लखनऊ: रिहाई मंच ने योगी पुलिस द्वारा मुखबिर रोजगार योजना को मोदी सरकार की पकौड़ा योजना की कड़ी बताते हुए बेरोजगारों का मजाक उड़ाना बताया। सड़क छाप फर्जी विज्ञापनों की की तरह बलरामपुर पुलिस द्वारा जारी विज्ञापन घर बैठे हजारों रुपए कमाएं पर योगी सरकार को बताना चाहिए कि क्या यह भाजपा सरकार की कोई रोजगार योजना है।
जन मंच संयोजक पूर्व आईजी एसआर दारापुरी ने मुखबिरी को रोजगार की संज्ञा देने को हास्यास्पद कहते हुए रोजगार की संज्ञा देने को गलत ठहराया। ये योगी की पुलिस की ईजाद है। इसका कोई प्रावधान नहीं है। मुखबिर भर्ती करना, इसे रोजगार देना कहना गैर कानूनी है। अक्सरहां मुखबिर को गलत काम करने तक की छूट दी जाती है। दरअसल यह अपराधियों और पुलिस के गठजोड़ को समाज में कानूनी स्वरुप देने की कोशिश है। नागरिक के खिलाफ नागरिक को खड़ा करना गलत है। सलवा जुडुम मामले में सुप्रीम कोर्ट भी यह कह चुका है।
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि पुलिस को रोजगार देने का कोई अधिकार नहीं है। कानून में मुखबिर की हैसियत सिर्फ अपराध के संबन्ध में पुलिस को सूचना देना है जिसका नाम पुलिस द्वारा किसी भी स्तर पर सार्वजनिक नहीं किया जाता। लेकिन पुलिस अधीक्षक बलरामपुर द्वारा मुखबिर रोजगार योजना चलाकर इसे सार्वजनिक करते हुए इसे रोजगार कहा जा रहा है।
सरकार की धनराशि को पानी की तरह बहाए जाने की यह योजना नौजवानों को अपराध के लिए प्रेरित करेगी। इस योजना के तहत नौजवानों में अनुचित रुप से धन कमाने की होड़ लगेगी और नौजवान अपने विरोधियों को झूठे मुकदमें में फंसाने के लिए पुलिस को फर्जी सूचनाएं मुहैया कराएगा।आ इस प्रकार समाज में पारस्परिक वैमनस्यता बढ़ेगी और नौजवानों का अपराधीकरण होगा। अब तक केवल पुलिस कर्मचारी तथा अधिकारी तरक्की पाने के लिए फर्जी मुकदमें कायम करते थे, बेगुनाहों को फंसाते और फर्जी मुठभेड़ दिखाकर बेगुनााहों का अंग-भंग और उनकी हत्या करते थे और अब बेकार नौजवान धन प्राप्त करने के लालच में फर्जी सूचनाएं देगा।