नई दिल्ली : सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय या ब्रांचों की बंदी की वजह से पिछले पांच साल में 26 सरकारी बैंकों की हजारों शाखाओं के मूल अस्तित्व पर असर पड़ा है। बड़ी बात ये है कि इनमें से 75 फीसदी अकेले देश के सबसे बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के हैं। इस अवधि के दौरान एसबीआई में 5 सहयोगी बैंकों और भारतीय महिला बैंक का विलय हुआ था।
मध्यप्रदेश के नीमच निवासी आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी “पीटीआई-भाषा” के साथ रविवार को साझा की। इसके मुताबिक देश के 26 सरकारी बैंकों की वित्तीय वर्ष 2014-15 में 90 शाखाएं, 2015-16 में 126 शाखाएं, 2016-17 में 253 शाखाएं, 2017-18 में 2,083 बैंक शाखाएं और 2018-19 में 875 शाखाएं या तो बंद कर दी गयीं या इन्हें दूसरी बैंक शाखाओं में विलय कर दिया गया।
आरटीआई अर्जी पर मिले जवाब के अनुसार बीते पांच वित्तीय वर्षों में विलय या बंद होने से एसबीआई की सर्वाधिक 2,568 बैंक शाखाएं प्रभावित हुईं।
आरटीआई कार्यकर्ता ने आरबीआई से सरकारी बैंकों की शाखाओं को बंद किये जाने का सबब भी जानना चाहा था। लेकिन उन्हें जवाब नहीं मिला। इस प्रश्न पर केंद्रीय बैंक ने आरटीआई कानून के सम्बद्ध प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि मांगी गयी जानकारी एक सूचना नहीं, बल्कि एक “राय” है।
एनडी टीवी के अनुसार 75 प्रतिशत शाखाएं देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की प्रभावित हुई हैं आरबीआई ने बताया कि स्टेट बैंक आॅफ इंडिया के साथ भारतीय महिला बैंक, स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक आॅफ हैदराबाद, स्टेट बैंक आॅफ मैसूर, स्टेट बैंक आॅफ पटियाला और स्टेट बैंक आॅफ त्रावणकोर का विलय एक अप्रैल 2017 से प्रभावी हुआ था। इसके अलावा, बैंक आॅफ बड़ौदा में विजया बैंक और देना बैंक का विलय एक अप्रैल 2019 से अमल में आया था।
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इस बीच, सार्वजनिक बैंकों के कर्मचारी संगठनों ने इनके विलय को लेकर सरकार की नयी योजना का विरोध तेज कर दिया है। अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) के महासचिव सीएच वेंकटचलम ने “पीटीआई-भाषा” से कहा, “अगर सरकार देश के 10 सरकारी बैंकों को मिलाकर चार बड़े बैंक बनाती है, तो इन बैंकों की कम से कम 7,000 शाखाएं प्रभावित हो सकती हैं।