राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मोहन भागवत ने कहा है कि भारत को गंभीर मंथन कर एक व्यापक जनसंख्या पॉलिसी लाने की जरूरत है। उन्होंने नागपुर में आयोजित संघ के विजयादशमी उत्सव कार्यक्रम में कहा कि जनसंख्या में प्रमाण का भी संतुलन चाहिए। उन्होंने कहा कि जनसंख्या असंतुलन का गंभीर परिणाम हम भुगते हैं। ये पचास साल पहले हुआ था लेकिन आज के समय में भी ऐसा हो रहा है।
मोहन भागवत 3 महीने पहले कर्नाटक की श्री सत्य साईं यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए थे। इस दौरान भागवत ने कहा- जनसंख्या बढ़ाने और खाने का काम तो जानवर भी करते हैं। ये जंगल में सबसे ताकतवर रहने के लिए जरूरी है। ताकतवर ही जिंदा रहेगा, ये जंगल का कानून है। इंसानों में ऐसा नहीं है। इंसानों में जब ताकतवर दूसरे की रक्षा करता है तो ये ही इंसानियत की निशानी है।
संघ प्रमुख ने साफ कहा कि जनसंख्या को लेकर एक समग्र नीति बननी चाहिए और उसमें किसी को छूट नहीं मिलनी चाहिए। सभी पर समान रूप से नीति लागू होनी चाहिए। यदि कोई चीज लाभ वाली बात है तो समाज आसानी से स्वीकार कर लेता है। लेकिन जहां देश के लिए छोड़ना पड़ता है तो थोड़ी दिक्कत आती है।
दशहरा कार्यक्रम के दौरान भागवत ने कहा, रोजगार मतलब नौकरी और नौकरी के पीछे ही भागेंगे और वह भी सरकारी। अगर ऐसे सब लोग दौड़ेंगे तो नौकरी कितनी दे सकते हैं? किसी भी समाज में सरकारी और प्राइवेट में मिलाकर ज़्यादा से ज़्यादा 10, 20, 30 प्रतिशत नौकरी होती हैं। बाकी सब को अपना काम करना पड़ता है।