कोरोना के नाम पर जिस तरह तबलीगी जमात के निजामुद्दीन स्थित मरकज को मीडिया द्वारा बदनाम किया गया है उसके परिणाम ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिल रहे हैं। हरियाणा के हांसी के पास जमावड़ी नाम का एक गांव है, इस गांव में मुसलमानों के तीन चार घर हैं।
मीडिया ने प्रोपगेंडा वाॅर मे जिस तरह कोरोना के बहाने मुसलमानों के सर पर सरकार की नाकामियों का ठीकरा फोड़ा है उसकी लपटें इस गांव तक पहुंची हैं।
यह गांव मेरे दोस्त उदय का है, उदय का परिवार रसूखदार है, खुद उदय कम्यूनिस्ट विचारधारा से जुड़े हैं। दशकों से उदय के घर के सामने तीन चार घर मुसलमानों के हैं।
जब मीडिया ने निज़ामुद्दीन मरकज़ के बहाने कोरोना बम और कोरोना जिहाद जैसी घटिया एंव आ!तंकी शब्दावली का प्रयोग किया तो इस गांव के मुसलमानों को निर्दोष होते हुए भी अपराधबोध से दोचार होना पड़ा।
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गांव के लोगों ने अफवाह फैलाई कि इन परिवारों के कई सदस्य मरकज़ से लौटे हैं, यह अफवाह आग की तरह इलाक़े में फैल गई, लोगों ने इन परिवारों को कोरोना का ज़िम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया।
पुलिस को सूचना दी गई, पुलिस पहुंची और इस गांव के मुसलमानों से अपराधियों जैसा सलूक करने लगी। वह तो भला हो उदय का, जो पुलिस के सामने डटकर खड़े हो गए।
उन्होंने पुलिस को सच बताया कि बीते तीन महीने में इन परिवारों का कोई सदस्य निज़ामुद्दीन मरकज़ तो छोड़िए हिसार से भी बाहर नहीं गया, हां तीन महीने पहले इन परिवारों का एक सदस्य अज़मेर दरगाह जरूर गया था, लेकिन वह युवक भी पूरी तरह स्वस्थय है।
उदय ने गांव वालो से सवाल किए कि आप लोग इन परिवारों के बारे में अफवाह फैलाकर इनकी लिंचिंग करा देंगे, इसलिए झूठी अफवाहें न फैलाईए, उदय ने पुलिसकर्मियों से भी कहा कि अफवाह फैलाने वालों के ख़िलाफ सख्त कार्रावाई कीजिए, आख़िरकार पुलिस को वापस जाना पड़ा।
यह तो एक गांव की घटना है, सवाल है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या हर गांव में ‘उदय’ मौजूद है? नहीं…. मीडिया द्वारा छेड़े गए दुष्प्रचार युद्ध (प्रोपेगेंडा वाॅर) ने घर घर तक इस झूठ को पहुंचा दिया है कि कोरोना के ज़िम्मेदार मुसलमान हैं, जमाती हैं, मरकज़ हैं, दाढी है, टोपी है, कुर्ता पाजामा है।
उत्तर भारत में इन दिनों गेंहू की फसल खेतों में लगभग पकी खड़ी है, लेकिन विडंबना देखिए कि अपनी पकी फसल से बेपरवाह किसान भी मीडिया के झांसे में आकर इसकी चिंता और क्रोध में जल रहा है कि मुसलमान कोरोना फैला रहा है।
कोरोना से कैसे निपटा जाए? सरकार कहां सफल है? कहां विफल है? यह सब चर्चा नही है बल्कि हर गली मौहल्ले में चर्चा सिर्फ इस पर है कि मरकज़ ने भारत में कोरोना फैला दिया। बीते कुछ दिनों में मुसलमानों के खिलाफ नफरत में और अधिक इज़ाफा हुआ है।
यह एक तरह से मुसलमानों के समाजिक बहिष्कार की योजना है, ताकि कोरोना संकट समाप्त हो जाने के बाद भी मुसलमानों को उसी दृष्टी से देखा जाता रहे जैसा अब देखा जा रहा है।
मीडिया ने अपनी बात लोगों के हलक़ में डाल दी है जिसके मुताबिक़ कोरोना अब बीमारी नहीं है बल्कि देश का दुश्मन है, और मुसलमान इस बीमारी को फैलाने वाले हैं।
कल अगर कोरोना का नाम लेकर मुसलमानों के घरों में आग लगाई जाने लगे, लिंचिंग की जाने लगे तो इस पर कोई हैरानी भी नहीं होगी। कोरोना का इतना अधिक रोना रोया गया है कि कोरोना पीड़ित खुद को अपराधी समझने लगा है।
उसी का नतीजा है कि अब तक कई लोग सिर्फ इस शक में आत्महत्या करके मर गए कि वे कोरोना से पीडित हैं। इसका जिम्मेदार कौन है? क्या मीडिया इसकी ज़िम्मेदार नहीं है? भारतीय समाज हमेशा अफवाह का शिकार होता आया है, वह उसे ही सच मानता है जो टीवी पर दिखाया जाता है, और अख़बारों में छपता है।
यहां बीते कुछ दिनों में क्या परोसा गया है यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। अब दाढी, टोपी, कुर्ता पाजामा पहनने वाला मुसलमान कोरोना बम है।
यह एक मिथ्य बन चुका है, जिसका फिलहाल टूटना बहुत मुश्किल है। दो दिन मीडिया, सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुए कि जमातियो ने डाॅक्टर्स पर थूका है, आज वह वीडियो फर्जी साबित हुआ है।
लेकिन इस बीच मीडिया युद्ध ने इस बात को घर घर तक पहुंचा दिया है कि मुसलमान ऐसे हैं, और लोगों ने उसी के आधार पर धारणा बना ली, अब शायद ही वह धारणा बदल पाए।
इतना तो तय है कि कोरोना दुनिया के लिए महामारी है, भारतीय मुसलमानों के लिए मुसीबत है, और सत्ताधारी दल के लिए अपनी तमाम नाकामियां छिपाने का एक बेहतरीन पर्दा है।
कोरोना इस समाज का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा, क्योंकि कोरोना तो अब है, देश, समाज, मीडिया तो बहुत पहले से बीमार है।