मार्च और अप्रैल का महीना नरसंहार, लूट और बेबसी का था। बोलने वाले बोलते रहे लेकिन लूट जारी रही। सरकार भले चुप रही लेकिन अदालतें बोलती रहीं। उनका बोलना भी बोलना ही रहा। बांबे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने कई दिनों की सुनवाई के बाद कहा कि औरंगाबाद के GMCH मेडिकल कॉलेज को पीएम केयर्स से जो वेंटिलेटर मिला है, वो ख़राब है।
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इसके कारण किसी जान जाती है तो केंद्र सरकार ज़िम्मेदार है। राजकोट की एक कंपनी इस वेंटिलेटर को बनाती है। इतनी लाशों को देखने के बाद भी लोग चुप हैं कि घटिया वेंटिलेटर की सप्लाई कैसे की गई। ख़बरें छप रही हैं। हम दिखा रहे हैं। सरकार कुछ नहीं बोलती। लोग सुनकर चुप हो जाते हैं। बीजेपी कांग्रेस करने में व्यस्त हो जाते हैं। जबकि अस्पतालों के बाहर और भीतर किसके समर्थक और नेता की मौत नहीं हुई है।
दूसरी बात, अगर इस पर जनसुनवाई हो जाए कि अस्पतालों ने कैसे कैसे लूटा है जो आज भारत में हंगामा मच जाए। लेकिन लोग लाखों रुपये लुटा देने के बाद भी नहीं बोल रहे हैं। अपनों के मर जाने के बाद भी चुप्पी है। अब और क्या गँवाना चाहते हैं। इस डर और चुप्पी की कितनी क़ीमत वसूली गई है आपने देखा है।
हर दूसरे के पास अस्पतालों में ज़्यादा बिल और कैश में भुगतान की धमकी के भयानक क़िस्से होंगे। अस्पतालों ने कैश के नाम पर लूट की है। वे हर तरह की जवाबदेही से मुक्त है। न उनके इलाज की गुणवत्ता की जाँच हो सकती है, न किस तरह से बिल बना है, उसकी जाँच हो सकती है और न इसकी कैश में पैसे क्यों लिए गए जब परिजन के पास दूसरे विकल्प मौजूद थे।
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आयकर विभाग भी इनके खाते चेक नहीं करेगा।
नरसंहार का भयानक मंज़र देखने के बाद अगर नागरिकता का यह किरदार सामने आता है कि हम चुप ही रहें तो फिर आपको यह चुप्पी मुबारक हो। उन्हें भी जो आई टी सेल के हैं और दो रुपये लेकर कमेंट में गालियाँ लिखते हैं। मोदी मोदी करते हैं। कीजिए।