नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन में लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) मुजफ्फरनगर, बागपत और मथुरा सीट से चुनाव लड़ने जा रही है। मुजफ्फरनगर सीट से आरएलडी के अध्यक्ष अजित सिंह चुनाव लड़ेंगे। दिलचस्प बात ये है कि जिस मुजफ्फरनगर सीट को लेने के लिए आरएलडी को सपा और बसपा से काफी कोशिशें करनी पड़ी, उसी मुजफ्फरनगर सीट से 48 साल पहले अजित सिंह के पिता चरण सिंह चुनाव लड़े थे लेकिन हार गए थे। अब करीब पांच दशक बाद मुजफ्फरनगर सीट पर चौधरी परिवार का सदस्य चुनाव लड़ने जा रहा है।
1971 में चरण सिंह ने भारतीय क्रांति दल (बीकेडी) के निशान पर मुजफ्फरनगर से इलेक्शन लड़ा था। लोकसभा में उनका ये भले ही पहला चुनाव था लेकिन उस समय उनका कद उत्तर प्रदेश की राजनीति में काफी बड़ा था। वो यूपी के दो बार सीएम रह चुके थे लेकिन अपना पहला लोकसभा चुनाव वो सीपीआई के ठाकुर विजयपाल सिंह से हार गए। ये हार इसलिए भी चौंका गई थी क्योंकि उस समय मुजफ्फरनगर की सभी आठ विधानसभा सीटें बीकेडी के पास थीं। वहीं अजित सिंह की बात करें तो माना जा रहा है कि 80 साल के हो चुके अजित सिंह का ये आखिरी चुनाव है। वहीं अपने पिता के समय के उलट वो ऐसे वक्त में इलेक्शन लड़ रहे हैं जब उनकी पार्टी के पास मुजफ्फरनगर में एक भी विधानसभा सीट नहीं है और वो अपना सियासी रुतबा बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
1971 में चौधरी चरण सिंह की हार के पीछे दो बड़े गुर्जर नेताओं नारायण सिंह और हुकुम सिंह का विरोध बड़ी वजह माना गई थी। इन दोनों नेताओं के वारिसों की बात करें तो बाबू नारायण सिंह के पोते चंदन सिंह अब सपा में हैं, जिससे रालोद का गठबंधन है। वहीं हुकुम सिंह की मौत के बाद उनकी बेटी मृगांका उनकी राजनीतिक विरासत संभालने की कोशिश कर रही हैं। उस समय खतौली से बीकेडी के विधायक वीरेंद्र वर्मा पर भी भीतरघात कर चरण सिंह को हराने के आरोप लगे थे। चरण सिंह की हार के बाद वीरेंद्र वर्मा कांग्रेस में चले गए थे।