महिला दिवस के दिन टिकरी बोर्डर पर हज़ारों महिलाओं की उपस्थिति को सबने एक फ़ोटो फ़्रेम में समेट दिया और साझा करने लगे। उस फ़्रेम में बसंती रंग की चुन्नियां ओढ़ कर बैठी हज़ारों महिलाएँ उस रंग की आभा में समाहित थीं। संख्या और भीड़ का बोध करा रही थीं।
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लेकिन जिस एक फ़्रेम वाली तस्वीर से वे लोगों तक पहुँची उसी एक फ़्रेम की वजह से उनकी कहानियाँ लोगों तक पहुँचने से रह गईं। जबकि कहानी यह थी कि हज़ारों की तादाद में आईं इन महिलाओं के बीच कृषि क़ानूनों कौन सी साझा स्मृतियों को उकेरता है,
खेती का वह कौन सा दुख है जो महिलाओं को भारतीय किसान यूनियन उग्राहां के बैनर तले राजनीतिक कार्यकर्ता में बदल रहा है। इसके लिए इन महिला किसानों को किस तरह की राजनीतिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ा है?
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बहुत से सवालों के जवाब तो नहीं मिले लेकिन एक कोशिश तो की। अपने गाँव और ब्लाक से लेकर संगठन की राज्य इकाई में कई तरह के पद सँभाल रही ये महिलाओं नेता की भूमिका में आई थीं।