लोकसभा चुनाव में हर पार्टी धर्म और समुदायों में बंट जाती है। क्योंकि उन्हें वोटरों को रिझाना पड़ता है. इस बार के लोकसभा चुनाव काफी दिलचस्प होने वाले हैं. क्योंकि हर पार्टी इस बार अपने जनाधार से अलग नए वोटरों को भी लुभाने में जुटी है. मोदी राज के चार सालों में सबसे जयदा परेशान अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को किया गया है.लेकिन इस वक़्त मुस्लिम वोटर ही किसी भी राजनीतिक दल को जीत दिलाने के लिए अहम बन गए हैं.
गौरतलब है कि भारत में अक्सर ये बात उठती है कि अल्पसंख्यक समाज को राजनीति में वो जगह नहीं मिलती जिसके वो हक़दार हैं. धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक लोगों को राजनीति में वो जगह क्यूँ नहीं मिल पायी इसको लेकर अक्सर बहस होती रहती है. उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से एक मोर्चा खुला है जिसका नाम है अल्पसंख्यक हिस्सेदारी आन्दोलन. इस आन्दोलन के ज़रिये इसके नेताओं की माँग है कि अल्पसंख्यक समाज को बेहतर मौके और माहौल दिया जाये.
इस आन्दोलन में तीन मुख्य बातों पर ध्यान दिया गया है. 1. अल्पसंख्यको के सुरक्षा, सम्मान, और भारतीय नागरिक होने के अधिकार सुनिश्चित करने का वचन, कौन राजनैतिक दल देगा और क्या गारंटी होगी कि वह दल अपने उस किये वादे को निभाएगा भी? 2.देश के विकास में अल्पसंख्यकों की बराबर की भागीदारी का वादा आज कौन राजनैतिक दल करेगा और उन वादों को निभाने का वचन मयूसी के दौर से गुज़र रहे अल्पसंख्यकों को देकर उनका विश्वास हासिल करने की जुर्रत करेगा? 3. देश के सभी संवैधानिक और राजनीतिक प्लेटफॉर्म पर अल्पसंख्यकों की बराबर की भागीदारी/हिस्सेदारी का वादा, अल्पसंख्यकों से आज कौन राजनैतिक दल करेगा और भारतीय संविधान की मूल आत्मा को बल देगा?
इस मोर्चे के नेताओं का कहना है कि वो चाहते हैं सियासी पार्टियों को जब अल्पसंख्यक ख़ासतौर से मुसलमान समाज का वोट लेना होता है तो वो भाजपा का डर दिखा देती हैं जबकि उनके मुद्दों को कोई नहीं सुनता. इस मोर्चे के नेता कह रहे हैं कि वो चाहते हैं कि अल्पसंख्यक समाज के लोग अब मुद्दों के आधार पर वोट करें. सपा-बसपा या कांग्रेस जिसे भी वोट करें लेकिन ये सोच समझ कर वोट करें कि बात मुद्दों की ही होगी, भाजपा का डर दिखा कर नहीं वोट मिलेगा.