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शिया सुन्नी जंग कराने का अमरीकी षड्यंत्र: एजाज़ क़मर

Agha Khursheed Khan by Agha Khursheed Khan
जनवरी 22, 2020
in विदेश
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शिया सुन्नी जंग कराने का अमरीकी षड्यंत्र: एजाज़ क़मर
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पश्चिमी देश शिया-सुन्नी के बीच मे जंग कराकर मुस्लिम देशो के सैनिक ढांचे को तबाह कर देना चाहते है, ताकि हैकल सुलेमानी मंदिर और ग्रेटर इसराइल के निर्माण के रास्ते मे आने वाली रुकावट को दूर किया जा सके।
कासिम सुलेमानी की हत्या के बावजूद भी युद्ध टालने के लिये ईरान ने सहनशीलता और समझदारी का परिचय दिया, तो अमेरिका ने यमन मे ईरान के एक और वरिष्ठ सैनिक अधिकारी अब्दुल रज़ा शैलाई के ऊपर हमला कर दिया।
अमेरिका जानता है, कि ईरान अमरीका की भूमी पर पहुंचकर हमला नही कर सकता है, किन्तु वह बदला लेने के लिये खाड़ी के सुन्नी अरब देशो मे मौजूद अमरीकी अड्डो पर हमला करेगा, जिससे सुन्नी-अरब और शिया-ईरान और उसके समर्थको के बीच मे युद्ध शुरू हो जायेगा।
सामान्यत: अमेरिका और ईरान के बीच मे जंगी तनाव का कारण अमेरिका की क्षेत्र मे उपस्थिति और गुंडागर्दी है, सामान्य अध्ययन से पता चलता है,
कि अमेरिका खाड़ी के मुस्लिम देशो की तेल की अक़ूत संपत्ति पर अपना कब्जा बनाए रखने, उन्हे डॉलर मे व्यापार करने, आमदनी का एक बड़ा हिस्सा अमरीका मे निवेश करने और पश्चिमी देशो के हथियार खरीदने के लिये खाड़ी के मुस्लिम देशो को मजबूर करता रहा है।
किंतु वास्तव मे समस्या धर्मान्धता अर्थात सभ्यताओ की लड़ाई (Clash of Civilization) है, जिसके बारे मे मीडिया चर्चा नही करती है।
बुश परिवार के व्हाइट हाउस मे आने के बाद अमरीकी नीतियो पर ईसाइयत का गहरा प्रभाव पड़ने लगा था, क्योकि जॉर्ज बुश जूनियर चरित्रहीन नौजवान थे, किंतु उनकी पत्नी ने उन्हे नशे और दूसरी बुराइयो से बचाकर सुधार दिया था।
इस चरित्र निर्माण मे सबसे महत्वपूर्ण किरदार उनकी पत्नी के ईसाई संप्रदाय यूनाइटेड मेथोडिस्ट चर्च का था, जबकि बुश परिवार का परंपरागत ईसाई संप्रदाय एपिस्कोपल चर्च था, इसलिये बुश ने यूनाइटेड मेथोडिस्ट के कट्टरपंथी विचारो (Evengelist) को अपना लिया।
भारत के स्वयंभू आध्यात्मिक गुरूओ (साधू) की तरह बुश की बयानबाजी और हरकते देखकर अमरीकी प्रशासन विशेषकर सी०आई०ए० भी सकते मे आ गया था,
क्योकि वह स्वयं को भगवान का चुना हुआ व्यक्ति बताने लगा था और कभी-कभी भगवान से उसको आदेश प्राप्त होने की मूर्खतापूर्ण बाते भी करता था।
उसकी इन्ही हरकतो की वजह से उसका नाम इलुमिनाती जैसी शैतानी संस्थाओ से भी जोड़ा जाता है, एक बार तो उसने सद्दाम हुसैन से अमेरिकी लड़ाई को क्रूसडर कहकर तहलका मचा दिया था, जिस पर सी०आई०ए० ने बहुत मेहनत से पर्दा डाला था।
फेडरल बैंक से लेकर हवाई जहाज बनाने के कारखानो तक के मालिक यहूदी है, इसलिये अमेरिका की राजनीति पर यहूदियो का बहुत प्रभाव है।
यहूदियो का यह विश्वास है, कि तीसरे विश्वयुद्ध के बाद जब 99% जनसंख्या मर जायेगी, तब उनका मसीहा आयेगा और सारे विश्व मे यहूदियो के शासन के लिये एकमात्र राज्य की स्थापना करेगा।
ईसाइयो का विश्वास है, कि यहूदियो का मसीहा एंटी क्राइस्ट होगा, जिस से लड़ने के लिए स्वयं ईसा मसीह (क्राइस्ट) दोबारा विश्व मे आयेगे अर्थात जब तक यहूदियो का मसीहा नही आएगा, तब तक यशु मसीह भी दोबारा नही आयेगे।
ओबामा धर्मान्ध व्यक्ति नही थे, इसलिये नितिनयाहू की बातो का उन पर कोई प्रभाव नही पड़ता था, एक बार नितिनयाहू ने नाराज होकर ओबामा को बाइबल की एक भविष्यवाणी बताई,  जिसमे यर्मीयाह (पैगम्बर) कहता है, कि “मेरे पुत्र ईरान का धनुष तोड़ेगे” अर्थात इसरायल ईरान का परमाणु संयंत्र नष्ट कर देगा।
ट्रम्प को सत्ता मे बिठाने मे यहूदी लॉबी का बहुत बड़ा योगदान है, ट्रम्प का दमाद कट्टरपंथी अमरीकी यहूदियो का नेता है और जिसके दबाव मे चलते अमरीका ने यरूशलम को इसरायल की राजधानी बना दिया है, ट्रम्प बार-बार युद्ध की धमकिया देता रहता है, क्योकि जब तक विश्व युद्ध नही होगा, तब तक मसीहा नही आयेगा।
युद्ध को भड़काने के लिये ट्रम्प ने ईरान के दूसरे सबसे लोकप्रिय व्यक्ति कासिम सुलेमानी की हत्या का आदेश दिया, किंतु इससे सारे विश्व मे अमेरिका की आलोचना हुई और वह राजनीतिक पटल पर अकेला पड़ गया।
तब अपने षड्यंत्र को विफल होते देख इसरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने ईरान को वायु सुरक्षा दे रही रशियन सुरक्षा प्रणाली के तैनात सिक्योरिटी यूनिट 8200 द्वारा उपयोग किये जा रहे कंप्यूटर मे घुसपैठ द्वारा (Software Hacking) अर्थात साइबर हमला करके यूक्रेन के विमान पी०एस० 752 को मार गिराया और इसका इल्जाम ईरान के ऊपर लगा दिया, ताकि पश्चिमी देश ईरान के विरुद्ध हो जाये।
षड्यंत्र का भंडाफोड़ करते हुये मशहूर अमरीकी खोजी पत्रकार जेरेमी रुथ कुशल (Jeremy Rothe-Kushel) ने लिखा, कि शत्रु के हवाई जहाज और मिसाइल को मार गिराने वाले एंटी मिसाइल सिस्टम और कुछ मिसाइलो मे “मित्र और शत्रु” (freind and foe) के विमान को पहचानने के लिये एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम या चिप (हार्डवेयर) लगाया जाता है, ताकि मानवीय गलती के कारण कही तैनात सुरक्षा अधिकारी अपने ही देश के विमान को ना मार गिराये।
उस समय ईरान की वायु सेना रशिया के बनाये हुये सिक्योरिटी सिस्टम (यूनिट 8200) को उपयोग कर रही थी, जिस के सॉफ्टवेयर प्रोग्राम को नियंत्रित करके ही यह खेल रचा गया।
उन्होने आगे लिखा, पिछले वर्ष ईरान ने रूस के ऊपर आरोप लगाया था, कि उसने ईरान को बेचे गये “S-300 एंटी मिसाइल सिस्टम” का सिक्योरिटी पासवर्ड इसराइल को दे दिया है, अब इसराइल ने दोबारा इसी पासवर्ड का इस्तेमाल किया है।
इसराइल के 20% यहूदी रशियन मूल के है और इनमे से अधिकतर दोहरी नागरिक्ता वाले रशियन उद्योगपति है, जिनके दबाव मे आकर पुतिन इसराइल से खुली दुश्मनी नही लेना चाहते है, पहले भी रशिया ने सद्दाम हुसैन और कर्नल गद्दाफी को धोखा दिया है।
पिछले वर्ष इसराइल का मुखपत्र समझे जाने वाले कुवैत के मशहूर अरबी अखबार अल-जरीदा (Al-Jarida) ने खुलासा किया था, कि अमेरिका के बनाये एस-35 इसराइली विमानो ने ईरानी सीमा मे अतिक्रमण करके जासूसी करी है, इसके बाद ईरान मे खलबली मची और कई सैनिक अधिकारियो को बर्खास्त कर दिया गया था।
ईरान रशिया को नाराज नही कर सकता है, क्योकि अमेरिका के विरुद्ध ईरान के पास विकल्प सीमित है, किंतु अब वह बहुत चालाकी से चीन की तरफ झुक रहा है और चीन ईरान मे 400 बिलियन डॉलर निवेश की घोषणा कर चुका है।
यूक्रेन के इस विमान से पहले छह दूसरी विदेशी एयरलाइंस गुजरी थी,
तब इस विमान को ही क्यो मार गिराया गया? इसके जवाब मे उन्होने लिखा इसमे छह ईरानी मूल के कैनेडियन परमाणु वैज्ञानिक मौजूद थे, जिनकी हत्या करना मोसाद का मुख्य उद्देश्य था
मशहूर सी०आई०ए० एजेंट और गुप्तचर संस्थाओ के विदेशी मिशन और ऑपरेशन पर किताबे लिखने वाले मशहूर लेखक रॉबर्ट डी० स्टेले (Robert David Steele) ने जेरेमी का समर्थन करते हुये कहा, कि इस यूक्रेनियन एयरलाइंस का मालिक दोहरी नागरिकता रखने वाला एक यहूदी है और जो इस समय इसराइल मे रह रहा है।
रॉबर्ट ने कहा कि बोइंग विमान मे ऐसे सॉफ्टवेयर लगाये जाते है, जिनको जी०पी०आर०एस० सिस्टम की सहायता से सक्रिय करके विषम परिस्थितियो मे विमान बनाने वाली कंपनी (बोइंग) द्वारा हवाई जहाज पर नियंत्रण किया जा सके।
इसी तकनीक का फायदा उठाते हुये मोसाद ने हवाई जहाज के सिस्टम को आंशिक रूप से बंद (Jammed) करके पायलट को अपंग कर दिया था, फिर दूसरी तरफ एस-300 एंटी मिसाइल सिस्टम मे घुसपैठ (hacking of friend & foe software) करके मिसाइल को जहाज के उपर मार दिया गया।
चन्द मिनटो के अंदर यह घटनाक्रम क्यो घटित हुआ अर्थात हवाई जहाज के उड़ते ही क्यो मार दिया गया? इसका कारण उन्होने बताया, कि अगर पायलट सिस्टम फेलियर की रिपोर्ट करता है, तो उसे आदेश दिया जाता है (सिखाया गया है), कि पायलट हवाई जहाज़ को ज़मीन पर उतारने से पहले आसमान मे कुछ चक्कर लगाकर अपने पेट्रोल की टंकी को खाली कर ले, क्योकि टंकी मे अधिक पेट्रोल होने से जोरदार धमाका होने अर्थात बड़ी हानि होने का खतरा होता है।
दूसरे थोड़ा सा ज्यादा समय मिलने के बाद ईरान की सुरक्षा एजेंसियां विशेषकर हवाई सेना सतर्क हो जाती और षड्यंत्र का भांडा फूट जाता, इसलिए पहले हवाई जहाज का पूरा कम्यूनिकेशन सिस्टम स्विच ऑफ कर दिया गया, ताकि वह रडार की डयूटी पर तैनात ईरानी वायु सैनिको से संवाद ना कर सके और ईरान के सुरक्षा अधिकारियो को ऐसा लगे (भ्रम), कि रडार पर दिखाई देने वाला जहाज (un identify object) शायद अमेरिका का स्टील्थ (रडार पर ना दिखाई देने वाला) एस-35 हवाई जहाज है।
इस सारे विवाद की शुरुआत उस मोबाइल वीडियो से हुई थी, जिसमे विमान के पीछे दो आग के गोले को आते और फिर विमान से टकराते देखा गया था।
मध्य रात्रि को आसमान की तरफ मुंह करके कौन शूटिंग करेगा? इतना सक्रिय और सतर्क व्यक्ति कौन था जिसको यह पता था, कि मध्य रात्रि को हवाई जहाज गिराया जाने वाला है?
10 सेकेंड से भी कम समय मे घटित घटना का इतना सफाई से कैसे वीडियो बना लिया गया? चंद घंटो मे ही बिना किसी जांच और राजनैतिक बयान के न्यूयॉर्क टाइम्स को कैसे पता चला कि वीडियो मे दिखाई देने वाले दो आग के गोले वास्तव मे ईरानी मिसाइले है?
कैनेडा ने पहले 63 नागरिको की सूची जारी करी थी, जो बाद मे घटकर 57 रह गई थी, तहक़ीकात से पता चला कि छह हटाए गये नाम परमाणु वैज्ञानिको के है।
इन संदेहास्पद घटनाओ से षडयंत्र की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है, कि पश्चिमी देश शिया-सुन्नी के बीच मे खूनी संघर्ष कराने को कितने आतुर है।
ईरान के नेता महान मुस्लिम धर्मगुरु अयातुल्लाह खुमेनी बहुत ही समझदार व्यक्ति और दार्शनिक थे, उन्होने जीवन भर शिया-सुन्नी एकता के लिए कार्य किया, उन्होने ईरान-ईराक युद्ध को धर्म युद्ध कहने से इनकार करके और इसे अरब-अजम अर्थात नस्ली लड़ाई बताकर शिया-सुन्नी एकता को बनाये रखा
अयातुल्लाह खुमेनी की मृत्यु के बाद अमेरिका ने सद्दाम हुसैन का तख्ता पलटकर ईराक मे एक शिया सरकार की स्थापना करी, पहले ईरानी सरकार के ईराक मे हस्तक्षेप को जानबूझकर नजरअंदाज किया, फिर अलकायदा और दाइश (ISIL) जैसे वहाबी आतंकवादी संगठनो से लड़ने के लिये ईरान से सहयोग लिया।
मशहूर पाकिस्तान बुद्धिजीवी और राजनैतिक विश्लेषक ओरिया मकबूल जान का मत है, कि अमेरिका चाहता है कि ईरान से लेकर लबनान तक एक शिया राष्ट्र बने,
जिसकी सीमाये इसराइल तक आ जाएं,
ताकि वह सीधे इसराइली सरहद से हिज्बुल्लाह (लबनान और सीरिया), अंसारुल्लाह (यमन), हशदु शेबी, हरकतुल नजाबा, लेवाये अबु-फज़ल अल-अब्बास, असाब अहले हक (ईराक), लेवाये फातीम्यून (अफगानिस्तान), लेवाये जैनब्यून (पाकिस्तान), सिपाह क़ुदस, बासेज (ईरान), कासिम ब्रिगेड (फिलिस्तीन) जैसे शिया आतंकवादी संगठनो को मदद दे सके।
दाइश जैसे वहाबी आतंकवादी संगठनो को सी०आई०ए० और मोसाद पहले से ही मदद कर रही है, फिर जब शिया आतंकवादी संगठनो को इस्राइली मदद मिलेगी, तो क्षेत्र मे ऐसी आग लगेगी जिससे नाइजीरिया से लेकर पाकिस्तान तक के सारे इस्लामिक देश उस आग मे जलकर राख़ हो जायेगे।
लेवाये जैनब्यून की वजह से पाकिस्तान मे संप्रदायिक तनाव बढ़ रहा था, तब इमरान खान ने ईरान का दौरा करके शिया धर्मगुरु अयातुल्लाह खमनई से सारी समस्या पर चर्चा करते हुये अमरीकी और इसराइली षड्यंत्र का पर्दाफाश किया,  इमरान खान के साथ गये सेना अध्यक्ष बाजवा और आई०एस०आई० अध्यक्ष फ़ैज़ अहमद ने सबूत पेश किये।
धर्मगुरु अयातुल्लाह खमनई ने ईरान के सैनिक अधिकारियो को डांट लगाई और एक अधिकारी को बर्खास्त करके आदेश दिया,  कि ईरान सरकार शिया-सुन्नी झगड़े को तुरंत खत्म करे, इसके लिये उन्होने पाकिस्तान और ईराक से ईरान और खाड़ी के अरब देशो के बीच मध्यस्थता का आग्रह किया।
जनरल कासिम सुलेमानी ने अपने धर्मगुरु के आदेश का तुरंत पालन करना शुरू कर दिया, इसी प्रक्रिया मे वह ईराक जा रहे थे, ताकि ईराक की मार्फत सऊदी अरब और ईरान के बीच मे शीघ्र होने वाली गुप्तवार्ता की कार्यसूची (एजेंडा) को अंतिम रूप दिया जा सके।
मोसाद की मार्फत जब यह सूचना अमेरिका को मिली तो ट्रम्प ने कासिम सुलेमानी की हत्या का आदेश दे दिया, ताकि शिया-सुन्नी एकता मे रुकावट डाली जा सके।
अमेरिका शिया-सुन्नी को लड़ाने मे अवश्य कामयाब होगा, क्योंकि पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने कहा था, कि जब दरिया फरहाद के किनारे सोने का पहाड़ निकलेगा तो मेरी उम्मत के दो गिरोह आपस मे इतना लड़ेगे, कि 100 मे से 99 मारे जायेगे।
{ये लेखक के अपने विचार हैं
एज़ाज़ क़मर
(रक्षा, विदेश और राजनीतिक विश्लेषक)
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Tags: #विदेशअमेरिकाइसराइलशिया-सुन्नी
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