आज नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती मनाते हुए कुछ ख़ास बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना बेहद ज़रूरी है। पहली बात तो यह है कि किसी भी महान व्यक्ति को उनके दौर के संदर्भ में ही संपूर्णता से समझा जा सकता है। आज़ादी के आंदोलन में नेताजी के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके राजनीतिक फ़ैसलों को देखने के भी कई नज़रिये हो सकते हैं लेकिन सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि आज नेताजी को उनके बुनियादी विचारों से काटकर उनके नाम का इस्तेमाल वर्तमान समय की राजनीति को साधने के लिए किया जा रहा है। यह शर्मनाक है कि उनके प्रति लोगों के सम्मान का दुरुपयोग दूसरों को अपमानित करने के लिए किया जा रहा है।

चाहे नेताजी हों या पटेल जी, आज भाजपा द्वारा उनको याद करना असल में नेहरू को नीचा दिखाने का एक बहाना भर होता है। दरअसल नेताजी की विचारधारा और मोदी जी की विचारधारा में कोई मेल है ही नहीं। त्रिपुरा में भाजपाई लेनिन की मूर्ति तोड़कर जश्न मना रहे थे। सच तो यह है कि नेताजी न केवल लेनिन को बहुत मानते थे बल्कि 1939 में उनके द्वारा स्थापित पार्टी फ़ॉरवार्ड ब्लॉक पश्चिम बंगाल में 34 साल वामपंथी सरकारी की साझीदार रही है और आज भी लेफ़्ट फ़्रंट में शामिल देश की एक प्रमुख लेफ़्ट पार्टी है। हालाँकि यह बात भी सही है कि लेफ़्ट पार्टी में नेताजी के हिटलर के साथ जाने की आलोचना भी होती रही है।

जब भाजपा नेताजी का सम्मान करने की बात करती है तो वह एक बहुत बड़ा झूठ बोल रही होती है। यदि मौजूदा सरकार सच में नेताजी का सम्मान करती तो वह उनके आज़ादी के विचारों को अपनी नीतियों में शामिल करती। ऐसा करने के बदले आज़ादी के जो अधिकार संविधान ने दिए हैं, यह सरकार उन्हें छीन रही है। अव्वल तो चाहे नेताजी हों या पटेल जी, ये मोदी जी के नाटक पर कुछ बोल नहीं सकते और मोदी जी बिना उनके रास्ते पर चले वोट की फ़सल भी काट सकते हैं। मोदी जी का सच जानना हो तो आडवाणी जी इसके लिए सही व्यक्ति हैं कि कैसे कुर्सी की ज़रूरत के लिए दूसरी पार्टी के बुज़ुर्गों का सम्मान और अपनी पार्टी के बुज़ुर्गों का अपमान किया जाता है।
नेताजी को सच्ची श्रद्धांजलि उनके बताए रास्ते पर चलकर दी जा सकती है। उनके इन शब्दों को हमें याद रखना चाहिए-
“Freedom is not given, it is taken.”
लड़ेंगे, जीतेंगे।
(यह लेख वामपंथी नेता कन्हैया कुमार की फ़ेसबुक वॉल से लिया गया है)