इन दिनों अभिजीत सिंह द्वारा लिखित पुस्तक “इनसाइड द हिन्दू माॅल” गरमा-गर्म चर्चा में है। लेखक ने प्रस्तावना में कहा है कि हिन्दू धर्म की वही अवधारणाएं इसमें लिखी गई हैं जो कि हर रोज हमारे आचार-विचार और व्यवहार से परिलक्षित होती हों। पर हम समझ नहीं पाते कि हममें ये गुण, ये विशेषताएं, ये सहजता, ये एकात्मकता, नारी के प्रति सम्मान का भाव, प्रकृति प्रेम और विश्व बंधुत्व की भावना इसलिए है क्योंकि हमलोग हिंदू हैं। इस पुस्तक में वे तर्क है जिनके साथ आप कहीं जा सकें और संवाद करते हुए कह सकें कि हां इसलिए मैं हिंदू हूं और जग में मेरे होने का यह प्रयोजन है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि इस पुस्तक में उन्होंने वही लिखा है जो मेरे बुजूर्गों ने हिंदू धर्म के बारे में मुझे सिखाया है। इसके अतिरिक्त मैंने अपने उन अनुभवों को भी लिखा है जो कि मुझे अलग-अलग मत मजहब पंथों के विद्वानों और मित्रों के साथ परस्पर संवाद के दौरान प्राप्त हुए।
पुस्तक की प्रस्तावना में कहा गया है कि हिंदू धर्म और उससे जुड़ी हुई मान्यताओं को वर्तमान मीडिया और प्रचारतंत्र और बीते हुए काल की पिछड़ी हुई बातों को बताकर स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। इसलिए हिंदू धर्म की नई पीढ़ी को अपना धर्म अप्रासंगिक और अर्थहीन सा नजर आने लगा है। उन्हें हिंदू दर्शन और चिंतन का कोई बोध नहीं है। इसलिए उन्हें इससे जुड़ने और अपनी हिंदू पहचान को बनाए रखने का कोई कारण दिखाई नहीं देता। लेखक ने हिंदू धर्म की विभिन्न अंतरधाराओं का आधुनिक मूल्यों के समकक्ष एक अध्ययन प्रस्तुत किया है। न्याय, समता, प्रकृति प्रेम, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय एवं नारी की स्वतंत्रता का अधिकार, निर्बल और असहाय के प्रति करूणा आदि मूल्य आज के युवा को प्रेरित करते हैं। क्योंकि वे आदिकाल से हिंदू दर्शन का मुख्य आधार रहे हैं। पर उन्हें नई पीढ़ी के सामने बदली हुई परिस्थितियों में पेश करने का प्रयास नहीं किया। जबकि इस पुस्तक में इसका सशक्त प्रयास किया गया है।
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इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यह पुस्तक हिंदू धर्म, संस्कृति और दर्शन का मौलिक चिंतन है। इस पुस्तक को लिखने का उद्देश्य यह है कि वर्तमान पीढ़ी जिनकी मान्यता पूरानी पीढ़ी से कुछ भिन्न हैं उन्हें तथाकथित लिबरल लोग बरगलाकर हिंदू धर्म और संस्कृति से दूर ले जाने का जो प्रयास कर रहे हैं वे उसमें सफल न हों। लेखक ने यह भी दावा किया है कि नई पीढ़ी जब सनातन को नए दृष्टिकोण से देखेगी तो वह कुंठा और हीन भावना से उभरेगी और वे यह महसूस करेंगे कि आज का लिबरल वर्ग जिन मूल्यों को अपना बताकर ढिंढोरा पीट रहा है वह वास्तव में सनातन के पुराने सशक्त मूल्य ही हैं। हिंदू समाज में शताब्दियों से प्रेम के भावों को सदियों पहले स्वीकार किया गया है। लेखक ने इस बात का भी उल्लेख किया है कि उन्होंने इस पुस्तक का नाम इनसाइड हिंदू माॅल क्यों रखा है। उनका कहना है कि उन्होंने एक आधुनिक माॅल की कल्पना की है जिसमें हिंदू धर्म से संबंधित विभिन्न परिकल्पनाओं के स्टाॅल लगे हुए हैं। जैसे तार्किकता, वैज्ञानिकता, विश्व बंधुत्व, आर्थिक सुरक्षा, प्रकृति का संरक्षण, समरसता आदि प्रमुख हैं। इनमें से नई पीढ़ी को जो भी रुचिकर वह उसका ज्ञान प्राप्त कर सकती है।
पुस्तक केवल 239 पृष्ठों पर आधारित है। इसमें 54 विषयों का अलग-अलग उल्लेख किया गया है। इनमें से कुछ प्रमुख ये है- हिंदू कौन?, हिंदू धर्म यानि अरण्य संस्कृति, आर्थिक सुरक्षा की गारंटी, प्रकृति रक्षण, हिंदू धर्म की खामियां, सृजनात्मक नारीवाद, ईश्वर के साथ हमारा संबंध, ग्लोबलाइजेशन: विचारों का, सती प्रथा का सच, हिंदू होने का आनंद, गंगा और हिंदू जबाला, सत्यकाम और महर्षि गौतम, हिंदू कैसा होता है और उसे कैसा होना चाहिए, हमारी प्राणदायिनी शक्ति, परिवर्तनीय हिंदू धर्म आदि प्रमुख हैं।
हिंदू कौन हैं?
यह सदा से चर्चित विषय रहा है। हिंदू धर्म के विराट स्वरूप के बारे में सैकड़ों ग्रंथ हमारे ऋषि और मनिषियों ने लिखे हैं। हिंदू हमेशा वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत में विश्वास रखता है। हिंदू धर्म कुछ सीमा में कैद नहीं है। इसमें यह जरूरी नहीं है कि आप किसी विशेष देवता या धार्मिक ग्रंथ को ही अनिवार्य रूप से ही स्वीकार करें। हिंदू धर्म में स्वतंत्र चिंतन के दरवाजे खुले हुए हैं। यही हिंदू धर्म की शक्ति और सीमा भी है। हिंदू धर्म में इस बात का कोई प्रावधान नहीं है कि अगर तुम किसी विशेष देवी-देवता या पुस्तक पर आस्था व्यक्त नहीं करते हो तो तुम्हे हिंदू धर्म से खारिज कर दिया जाएगा और हिंदू नहीं माना जाएगा। हिंदू धर्म की ये विराट स्वरूप और कल्पना ही हिंदू धर्म की शक्ति है।
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जहां तक इसके लेखक का संबंध है वे हिंदू धर्म के साथ-साथ, इस्लाम, ईसाईयत के प्रकांड पंडित हैं। इतिहास और पुरातत्व एवं दर्शन एवं ज्योतिष पर भी उनकी अदभूत पकड़ है। जिसकी एक झलक इस पुस्तक का अध्ययन करने से मिलती है। मुझे इस पुस्तक में एक कमी यह जरूर महसूस हुई है कि इसकी भाषा में सरलता और प्रवाह की कमी है। कई-कई जगह पर इसके भाव को समझने में कठिनाई होती है। शायद इसका कारण यह है कि विद्वान लेखक ने हिंदू धर्म के दर्शन, विचारधारा के अथाह समुंद्र को एक छोटी सी गागरी में समेटने का प्रयास किया है। इसमें संदेह नहीं कि यह ऐसी पुस्तक है जिसका अध्ययन हर उस व्यक्ति को करना चाहिए जो कि हिंदू धर्म के बारे में जानने में रुचि रखता हो और इसके मूल स्वरूप, मान्यताएं एवं मूल्यों को समझना चाहता है।