नई दिल्ली। आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर बिहार में सियासी पारा गरमाया हुआ है। चाहे बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए गठबंधन हो या फिर कांग्रेस-आरजेडी का महागठबंधन, सभी अपनी अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं। वहीं, बिहार में हुए महागठबंधन में जगह नहीं मिलने के बाद लेफ्ट पार्टी सीपीआई ने जेएनयू के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार बेगुसराय से चुनाव मैदान में उतारा है।
बेगुसराय से टिकट मिलने के बाद कन्हैया कुमार ने चुनाव को लेकर आम लोगों से चंदा मांगा है। उनकी इस कोशिश का असर भी दिख रहा है। जानकारी के मुताबिक, कन्हैया कुमार की ओर से अपील के महज कुछ घंटे में ही पांच लाख का चंदा मिल गया।
बताया जा रहा कि जेएनयू के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने चुनाव के लिए 70 लाख रुपये चन्दा जुटाने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने एक वेबसाइट पर चन्दा मांगने की मुहिम शुरू की है। इसके लिए उन्होंने एक ट्वीट के साथ वेबसाइट का लिंक भी दिया है।
इस ट्वीट में कन्हैया कुमार ने लिखा, ”जैसे एक-एक बूंद से घड़ा भरता है, एक-एक ईंट से घर बनता है, वैसे ही आपके एक-एक रुपये के सहयोग से शोषित और वंचित जनता की आवाज संसद तक पहुँचाने की इस साझी लड़ाई को लड़ा जाएगा। देश की जनता जीतेगी,लूट और झूठ का गठजोड़ हारेगा। सहयोग करने के लिए यह लिंक देखें।”
जानकारी के मुताबिक, कन्हैया कुमार को चंदा जुटाने की मुहिम शुरू करने के महज एक घंटे के अंदर ही करीब 2 लाख रुपए का चन्दा मिल गया। वहीं अब तक चंदे के रूप में 5 लाख से अधिक की राशि मिल गई है। बता दें कि बेगुसराय में कन्हैया कुमार का मुकाबला बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के साथ है। बीजेपी ने गिरिराज सिंह को बेगुसराय से उम्मीदवार बनाया है। हालांकि गिरिराज सिंह बेगुसराय से उम्मीदवार बनाए जाने पर नाराज नजर आ रहे हैं। इसकी मुख्य वजह बेगुसराय का सियासी समीकरण है।
एक आंकड़े के मुताबिक वहां 4.50 लाख से ज्यादा भूमिहार मतदाता हैं। इसके अलावा करीब 2.5 लाख मुसलमान, 2 लाख कुर्मी-कोइरी और लगभग 1.5 लाख यादव वोटर हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भोला सिंह को लगभग 4.30 लाख, आरजेडी के तनवीर हसन को करीब 3.70 लाख और सीपीआई के राजेंद्र प्रसाद सिंह को लगभग 1.92 लाख वोट मिले थे। हालांकि, तब सीपीआई को जेडीयू का समर्थन था, जिसका कुर्मी और कोइरी वोटरों पर ज्यादा प्रभाव माना जाता है। यानि, पिछलीबार के मुकाबले इसबार बेगूसराय का जातीय गणित पूरी तरह से उलट-पुलट हो चुका है और इसलिए शायद गिरिराज इसे सेफ नहीं मान पा रहे हैं।