मोदी सरकार भले ही इस बात का दावा करती हो कि उसके शासनकाल में देश में एक भी घोटाला नहीं हुआ, लेकिन उसके इन दावों में कितनी सच्चाई है इसका अंदाज़ा माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम के आवंटन को लेकर कैग की ओर से पेश की गई एक रिपोर्ट से साफ़ तौर पर लगाया जा सकता है।
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी सरकार ने साल 2015 में माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम का आवंटन पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर किया, जबकि सरकार के पास आवंटन के लिए 101 आवेदन आए थे। कैग की इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद कांग्रेस ने मोदी सरकार पर स्पेट्रम घोटाले के आरोप लगाए हैं।

कांग्रेस का कहना है कि सरकार ने तमाम नियमों को ताक पर रखकर अपने मित्रों को स्पेक्ट्रम आवंटित किये हैं। जिससे सरकारी खजाने को 70,000 करोड़ का नुकसान हुआ है। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा ने दावा किया है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश की धज्जियां उड़ाई हैं जिसमें स्पेक्ट्रम आवंटन नीलामी से करने को कहा गया है। सरकार ने पहले आओ और पहले पाओ की नीति के तहत कुछ ‘चुनिंदा साथियों’ को स्पेक्ट्रम का आवंटन किया।

कैग ने अपनी रिपोर्ट में स्पेक्ट्रम पाने वाली किसी भी कंपनी के नाम का उल्लेख नहीं किया है, ना ही कैग ने स्पेक्ट्रम घोटाले से सरकारी खजाने को हुए नुकसान के आंकड़े पेश नहीं किए हैं। लेकिन कांग्रेस नेता पवन खेड़ा का दावा है कि यह नुकसान करीब 69,381 करोड़ रुपए का हो सकता है।
कांग्रेस का यह भी दावा है कि मोदी सरकार ने स्पेक्ट्रम आवंटन में ब्याज की समय सीमा भी 10 साल से बढ़ाकर 16 साल कर दी है, जिससे भी सरकारी खजाने को टेलीकॉम कंपनियों से मिलने वाले सरचार्ज आदि का नुकसान होगा। कांग्रेस का कहना है कि अगर इसमें सरचार्ज आदि के नुकसान को भी जोड़ दिया जाए तो यह घोटाला और भी बड़ा हो सकता है।