क्या वाक़ई ऐसा है कि लोग ख़ुशी ख़ुशी सौ रुपये लीटर पेट्रोल ख़रीद रहे हैं और उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता? या वे बोलने से भयभीत हैं?
सरकार ने अपनी तरफ़ से जनता को सफ़ाई नहीं दी। एकाध आधा अधूरा औपचारिक बयान देकर छोड़ दिया। कुछ कुछ महीने पर इस तरह के दाम का बढ़ना एक पैटर्न हो गया है।
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फिर राहत दे दो। इस तरह से जनता और ग़रीब होती जा रही है। तेल से सरकार की कमाई बढ़ती जा रही है। विपक्ष का नाम लेकर जनता की तकलीफ़ का मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है।
अगर विपक्ष प्रदर्शन न करे तो क्या सरकार जनता के पैसे हड़प लेगी? तो मान लिया जाए कि विपक्ष के कुछ न करने की सजा जनता को दी जा रही है? हर दिन विपक्ष तेल के दाम को लेकर कुछ न कुछ बोल रहा है। न कहीं छपता है और न दिखाया जाता है।
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अख़बारों में भी ऐसी रिपोर्ट नदारद है कि तेल के दाम बढ़ने से अलग अलग वर्ग के लोगों की कमाई पर क्या असर पड़ा है? क्या उज्ज्वला के उपभोक्ता 800 का सिलेंडर ख़रीद पा रहे हैं ?