बात अप्रैल 1960 की है। ग्यारहवीं बोर्ड को उन दिनों ‘प्री यूनिवर्सिटी’कहा जाता था जिसके बाद कालेज में प्रथम वर्ष में दाखिला मिलता था। मार्च में प्री यूनिवर्सिटी की परीक्षा देने के बाद, स्कूली बच्चों के लिए सरकार द्वारा आयोजित उत्तर भारत के पर्यटन टूर में अपने बाबूजी के मना करने के बाद भी, मैं दुकान के गल्ले से 200 रुपए चुराकर एक महीने के लिए घूमने चला गया तो बाबूजी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया।
जब लौटा तो बाबूजी ने ये फरमान सुनाकर मेरी सिट्टी पिट्टी गुम कर दी कि अब मैं आगे नहीं पढ़ सकता मुझे मेरे सारे सपने चूर चूर होते नजर आने लगे तो मुझे याद आई,बच्चों से प्यार करने वाले चाचा नेहरू की जो तब भारत के प्रधानमंत्री भी थे।तब मेरी उम्र17साल से भी कुछ कम ही थी।
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मैंने 29 अप्रैल 1960 को, एक पत्र लिखकर उनसे निवेदन किया कि वे मेरी मदद करें ताकि मैं आगे पढ़ सकूं!मुझे मेरे पत्र का तुरंत ही9मई को नेहरू जी के निजी सचिव वेदप्रकाश द्वारा लिखे पत्र से जवाब मिला कि उचित कार्रवाई के लिए मेरा पत्र मध्यप्रदेश सरकार को भेजा जा रहा है।
जून 1960 में मेरा परीक्षा परिणाम घोषित हुआ तो पूरे मध्यप्रदेश(वर्तमान छत्तीसगढ़ सहित)से मेरिट में उत्तीर्ण 25छात्रों में, 8वें नंबर पर मेरा भी नाम जब अखबारों के पहले ही पेज पर छपा तो बाबूजी के पास मेरी इस सफलता के लिए बधाई देने वालों का तांता लग गया और बाबूजी का गुस्सा भी काफूर हो गया तो उन्होंने मेरी आगे की पढ़ाई के लिए हरी झंडी दिखा दी।
विशेष योग्यता से उत्तीर्ण होने के कारण जबलपुर के उस समय के सर्वश्रेष्ठ साइंस कॉलेज सेंट एलॉयसियस में मेरा दाखिला भी हो गया और मैं नेहरूजी को लिखे पत्र की बात भूल गया।।तभी एक दिन कालेज के प्राचार्य ने मुझे अपने ऑफिस में बुलाकर मुझसे पूछा कि क्या मैंने प्राइममिनिस्टर को कोई पत्र लिखा था?
फिर उन्होंने जब मुझे बताया कि उनके निर्देश पर मध्यप्रदेश सरकार ने मेरी छात्रवृत्ति स्वीकार करते हुए मेरे लिए 60 रुपये महीने के हिसाब से9महीनों की छात्रवृत्ति के 540रु भेजे हैं।मेरी तो खुशियों का ठिकाना नहीं रहा आज की पीढ़ी उनदिनों के 540रुपयों का मोल नहीं जानती इसलिये बता दूं कि भोजनालय में दोनों समय भोजन करने का मेरा मासिक खर्च 30 रुपये और मेरे रहने के कमरे का मासिक किराया था 10रु
नेहरू जी के निजी सचिव द्वारा मुझे 9 मई 1960 को लिखा गया पोस्टकार्ड समय के 60 साल के थ पेड़ों से जर्जर हो जाने के बावजूद, उसे मैंने अब तक संभाल कर रखा है जिसे पहली बार मित्रों के साथ शेयर कर रहा हूँ।
इन 60 सालों में जिंदगी आरएसएस की हिन्दूराष्ट्रवादी संकीर्ण और घृणा फैलाऊ राजनीति में अपनी जोशीली जवानी के14 साल बर्बाद करने के बाद विगत करीब 44 सालों से गांधी-लोहिया-जयप्रकाश-सुभाष-अंबेडकर वादी समाजवादी विचारधारा को ,कुछ वर्षों तक सक्रिय राजनीति के बाद अब मुख्यतः लेखन मनन में ही बीत रही है।
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नेहरूजी और उनके पूरे खानदान के खिलाफ, वैसे तो 1925 से ही आरएसएस परिवार नफरत का जहर फैला रहा है लेकिन पिछले6सालों से, केंद्र में इनकी हुक्मरानी के दुर्भाग्यपूर्ण दौर में तो नेहरू के खिलाफ नफरत का और झूठे आरोपों का तो जैसे सैलाब ही उमड़ पड़ा है
ऐसी विषम परिस्थिति में नेहरू जीे का,बच्चों की शिक्षा के प्रति ऐसा उत्साहवर्धक सहयोग,मैंने स्वयं अपने छात्र जीवन में महसूस किया है।शिक्षा के प्रति मोदीजी का नजरिया और बजट में शिक्षा खर्च में कटौती ही कटौती करने वाला उनका राजनीतिक कर्म उन्हें नेहरूजी के बरक्स बेहद बौना साबित करता है।
बकौल दुष्यंत:
मूरत संवारने में बिगड़ती चली गई!
पहले से हो गया है जहाँ और भी खराब