“कोविड के बाद अनलॉक हो रहे शहरों में कामगार मज़दूरों को पहुँचाने में रेलवे अहम भूमिका निभा रही है। सात दिनों में 33 लाख यात्रियों और प्रवासी मज़दूरों ने रेलवे में सफ़र किया है।”
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रेल मंत्री ने इस सूचना को ऐसे पेश किया है जैसे कोई बड़ी भारी कामयाबी हो। रेलवे अगर मुफ़्त में प्रवासी मज़दूरों को पहुँचा रही होती तो अलग बात थी। अब पहुँचाना भी बड़ी बात हो गई है? क्या रेलवे प्रवासी मज़दूरों की अलग से कोई गिनती करती है?
यात्रियों और प्रवासी मज़दूर एक साथ लिख दिया है। इसी तरह से परिवहन मंत्री को भी ट्वीट कर देना चाहिए कि कितनी कारें हाइवे पर चली हैं। उसे भी सफलता में गिना दें। हद है। इंटरनेट पर सर्च किया कि हर दिन कितने लोग रेल से सफ़र करते हैं । तो पता चला कि दो करोड़ से अधिक लोग सफ़र करते हैं।
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यहाँ मंत्री जी क्या बता रहे हैं कि 7 दिन में 33 लाख लोगों ने कोविड के नियमों के साथ सफ़र किया है। कहाँ एक दिन में दो करोड़ यात्री सफ़र करते थे और कहाँ एक दिन में पाँच लाख कर रहे हैं ।
यह कोई बताने लायक़ सफलता है ? इन्हें पता है ऐसे पोस्टरों, दावों और भाषणों से लोगों का विवेक ख़त्म कर दिया गया है। लोग पोस्टर देखते ही सफलता समझ लेंगे क्योंकि दावा सफलता का है। कोई अपना दिमाग़ नहीं लगाएगा।