सुरेश कुमार ने कहा कि उनके बेटे को एक पुलिस अधिकारी ने गो!ली मार दी और बदले में उनसे कहा गया कि वह दलित युवक के ह!त्यारे के रूप में किसी भी मुस्लिम शख्स का नाम ले लें। इसके बदले में उन्हें दस लाख रुपए की पेशकश की गई।
दरअसल रविवार (13 जनवरी, 2019) को रामलीला मैदान में इकट्ठा हुए बहुत से दलितों ने अ!न्याय और कठिनाईयों की कई कहानियां बताईं। ये वो लोग हैं जिन्होंने 2 अप्रैल, 2018 को भारत बंद में किसी ना किसी रूप से हिस्सा लिया और प्रशासन की क्रू!रता का शिकार हुए। इस विरोध प्रदर्शन में 13 लोगों की जान चली गई जबकि दो हजार से ज्यादा लोग घायल हो गए।
रामलीला मैदान में इनके परिजनों को बहुजन सम्मान महासभा में सम्मानित किया गया। यह आयोजन गाजियाबाद के सत्यशोधक संघ, भीम आर्मी के एक गुट द्वारा आयोजित किया गया।
अपने बेटे को खो चुके यूपी के मुजफ्फरनगर स्थित गोडला गांव में रहने वाले सुरेश कुमार (60) ने बताया कि कैसे उस दिन हड़ताल के दौरान उनके 22 वर्षीय बेटे अमरेश की मौ!त हो गई। पेशे से मजदूर सुरेश कहते हैं, ‘वो भी मेरी तरह दिहाड़ी मजदूर था और शहर में काम की तलाश में गया था। काम नहीं लगा तो मुजफ्फरनगर रेलवे स्टेशन पर आ गया, जहां हमारे (जाटव) कुछ लड़के प्रद!र्शन कर रहे थे।’

सुरेश कहते हैं, ‘हमारे लड़कों ने बताया कि उसे एक पुलिस अधिकारी ने सीने पर गो!ली मारी थी। प्रद!र्शनकारी इसे हाथ से चलने वाले ठेले पर सरकारी हॉस्पिटल में लेकर गए, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका।’ सुरेश की एक बेटी और दो बेटे और हैं, जो दिहाड़ी मजदूरी का काम करते हैं। उन्हें सरकार ने किसी तरह का मुआवजा नहीं दिया।

सुरेश ने दावा किया बेटे की मौ!त का आरोपी पुलिस इंस्पेक्टर उन्हें न्यू मंडी पुलिस स्टेशन उठाकर ले आया। सुरेश कहते हैं, ‘उन्होंने मुझसे बेटे के ह!त्यारे के संदिग्ध के रूप में किसी भी मुस्लिम शख्स का नाम लेने को कहा। मुझसे कहा गया कि अगर मैं ऐसा करता हूं तो इसके बदले में मुझे दस लाख रुपए का मुआवजा मिलेगा।
मैंने इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि मैं शांति चाहता हूं तो किसी का तो नाम लेना ही पड़ेगा। इसपर मैंने उस पुलिसवाले से कहा कि मैं जानता हूं कि तुमने ही मेरे बेटे को मा!रा है।’ सुरेश आगे कहते हैं, ‘मेरे इनकार के बाद मुझे जातिगत गा!लियां दी गई, बाहरी व्यक्ति कहा गया। मुझे पीटने की धमकी दी गईं।