नई दिल्ली: मोदी कैबिनेट ने ने बुधवार को तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाने वाले अध्यादेश को पास कर दिया. तीन तलाक बिल को संसद के दोनों सदनों में पास कराने में असफल रहने के बाद केंद्र सरकार ने अध्यादेश का रास्ता चुना है. उधर इस पर तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं. मामले में समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान ने भी अपना पक्ष रखा है.
आजम खान ने कहा कि बीजेपी का तो ये चुनावी मुद्दा है. हम बस इतना कहना चाहते हैं कि जो इस्लामिक शरह के ऐतबार से जायज है, वही सही है. तलाक पर कानून बने या न बने अल्लाह के कानून से बड़ा कोई कानून नहीं है. हम तो तलाक के मामले में अल्लाह के कानून को ही मानेंगे.
पिछले महीने 16 वीं लोकसभा का कार्यकाल पूरा होने के बाद पिछला विधेयक निष्प्रभावी हो गया था क्योंकि यह राज्यसभा में लंबित था. दरअसल, लोकसभा में किसी विधेयक के पारित हो जाने और राज्यसभा में उसके लंबित रहने की स्थिति में निचले सदन (लोकसभा) के भंग होने पर वह विधेयक निष्प्रभावी हो जाता है.
सरकार ने सितंबर 2018 और फरवरी 2019 में दो बार तीन तलाक अध्यादेश जारी किया था. इसका कारण यह है कि लोकसभा में इस विवादास्पद विधेयक के पारित होने के बाद वह राज्यसभा में लंबित रहा था. मुस्लिम महिला अध्यादेश, 2019 के तहत तीन तलाक के तहत तलाक अवैध, अमान्य है और पति को इसके लिए तीन साल तक की कैद की सजा हो सकती है.
‘तीन तलाक’ और ‘निकाह हलाला’ का उन्मूलन जरूरी: राष्ट्रपति कोविंद
इससे पहले देश की प्रगति में महिलाओं की समान भागीदारी और महिला सशक्तीकरण को केंद्र सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक बताते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बृहस्पतिवार को कहा कि उद्योग और कॉरपोरेट क्षेत्र के सहयोग से महिलाओं को रोजगार के बेहतर अवसर दिलाने के प्रयास किए जाएंगे. उन्होंने ‘तीन तलाक’ और ‘निकाह-हलाला’ जैसी कुप्रथाओं के उन्मूलन को भी जरूरी बताया.
संसद के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन में अपने अभिभाषण में कोविंद ने कहा, ‘‘महिला सशक्तीकरण, मेरी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है. नारी का सबल होना तथा समाज और अर्थ-व्यवस्था में उनकी प्रभावी भागीदारी, एक विकसित समाज की कसौटी होती है. सरकार की यह सोच है कि न केवल महिलाओं का विकास हो, बल्कि महिलाओं के नेतृत्व में विकास हो.’’