फौरी तौर पर राजस्थान कांग्रेस का संकट भले ही निपटा दिया जाए । लेकिन संकट की तीसरी लहर निश्चित रूप से मंत्रिमंडल विस्तार के बाद आना सुनिश्चित है । अभी सिर्फ तो अशोक गहलोत की नाक में दम सचिन पायलट ने कर रखा है । मंत्रिमंडल विस्तार के बाद उन विधायकों को बागी होना स्वाभाविक है जिनको न तो मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी और न ही निगम व बोर्डो में ।
मेरी कल की खबर पर प्रातिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस आलाकमान की ओर से कहा गया है कि यह बात सिरे से गलत है कि सचिन पायलट को इस दफा भी बैरंग दिल्ली से जयपुर लौटना पड़ा है । कांग्रेस के उच्च स्तरीय सूत्रों ने बताया कि राजस्थान संकट निवारण के लिए सर्वमान्य और पुख्ता फार्मूला तैयार कर लिया गया है । राजस्थान के प्रभारी अजय माकन इस पर गंभीरता विचार कर रहे है । पंजाब के बाद राजस्थान की कलह को निपटाने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी । संभवतया इसकी प्रक्रिया अगले सप्ताह से प्रारम्भ हो सकती है ।
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आलाकमान हो या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, दोनों ऐसा फार्मूला तय नही कर पा रहे थे जिससे आग की लपटों को बुझाया जा सके । फिलहाल प्रियंका और राहुल के निर्देश पर होमवर्क तो तेजी से चल रहा है । लेकिन यह फार्मूला टिकाऊ रह पाएगा, इसकी संभावना दूर दूर तक नजर नही आती है । फिलहाल पायलट और उनके समर्थको को चुप रहने का निर्देश दिया गया है । आलाकमान से हुई बातचीत के बाद पायलट खेमा बेहद उत्साहित है ।
मुख्यमंत्री को समझ नही आ रहा है कि वे इतने बीमारों के बीच अनार का वितरण कैसे करे ? नियम के हिसाब से मंत्रिमंडल में 9 विधायकों को समायोजित करना है । जबकि 50 से ज्यादा प्रबल दावेदार है । इनमे पायलट गुट, निर्दलीय, बसपा और खुद गहलोत के विधायक भी शामिल है । पायलट अपने छह विधायको को मंत्रिमंडल में शामिल करने के तलबगार है । यदि इस गुट के पांच विधायको को मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया तो शेष चार का बंटवारा कैसे होगा, यह सबसे बड़ी माथापच्ची ।
दिल्ली से जो खबर छनकर आ रही है, उसके मुताबिक पायलट गुट को दो या तीन, निर्दलीयों को दो, बसपा को एक तथा खुद मुख्यमंत्री समर्थित तीन या चार विधायको को मंत्रिमंडल में स्थान दिया जा सकता है । बाकी अन्य प्रबल दावेदारों को संसदीय सचिव और बोर्ड व निगम का अध्यक्ष बनाकर तात्कालिक संकट दूर किया जा सकता है । लेकिन इसके बाद क्या होगा, मुख्य मुद्दा यही है ।
अभी तक निर्दलीय, बसपा और मूल कांग्रेसी अशोक गहलोत में आस्था व्यक्त कर रहे है । मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों के बाद आएगी खतरनाक बगावत की तीसरी लहर । जब गहलोत में आस्था व्यक्त करने वाले ही बगावत का झंडा लेकर सबसे आगे चलेंगे । राजनीति के जादूगर अशौक गहलोत और आलाकमान भी तीसरी लहर की वेक्सीन खोज पाने में असहाय है ।
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मंत्रिमंडल का विस्तार होगा तो निश्चित रूप से वर्तमान मंत्रियों के पद कतरे जाएंगे । मलाईदार पदों पर बैठने वाले मंत्रियों को जब मोटर गैराज, पशु पालन, देवस्थान, संस्कृत शिक्षा आदि सड़े-गले महकमों में भेजा जाएगा, तब आएगी बगावत की सुनामी । सबसे बड़ी समस्या का केंद्र बिन्दू शेखावटी है । यहां से परसराम मोरदिया, राजेन्द्र पारीक, महादेव सिंह खण्डेला, राजेन्द्र गुढा, नरेंद्र बुडानिया, डॉ जितेंद्र सिंह, राजकुमार शर्मा, दीपेंद्र सिंह, भंवरलाल शर्मा आदि न केवल प्रबल दावेदार है बल्कि वरिष्ठ विधायक भी है । इनमे से अधिकांश विधायक पूर्व में भी मंत्री रह चुके है । इसके अलावा शिक्षा मंत्री गोविंदसिंह डोटासरा भी शेखावटी से ताल्लुक रखते है । इनको मंत्री पद या पीसीसी चीफ में से कोई एक पद गंवाना पड़ सकता है ।
इन सबके बावजूद गहलोत के सबसे खासमखास महेश जोशी और महेंद्र चौधरी को भी पदोन्नत करना है । अगर हेमाराम चौधरी को मंत्रिमंडल में जगह दी जाती है तो हरीश चौधरी का रूठना स्वाभाविक है । गुर्जर कोटे से शकुंतला रावत मन्त्री बनती है तो टीकाराम जूली की छुट्टी होना लाजिमी है । ऐसे में जूली असंतुष्टों की पंगत में शामिल हो सकते है ।
दोनों गुटों में सुलह कभी भी हो, लेकिन बगावत की यह आग स्थायी रूप से बुझने वाली नही है । यदि पायलट के ज्यादा विधायक मंत्री बनने से वंचित रहे तो ये सारी आस्था को ताक पर रखते हुए पायलट के कपड़े फाड़ने में पीछे नही रहेंगे । दीपेंद्र सिंह, हेमाराम चौधरी, रमेश मीणा, विश्वेन्द्र सिंह, भंवरलाल शर्मा, वेदप्रकाश सोलंकी आदि मन्दिर में ढोक देने मानेसर नही गए थे । किसी को मंत्री बनना था तो किसी को चाहिए था मलाईदार विभाग ।
इसी तरह रोज रोज आस्था जताने वाले निर्दलीय और बसपा वाले भी नए कपड़े सिलवाकर पिछले 11 माह से मंत्रिमंडल में शामिल होने का इंतजार कर रहे है । जब इनके सपने कांच की तरह चकनाचूर होंगे तो निश्चित तौर पर इनके सुर बदल जाएंगे । यही हाल गहलोत समर्थक विधायकों का । इस सुलहबाजी मे सबसे ज्यादा उन विधायकों को नुकसान उठाना पड़ेगा जो गहलोत के बहुत करीब है । वफादारों के विभागों में भी कटौती होगी और त्याग भी उनको करना पड़ेगा, जिन्होंने संकट के समय गहलोत की नाव को डूबने से बचाया था । क्या वफादारों को वफादारी का ईनाम नही मिलना चाहिए ? यह बात गहलोत को भी सोचनी होगी और कांग्रेस आलाकमान को भी ।
महेश झालानी, पत्रकार