मोहम्मद अली और जॉर्ज फोरमैन के मुकाबले की नींव उस समय रखी गई जब मोहम्मद अली ने अचानक हैवीवेट बॉक्सिंग चैंपियन जॉर्ज फ़ोरमैन को फ़ोन मिलाकर उन्हें चुनौती दी, “जॉर्ज क्या तुम में मेरे सामने रिंग में उतरने की हिम्मत है?”
जॉर्ज ने बिना पलक झपकाए जवाब दिया, “कहीं भी, कहीं भी, बशर्ते अच्छा पैसा मिले.” अली ने कहा, “वो लोग एक करोड़ डॉलर देने की बात कर रहे हैं. डॉन किंग कॉन्ट्रैक्ट लेकर तुम्हारे पास आ रहे हैं. मैंने इसे देख लिया है. तुम भी इस पर दस्तख़त कर दो, बशर्ते तुम्हें मुझसे डर न लग रहा हो.”
जॉर्ज फ़ोरमैन ने लगभग चीख़कर कहा, “मैं तुमसे डरूँगा? शुक्र मनाओ, कहीं मेरे हाथों तुम्हारी हत्या न हो जाए.
29 अक्तूबर, 1974. जैसे ही मोहम्मद अली ने ज़ाएर (अब कॉन्गो) की राजधानी किंशासा के ‘ट्वेन्टिएथ ऑफ़ मे’ स्टेडियम की रिंग में कदम रखा, स्टेडियम में बैठे साठ हज़ार दर्शकों ने एक स्वर में गर्जना की, ‘अली! अली! बोमाये!’ मतलब था, ‘अली उसे जान से मार दो!’
समय था सुबह 3 बजकर पैंतालीस मिनट. जी हाँ, आपने सही पढ़ा, तीन बजकर पैंतालीस मिनट. आख़िर क्या वजह थी इतनी सुबह ये बाउट कराने की?
मोहम्मद अली के करियर को नज़दीक से देखने वाले नौरिस प्रीतम बताते हैं, “यह मुकाबला अमरीका में भले ही न हो रहा हो, लेकिन उसको देखने वाले तो ज़्यादातर अमरीका में थे. अमरीका में जब टेलीविज़न का प्राइम टाइम था, उस समय ज़ाएर में सुबह के चार बज रहे होते थे. इसलिए ये मैच इतनी तड़के रखा गया. ये अलग बात है कि ज़ाएर के निवासियों पर इसका कोई असर नहीं हुआ. जब रिंग की घंटी बजी तो पूरा स्टेडियम साठ हज़ार दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था.”
इससे पहले कि मुकाबला शुरू होता, अली ने जॉर्ज फ़ोरमैन से कहा, “तुम मेरे बारे में तब से सुन रहे हो, जब तुम बच्चे हुआ करते थे. अब मैं तुम्हारे सामने साक्षात खड़ा हूँ… तुम्हारा मालिक! मुझे सलाम करो.”
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उस समय लोगों को पता नहीं चल पाया था कि अली फ़ोरमैन से कह क्या रहे हैं. लोगों ने अली को कुछ कहते हुए ज़रूर देखा था और उनके होंठ जॉर्ज फ़ोरमैन के कान से सिर्फ़ बारह इंच दूर थे. फ़ोरमैन की समझ में ही नहीं आया कि इसका वो क्या जवाब दें.
उन्होंने अली के ग्लव्स से अपने ग्लव्स टकराए— मानो कह रहे हों, “शुरू करें!” तभी अली ने अपनी दोनों कलाइयों को सीधा किया. सावधान की मुद्रा में खड़े हुए… आँखें बंद की और ईश्वर से प्रार्थना करने लगे.
मुकाबला शुरू होने से पहले अली ने फ़ोरमैन पर एक तीर और चलाया. अली अपना मुंह उनके कान के पास ले जा कर बोले, “आज इन अफ़्रीकियों के सामने तुम्हारी इतनी पिटाई होने वाली है कि तुम पूरी ज़िंदगी याद रखोंगे.”
रेफ़री क्लेटन ने बीच बचाव किया, “अली नो टॉकिंग. कोई भी बेल्ट के नीचे या गुर्दों पर मुक्का नहीं मारेगा.” अली कहाँ रुकने वाले थे, फिर बोले, “मैं इसको हर जगह मुक्का लगाऊंगा. आज इसको जाना ही जाना है.”
रेफ़री फिर चिल्लाया, “अली मैंने तुम्हें वॉर्न किया था. चुप रहो.” फ़ोरमैन अपने दाँत पीस रहे थे और उनकी आँखों से आग निकल रही थी. अली ने फिर भी कुछ न कुछ बोलना जारी रखा.
रेफ़री ने कहा, “अगर अब तुमने एक शब्द भी आगे कहा तो मैं तुम्हें डिसक्वॉलिफ़ाई कर दूँगा.” अली ने कहा, “आज यह इसी तरह बच सकता है. इसका जनाज़ा निकलना तय है.”
‘अली से मेरी 30 सालों तक ख़तो किताबत चली’
घंटी बजते ही पहला मुक्का अली ने चलाया और उनके दाहिने हाथ का पंच फ़ोरमैन के माथे के बीचों-बीच लगा.
राउंड ख़त्म होते-होते फ़ोरमैन अली को धकियाते हुए रिंग के चारों ओर लगे रस्सों की तरफ़ ले गए.
अली पीठ के बल रस्सों पर गिरकर फ़ोरमैन के बलिष्ठ मुक्कों का सामना करने लगे. रस्सों के बगल में बैठे अली के कोच एंजेलो डंडी पूरी ताकत से चिल्लाए, “गेट अवे फ़्रॉम देअर!”
मुकाबला शुरू होने से पहले ही मोहम्मद अली फ़ोरमैन पर ज़बरदस्त मनोवैज्ञानिक दबाव बना चुके थे.
एक दिन पहले ही उन्होंने संवाददाता सम्मेलन में डींग हांकी थी, “मैं इतना तेज़ हूँ कि अगर मैं तूफ़ान के बीच में दौड़ूँ, तब भी मेरे कपड़े गीले नहीं होंगे. मेरी तेज़ी का अंदाज़ा आप इससे लगा सकते हैं कि कल रात मैंने लाइट का स्विच ऑफ़ किया. इससे पहले कि अँधेरा होता मैं अपने बिस्तर पर पहुंच चुका था.”
लेकिन यह मुकाबला शुरू होने के पहले एक मिनट तक अली ने फ़ोरमैन से एक शब्द भी नहीं कहा. लेकिन फिर वो अपने आप को नहीं रोक पाए.
मोहम्मद अली अपनी आत्मकथा, ‘द ग्रेटेस्ट- माई ओन स्टोरी’ में लिखते हैं, “मैंने फ़ोरमैन से कहा, ‘कम ऑन चैंप! तुम्हारे पास मौका है! मुझे दिखाओ तो सही… क्या-क्या है तुम्हारे पास? अभी तक तुम किंडरगार्टेन के बच्चों पर मुक्के बरसाते आए हो. ये कहते हुए मैंने एक मुक्का उसके मुंह के बीचों-बीच जड़ दिया. मैंने कहा, ‘ये लो… एक और झेलो! मैंने तुम्हें बताया ही नहीं था कि मैं अब तक का सबसे तेज़ हैवीवेट मुक्केबाज़ हूँ. आधा राउंड ख़त्म हो चुका है और तुम मुझ पर एक भी ढंग का मुक्का नहीं मार पाए हो.”
अली अपने पीछे अपने असिस्टेंट कोच बंडनी ब्राउन की आवाज़ साफ़ सुन पा रहे थे, ‘डांस चैंपियन डांस!’ कोच एंजेलो डंडी भी आपे से बाहर हुए जा रहे थे, “मूव अली मूव. गेट ऑफ़ द रोप चैंप!”
अली लिखते हैं, “मैं अपने लोगों से कैसे कहता कि मेरा रस्सों से उठने का कोई इरादा नहीं है. राउंड ख़त्म होते-होते मैंने जॉर्ज के सिर पर तीन सीधे जैब लगाए. मैंने ये भी सोचा कि मैं जॉर्ज को शिक्षा देने का अपना प्रोग्राम जारी रखूँ, नहीं तो ये सोचने लगेगा कि इसके मुक्कों ने मेरी बोलती बंद करवा दी है. मैंने मुक्का मारते हुए फ़ोरमैन पर कटाक्ष किया, ‘बस तुम्हारे मुक्कों में इतना ही दम है? क्या तुम इससे ज़्यादा तेज़ मार ही नहीं सकते?”
जैरी आइज़नबर्ग उस समय एक युवा पत्रकार थे और ‘न्यू जर्सी स्टार लेजर’ ने उन्हें ये मुकाबला कवर करने के लिए किंशासा भेजा था.
आइज़नबर्ग ने बीबीसी को बताया, “जैसे ही राउंड शुरू होने की घंटी बजी, मोहम्मद अली तुरंत रस्सों की तरफ़ चले गए. अली की दुनिया भर में मशहूर, ‘रोप अ डोप’ तकनीक की शुरुआत यहीं से हुई थी. फ़ोरमैन के दिमाग़ में ये बात घर कर चुकी थी कि वो किसी भी ग्लव्स को अपने मुक्के से भेद सकते हैं. मुक्केबाज़ी में अगर आप कोई प्वाइंट मिस करते हैं, तो उसकी भरपाई प्वाइंट जीतने से नहीं की जा सकती. थोड़ी ही देर में फ़ोरमैन की बाहों में दर्द शुरू हो गया. इस दौरान अली लगातार उनसे बातें करते रहे, जिससे उनका गुस्सा और भड़क गया.”
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दिलचस्प बात ये थी कि अली जब भी फ़ोरमैन पर हमला करते, वो हमेशा स्ट्रेट राइट ही मारते. जाने-माने साहित्यकार और पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता नौर्मन मेलर भी उस समय ये भिड़ंत देख रहे थे.
बाद में उन्होंने अपनी किताब ‘द फ़ाइट’ में इसका ज़िक्र करते हुए लिखा, “अली ने पिछले सात सालों में इतने प्रभावशाली मुक्के नहीं बरसाए थे. चैंपियन आमतौर से दूसरे चैंपियनों को दाहिने हाथ से मुक्का नहीं मारते. कम से कम शुरू के राउंड्स में तो कतई नहीं. ये सबसे मुश्किल और सबसे ख़तरनाक ‘पंच’ होता है. मुक्केबाज़ी के पंडित मानते हैं कि दाहिने हाथ को अपने लक्ष्य तक पहुंचने में ज़्यादा समय लगता है. बाएं हाथ की तुलना में कम से कम एक फ़ीट ज़्यादा. अली फ़ोरमैन को सरप्राइज़ करना चाहते थे. पिछले कई सालों मैं किसी ने फ़ोरमैन के प्रति ऐसा असम्मान नहीं दिखाया था.”
मोहम्मद अली अपनी आत्मकथा ‘द ग्रेटेस्ट’ में लिखते हैं, “मैंने फ़ोरमैन को इतनी ज़ोर से पकड़ा कि मुझे उसके दिल की धड़कनें तक साफ़ सुनाईं दीं. उसकी सांस भी रुक-रुककर आ रही थी. इसका अर्थ था कि मेरे मुक्के काम कर रहे थे. मैंने उससे फुसफुसा कर कहा था, ‘यू आर इन बिग ट्रबल बॉए!’ अपनी आँख की ओर देखो. फूल कर कुप्पा हो गई है. अभी आठ और राउंड बाकी है… आठ और! देखो तुम कितने थक गए हो. मैंने तो भी शुरुआत भी नहीं की है और तुम हाँफने लगे हो. तभी पीछे से सैडलर ने फ़ोरमैन से कुछ कहने की कोशिश की. आर्चो मूर भी चिल्लाए. लेकिन मुझे पता था कि फ़ोरमैन उस समय किसी की नहीं सिर्फ़ मेरी ही सुन रहा है.”
नॉर्मन मेलर अपनी किताब ‘द फ़ाइट’ मे लिखते हैं, “अली ने यकायक चार राइट्स और एक लेफ़्ट हुक की झड़ी सी लगा दी. उनका एक मुक्का तो इसना तेज़ पड़ा कि फ़ोरमैन का मुंह 90 डिग्री के कोण पर घूम गया. उनकी सारी ताकत चली गई. उनके मुक्के अली तक पहुंच ही नहीं पा रहे थे और उनका मुंह बुरी तरह से सूज गया शा.”
जैसे ही आठवाँ राउंड ख़त्म होने को आया, अली ने पूरी ताकत से फ़ोरमैन के जबड़े पर स्ट्रेट राइट रसीद किया. पूरे स्टेडियम ने स्तब्ध होकर देखा कि फ़ोरमैन नीचे की तरफ़ गिर रहे हैं.
जेरी आइज़नबर्ग बताते हैं, “जब अली का दूसरा राइट फ़ोरमैन के जबड़े पर पड़ा तो हम सभी ने रुकी हुई सांसों से देखा कि फ़ोरमैन धराशाई हो रहे हैं. इससे पहले मैंने किसी को स्लो मोशन में इस तरह नीचे गिरते नहीं देखा था.”
इस नॉक आउट का शायद सबसे काव्यात्मक वर्णन नॉर्मन मेलर ने अपनी किताब ‘द फ़ाइट’ में किया है.
मेलर लिखते हैं, “आखिरी क्षणों में फ़ोरमैन का चेहरा उस बच्चे की तरह हो गया जिसे अभी-अभी पानी से धोया गया हो. अली का अंतिम पंच लगते ही फ़ोरमैन की बाहें इस तरह हो गईं, जैसे कोई हवाई जहाज़ से पैराशूट से जंप लगा रहा हो.”
ये बॉक्सिंग इतिहास का सबसे बड़ा उलटफेर था. 25 साल और 118 किलो के जॉर्ज फ़ोरमैन के सामने 32 साल के मोहम्मद अली को किसी ने कोई मौका नहीं दिया था. लेकिन अली ने असंभव को संभव कर दिखाया था.
इस मुकाबले के बाद मोहम्मद अली करीब चार सालों तक विश्व हैवीवेट बॉक्सिंग चैंपियन रहे.
तब तक उनकी तरह पूरी दुनिया भी मान चुकी थी कि मोहम्मद अली वास्तव में महान थे.
बॉक्सिंग से संन्यास लेने के बाद मोहम्मद अली भारत आए थे. तब भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने निवास स्थान पर उनका स्वागत किया था.
नौरिस प्रीतम बताते हैं, “नेशनल स्टेडियम में जो अब ध्यानचंद स्टेडियम कहलाता है, मोहम्मद अली का भारत के तत्कालीन हैवीवेट चैंपियन कौर सिंह के साथ एक प्रदर्शनी मैच रखा गया था. उस बाउट में अली सिर्फ़ अपने बांए हाथ का इस्तेमाल कर रहे थे. कौर सिंह के मुक्के अली तक पहुंच ही नहीं रहे थे क्योंकि अली के हाथ बहुत लंबे थे. मैं भी वहां मौजूद था. बाउट के बाद मैंने उनकी पसली पर उंगली मारकर देखा.”
“अली ने हंसते हुए मेरी तरफ़ एक मुक्का ‘फ़ेंक’ दिया था. अगर वो मुझे पड़ जाता तो मैं आज आपके सामने बैठा हुआ अली के बारे में बातें नहीं कर रहा होता.
(लेखक बीबीसी के वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)