नई दिल्ली : देश में मुसलमानों की सबसे बड़ी जमात जमीयत उलमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना कारी उस्मान मंसूरपुरी के इंतकाल के बाद संगठन में महासचिव का पद संभाल रहे मौलाना महमूद मदनी को सर्वसम्मति से जमीयत का कार्यवाहक राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया है, गुरुवार को दिल्ली में जमीयत उलमा हिंद मुख्यालय में मजलिस आमला की बैठक में कई सदस्य ऑनलाइन शामिल रहे.
आइये जानते हैं जमीयत के नवनिर्वाचित अध्यक्ष के बारे में कुछ ख़ास बातें.
मौलाना और विवादों का ताना-बाना
मौलाना ने बाबरी मस्जिद को लेकर विवादास्पद बयान दिया था, जिसको लेकर उनकी चौतरफ़ा आलोचना हुई, यहाँ तक कि उन्हें इस मामले में सफाई देनी पड़ी थी, मौलाना ने विवादित बाबरी ढांचे को मस्जिद मानने से ही इन्कार कर दिया था.
मदनी ने कहा था कि किसी मंदिर को तोड़कर बनाई गई जगह इबादतगाह नहीं बन सकती, जबरदस्ती किसी का घर या मंदिर छीनकर अल्लाह का घर नहीं बनाया जा सकता, मदनी ने कहा था कि भगवान श्री रामचंद्र देश के बहुसंख्यक हिंदू धर्म के लोगों की आस्था के प्रतीक हैं, मुस्लिमों को भगवान श्रीराम के अनादर की इजाजत नहीं है.
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इस बयान को लेकर विवाद होने पर मौलाना को सफाई देनी पड़ी, जमीयत उलमा-ए-हिंद के मीडिया इंचार्ज अजीमुल्लाह सिद्दीकी की ओर से मौलाना मदनी का पक्ष रखा गया, जारी बयान में कहा गया कि मौलाना मदनी के बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया, जो पूरी तरह भ्रामक एवं तथ्यों के खिलाफ है.
उन्होंने हरगिज नहीं कहा कि वह बाबरी मस्जिद के ढांचे को मस्जिद नहीं मानते, उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि बीबीसी गुजराती के कार्यक्रम में बाबरी मस्जिद को मस्जिद मानने का सवाल किया गया जिस पर मदनी ने कहा कि हाँ मैं उसे मस्जिद मानता हूँ.
इसके साथ ही उन्होंने आम संदर्भ में यह भी कहा कि इस्लाम में किसी मंदिर को तोडक़र या किसी की जमीन पर अवैध कब्जा करके मस्जिद नहीं बनाई जा सकती, साथ ही कहा था कि अयोध्या विवाद को या तो आपसी सहमति से हल किया जा सकता है या फिर सब पक्षों को अदालत के फैसले को स्वीकार करना चाहिए.
मौलाना ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी भेदभावपूर्ण बताया था.
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों ने एक तरफ तो अयोध्या में विवादित ढाँचे के अंदर मूर्ति रखने और फिर उसे तोड़ने को गलत ठहराया है, वहीं, यह जगह उन्हीं लोगों को दे दी जिन्होंने मस्जिद तोड़ी, यह एक विशेष वर्ग के खिलाफ भेदभाव है जिसकी बिल्कुल आशा नहीं थी.
मदनी ने अपने बयान में कहा था कि इस फैसले से न्यायालय पर अल्पसंख्यकों का विश्वास डगमगा रहा है, उनके साथ अन्याय हुआ है, यह सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वह संविधान की हिमायत करे और संविधान में दर्ज मुसलमानों की धार्मिक इबादत और धार्मिक स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए फैसला करे, जिसमें विवादित ढाँचे में भी इबादत का हक़ शामिल है.
मौलाना महमूद मदनी की ज़िन्दगी से जुड़े कुछ किस्से
क्रांतिकारी मौलाना हुसैन अहमद मदनी के पोते और विख्यात आलिम-ए-दीन मौलाना असद मदनी के पुत्र मौलाना महमूद मदनी का जन्म 3 मार्च 1964 को देवबन्द में हुआ था, वह एक भारतीय राजनीतिज्ञ और इस्लामी विद्वान हैं, वह 2006 से 2012 तक राज्य सभा के सदस्य भी रहे हैं, मौलाना महमूद मदनी अभी तक जमीयत उलमा ए हिन्द के राष्ट्रीय महासचिव पद की ज़िम्मेदारी सम्भाल रहे थे.
मौलाना को पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को बहादुरी से दिए जवाब के चलते विश्व ख्याति मिली, मौलाना महमूद मदनी ने परवेज़ मुशर्रफ को सख़्त लहज़े में जवाब देते हुए कहा था कि भारतीय मुसलमानों के मुद्दों में दख़ल देने की उन्हें कोई ज़रूरत नही है.
पिता को और मौलाना को मोहल्ले के मुसलमान गाली देते थे इसलिये मौलाना जमीयत से नही जुड़ना चाहते थे.
महमूद मदनी ने बताया कि मैं अमरोहा में पढ़ता था, उस ज़माने में कुछ विवाद हुआ तो लोग मेरे पिता को गाली देते थे, मुहल्ले के मुसलमान लोग ख़ासतौर से मुझे गालियाँ दिया करते थे, तब दिल में ये बातें आई कि मुझे न तो जमीयत करनी है और न ही राजनीति, मैंने सोचा था कि मैं अपना कारोबार करूँगा, एक और बात थी कि हमने बचपन से जवानी तक अपने पिता को घर में मेहमान की तरह देखा.
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जब मैंने दारुल उलूम देवबंद से अपनी तालीम पूरी की तो उसके बाद मैंने लकड़ी का कारोबार शुरू किया, मेरा बिज़नेस बहुत अच्छा चल रहा था, तभी संगठन ने फ़ैसला किया कि मुझे थोड़ा समय संगठन को देना चाहिए, शुरुआती हिचकिचाहट के बाद मैंने कहा कि चलिए महीने में दस दिन मैं संगठन को दूँगा, तो इस तरह मर्जी़ के ख़िलाफ़ मुझे संगठन में फंसना पड़ा.
मौलाना को हो गया था पोलियो
मौलाना ने बताया मैं अमरोहा में पढ़ता था और फूफी के पास रहता था, तभी मेरी पिंडलियों में ऐंठन होने लगी, वहाँ डॉक्टरों की समझ में नहीं आया, फिर दिल्ली में डॉक्टर करौली को दिखाया, उन्होंने कहा कि मुझे पोलियो हो गया है, लेकिन वक़्त रहते डॉक्टर के पास जाने से ठीक हो गया.
पिता ने साथ दिया होता तो हिंदुस्तान में हम भाइयों से बड़ा स्कॉलर नही होता
मौलाना बताते हैं कि मेरी विचारधारा, देश, मुस्लिम कौम के बारे मेरा नज़रिया जो कुछ भी आपको दिखता है उन सभी पर मेरा पिता का पूरा-पूरा असर है, हालांकि बचपन में वो हमसे दूर रहे, लेकिन उनके आखिरी वर्षों में संगठन में मेरा और उनका साथ रहा, उसने मेरे जीवन को नई दिशा दी.
मैं तो ये कहता हूँ कि काश बचपन से ही हमें उनका साथ मिला होता और हमारी पढ़ाई पर उन्होंने ध्यान दिया होता तो मैं पूरे यकीन के साथ कहता हूँ कि हम भाइयों की टक्कर का हिंदुस्तान में कोई स्कॉलर नहीं होता.
हालाँकि इससे सबक़ लेते मुझे बहुत कुछ सीखना चाहिए था, लेकिन मैं भी उनकी ही राह पर चल रहा हूँ, मेरी तीन बेटियाँ और एक बेटा है, मैं भी अपने बच्चों से दूर हूँ, जमीयत का काम ही ऐसा है कि हमें अपने परिवार से दूर रहना पड़ता है.
दरअसल, मेरे पिता को देशभर में कई-कई जगह जाना पड़ता था. वो सिर्फ़ रमजा़न का एक महीना ही घर में गुजा़रा करते थे, तो उनके जो समर्थक हैं वो कहते हैं कि वो मुझे मेरे पिता की जगह देखते हैं, इसलिए मिशन और उनके खातिर जाना पड़ता है.
मौलाना ने की थी अपनी पसन्द से शादी
अपनी पत्नी उज़्मा मदनी के बारे में मौलाना ने बताया कि वो मेरे पड़ोस में ही रहती थी, बचपन से ही एक-दूसरे के घरों में आना जाना था.
मेरे वालिद साहब बहुत खुले दिमाग के व्यक्ति थे, उन्होंने मेरी फूफी से कहा कि महमूद से पूछो कि वो शादी कहाँ करना चाहता है, मैंने फूफी को अपनी पसंद बता दी, हालाँकि परिवार में कुछ लोगों को आपत्ति थी, इस पर मेरे वालिद ने कहा कि ज़िंदगी उसे गुजारनी है तो फ़ैसला भी उसका ही होगा, मेरे वालिद मेरा रिश्ता लेकर खुद गए थे, हालांकि बाद में मौलाना ने गुजरात की फैमिली में एक और शादी की, वर्तमान में उनकी दो बीवियां हैं.
कुत्ता चाट रहा था मौलाना का मुँह
गुजरात के कच्छ में आये भूकम्प के बारे में याद करते हुये मौलाना ने बताया कि वहाँ के हालात देखने के बाद मैंने वहाँ रुकने का फ़ैसला किया, वहाँ तकरीबन तीन हफ़्ते तक हमने ऐसा खाना खाया कि रोटी में रेत होती थी, मुझे मुँह खोलकर सोने की आदत है, एक दिन रात में मैं टैंट में सोया था तो लगा कि गर्म-गर्म सांसे आ रही हैं, जब आँख खुली तो देखा कि एक कुत्ता मेरा मुँह चाट रहा था.
मौलाना द्वारा बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू से लिए गये हैं.