तुकबंदी की भी हद होती है। G-7 की बैठक में one earth, one health का मंत्र दे आए। अख़बारों ने ऐसे छाप दिया जैसे कोई बड़ा भारी मंत्र दे दिया हो। पिछले साल लोकल लोकल कहने वाले प्रधानमंत्री फिर से ग्लोबल हेल्थ की बात करने लगे हैं। लेकिन आप सोच कर देखिए, इस नारे का कोई तुक बनता है।
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लोगों ने इस सतही नारे को सुन कर क्या सोचा होगा कि one earth, one health होता क्या है। हर चीज़ one nation one ration, one nation election नहीं है। तो स्वास्थ्य की एक नीति बन सकती है और न पूरी दुनिया पर एक नीति लागू की जा सकती है।
जो देश स्वास्थ्य के मामले में सबसे ख़राब हो, जिसे दुनिया ने देखा कि अस्पताल में बिस्तर से लेकर दवा तक के लिए तरस रहे हों, उस देश की तरफ से प्रधानमंत्री बता रहे हैं कि महामारी से कैसे सबने मिल कर लड़ा?
क्या उन देशों को पता नहीं कि भारत में क्या हुआ। कमाल ही है। सबको अपने हाल पर छोड़ कर दुनिया को ज्ञान दे रहे हैं कि भारत में सबने मिल कर लड़ा। यही मॉडल है one earth one health का। ये है क्या ?
स्कूल की दीवार और ट्रक के पीछे स्लोगन लिखवाने की चाहत से परहेज़ करना चाहिए। अगर इतना ही हर बात में one nation one nation नज़र आता है तो कहीं अगली बार आइडिया न दे आएं कि one earth one nation होना चाहिए।
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कोई एक ही आदमी हो जो पूरी दुनिया भर में झूठ बोलता रहे। ठीक है कि मीडिया प्रधानमंत्री के इस विचित्र स्लोगन को महान बताने लगे लेकिन आप खुद सोचिए कि one earth one health क्या होता है?
आप पहले अपने देश में तो स्वास्थ्य को बेहतर कीजिए, फिर दुनिया को सस्ता स्लोगन बांटते रहिएगा। लेकिन बांटने से पहले एक बार सोच तो लेना चाहिए कि बोल क्या करें।