने वालों के लिए बाकायदा दंड की व्यवस्था है। मगर यह अफसोसनाक है कि जिन पुलिसकर्मियों को ऐसा करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, कई बार वे खुद ऐसी क्रूरता करते हुए देखे जाते हैं।
यों यह तथ्य है कि समूचे जीव-जगत में मनुष्य को सबसे खास इसलिए माना जाता है कि सभ्यता के विकास क्रम में इसके भीतर पारिस्थितिकी के चक्र को समझने की सलाहियत भी पैदा हुई और उसी के तहत इंसान ने अपने आसपास न सिर्फ अपने लिए उपयोगी और जरूरी जीव-जंतुओं की पहचान की, बल्कि अन्य पशुओं और पक्षियों के प्रति भी एक संवेदनशील व्यवहार का रुख अपनाया।
ऐसे तमाम संवेदनशील लोग हमारे आसपास रहते हैं, जो अपने परिवार की तरह किसी पशु या पक्षी का खयाल रखते हैं और जरूरत पड़ने पर उनके लिए खाने से लेकर इलाज तक का इंतजाम करते हैं। यह ऐसे लोगों के बेहतर मनुष्य होने का प्रमाण है। लेकिन इसी समाज में कुछ लोगों के भीतर पशु-पक्षियों के प्रति बेरहमी से इंसानी तकाजों पर सवाल उठते हैं।