भ्रस्टाचार निरोधक ब्यूरो के महानिदेशक बीएल सोनी कितना भी पलोथन क्यो न लगा ले, उनका झूठ पूरी तरह पकड़ा जा चुका है । रिश्वतखोर डॉ अनिल गुप्ता को बिना अदालती आदेश के रिहा कर सोनी ने न्यायालय के क्षेत्र में न केवल अतिक्रमण किया है बल्कि उसके अधिकारों को खुलेआम चुनोती देने का दुस्साहस भी किया है । इनका यह कारनामा पूरे देश मे एक मिसाल बन चुका है ।
राज्य सरकार को चाहिए कि अविलम्ब न्यायालयों को बंद कर निर्णय करने का कार्य डीजी बीएल सोनी और उनके मातहतों को सौप देना चाहिए । सोनी की इस कार्रवाई से मुख्यमंत्री की स्वच्छ छवि धूमिल हुई है । उधर राज्य मंत्री सुभाष गर्ग ने यह साबित कर दिया है कि वे मिनी मुख्यमंत्री है । उन्ही के दबाव और टेलीफोनिक निर्देश पर ही भ्रष्टतम डॉ अनिल गुप्ता को रिहा करना पड़ा ।
दरअसल जब व्यक्ति असलियत पर पर्दा डालने की कोशिश करता है तो वह कई प्रकार की झूठ बोलने के चक्कर मे फंस जाता है । यही सबकुछ बीएल सोनी के साथ हुआ । यह आईने की तरह साफ है कि सोनी ने सुभाष गर्ग के निर्देश पर उनके निकटतम रिश्तेदार को रिहा किया । चूँकि असलियत सामने नही आए, इसलिए वे लगातार झूठ पर झूठ बोलने के लिए बाध्य हुए ।
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बताया जाता है कि दूसरी बार रंगे हाथों गिरफ्तार हुए डॉ अनिल गुप्ता राज्य मंत्री सुभाष गर्ग के बहुत ही निकटतम रिश्तेदार है । कोई इन्हें गर्ग का साला तो कोई बहनोई बताता है । बहरहाल रिश्ता कुछ भी हो, एक रिश्वतखोर को रिहा करवाकर गर्ग ने ना केवल खुद की फजीहत कराई बल्कि मुख्यमंत्री की छवि को भी बट्टा लगाया है । गर्ग को भरतपुर में लोग मिनी मुख्यमंत्री कहते है । यह करिश्मा करके उन्होंने साबित कर दिया है कि वे वास्तव में न केवल भरतपुर के बल्कि प्रदेश के भी मिनी मुख्यमंत्री है ।
मैंने अनेक चिकित्सक जिनमे फिजिशियन, मनो चिकित्सक और न्यूरोलॉजिस्ट शामिल है, उनसे तफसील से बात की । चिकित्सकों का कहना था कि जब कोई व्यक्ति किसी आकस्मिक सदमे या हादसे का शिकार होता है तो उसका डिप्रेश और एंजाइटी से ग्रसित होना स्वाभाविक है ।
चिकित्सको के अनुसार जो भी व्यक्ति ट्रेप होगा, उसका बीपी, हर्ट रेट आदि घटना-बढ़ना सामान्य प्रक्रिया है । जैसे कोई व्यक्ति वीआईपी से मिलने या इंटरव्यू देने के लिए जाता है तो एंजाइटी होने लगती है । ऐसे में हर्ट बीट और बीपी बढ़ना एक सामान्य प्रक्रिया है । ट्रेप होने वाले नब्बे फीसदी लोग इससे प्रभावित होते है । तो क्या एसीबी सभी रिश्वतखोरों को बिना अदालत ले जाए छोड़ देगी ?
ज्ञात हुआ है कि जैसे ही डॉ अनिल गुप्ता को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया, उसने रोने और गिड़गिड़ाने का नाटक किया । जैसा हर ट्रेप होने वाला व्यक्ति करता है । डॉ गुप्ता ने ट्रेप करने वालो को बताया कि वह राज्य मंत्री सुभाष गर्ग का बहुत ही निकटतम रिश्तेदार है । ट्रेप करने वालो ने यह बात अपने आला अधिकारियों को बताई और अंत बात पहुंची डीजी बीएल सोनी के पास ।
सोनी ने सारे वाकये से सुभाष गर्ग को अवगत कराया । सोनी भलीभांति जानते है कि गर्ग आज की तारीख में मुख्यमंत्री के बेहद निकट है । गर्ग के निर्देश पर आनन-फानन में डॉ अनिल गुप्ता को ससम्मान छोड़ दिया गया । सवाल यह उतपन्न होता है कि यदि डॉ गुप्ता की तबीयत खराब हुई तो क्या किसी चिकित्सक से उनका मेडिकल चेकअप कराया गया ? यदि हां तो उनकी पल्स रेट और बीपी कितना था ?
एक मिनट के लिए मान लेते है कि डॉ की तबीयत वास्तव में बहुत खराब होगई थी तो एसीबी के किस अधिकारी ने किस डॉक्टर को चेकअप करने के लिए फोन किया, उसका फोन नम्बर और चिकित्सक के नाम का खुलासा होना आवश्यक है ताकि असलियत जनता के सामने आ सके । लेकिन हकीकत यह है कि एसीबी ने राज्य मंत्री के रिश्तेदार को बचाने के लिए झूठ का पहाड़ खड़ा किया ।
तबीयत खराब होने पर क्या एसीबी को यह अधिकार है कि वह किसी भी अभियुक्त को बिना कोर्ट ले जाए रिहा करदे । यदि ऐसा है तो एसीबी को उस नियम या उप नियम का खुलासा करना चाहिए । एसीबी के डीजी बीएल सोनी की ओर से एक बहुत ही अटपटा तर्क दिया गया कि कोरोना के मद्देनजर डॉ गुप्ता को रिहा करना पड़ा । कोरोना काल मे रिश्वतखोर डॉक्टर को रिहा करने का कौनसा आदेश या परिपत्र सरकार ने जारी किया, अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए एसीबी को इसे सार्वजनिक करना चाहिए । क्या राजस्थान में सर्वाधिक कोरोना भरतपुर में है ? यदि हाँ तो तुलनात्मक संक्रमितों की संख्या भी एसीबी को जारी करनी चाहिए ।
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माना कि बीएल सोनी ने एसीबी का डीजी बनने के बाद भ्रस्ट लोगों को पकड़ने के लिए ताबड़तोड़ कार्रवाई कर अनेक लोगो को गिरफ्तार किया । यह भी सही है कि सोनी एक उत्साही और दबंग अफसर है । मुख्यमंत्री के सबसे करीबी अफसरो में शामिल है । यह भी तय है कि अगले डीजीपी वही बनेगे । लेकिन डॉ गुप्ता वाली कार्रवाई के बाद न केवल खुद सोनी की बल्कि सीएम और एसीबी की जगहँसाई हो रही है । इस एक कार्रवाई की वजह से एसीबी कई साल पीछे चली गई है ।
यह भी तय है कि इस कांड पर लीपापोती होगी । न कुछ सोनी का कुछ बिगड़ने वाला है और न ही सुभाष गर्ग का । यह भी सुनिश्चित माना जा रहा है कि भ्रस्ट अफसरों के संरक्षक सुभाष गर्ग पदोन्नत होकर केबिनेट मंत्री भी बन जाएंगे । लेकिन क्या सोनी और गर्ग अपने ऊपर लगे दाग साफ कर पाएंगे ? सोनी को लगे हाथ यह भी स्पस्ट करना चाहिए कि ट्रेप के तुरंत बाद उनकी राज्य मंत्री सुभाष गर्ग से कितनी बार टेलीफोन से बात हुई ।
सोनी का यह कारनामा इतिहास में काले अक्षरों में अंकित किया जाएगा । इन्होंने साबित कर दिया है कि अफसर चाहे तो काले को सफेद और सफेद को काला कर सकता है । इस कार्रवाई से यह भी जाहिर होगया है कि इन्होंने सीबीआई और क्राइम ब्रांच में रहते हुए किस ईमानदारी से ड्यूटी की होगी । नए डीजीपी बनने पर इनसे किसी प्रकार की अपेक्षा करना व्यर्थ होगा । इस पद पर रहते हुए भी वे नेताओ के इशारे पर काला ही करने वाले है, इससे ज्यादा कुछ नही ।
अब सबसे अहम सवाल यह है कि भविष्य में यदि कोई रिश्वतखोर रोने या तबीयत खराब होने की एक्टिंग करेगा तो क्या उसे भी बिना अदालत ले जाए रिहा कर दिया जाएगा ? यदि नही तो क्यो ? ये कुछ ऐसे सवाल है जिन्हें स्पस्ट करने की आवश्यकता है । यदि मुख्यमंत्री को अपनी छवि उज्ज्वल रखनी है तो इस सम्पूर्ण मामले की जांच उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश से कराए । अन्य लोग तो सोनी की तरह लीपापोती करेंगे ।
न्यायालय को भी स्व प्रेरित संज्ञान लेने की आवश्यकता है । क्योंकि सोनी की यह करतूत न्यायालय के क्षेत्र में सीधा अतिक्रमण है । जब अफसर खुद ही निर्णय करने लगेंगे तो न्यायालय का है कोई औचित्य ? यह प्रकरण सीधे तौर पर न्यायालय की प्रतिष्ठा और अस्मिता से जुड़ा हुआ है । ऐसे में माननीय न्यायालय का हस्तक्षेप अपेक्षित है ।