भारत में लोकतंत्र के जनक डा० भीम राव अम्बेडकर को इस बात का बखूबी अंदाजा था कि आजादी के बाद भी भारत में गरीबों वचितों असहाय तबकों के साथ भेदभाव छुआछूत गैरबराबरी बनी रहेगी इस लिए उन्होंने न जाने कितनी चुनौतियों का सामना करते हुए भारत के संविधान की रचना कुछ इस प्रकार की कि जिससे आम लोगों का कल्याण हो सके किसी के भी साथ जाति वर्ग वर्ण आयु लिंग धर्म के आधार पर भेद भाव न हो सके सभी को जीवन जीने का समान अवसर मिले इस लिए भारत का लोकतंत्र समानता के सिद्धांत पर आधारित है भारतीय लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी है भारतीय लोकतंत्र नागरिकों को स्वतंत्रता का अधिकार देता है।
26 जनवरी 1950 को संविधान को आत्मसात करने के बाद भारत एक लोकतांत्रिक देश बना उस दिन हमने तीन बड़ी उपलब्धियां हासिल की पहली उपलब्धि हमें संविधान मिला जिसे भारत के लोगों ने स्वयं अपना भविष्य तय करने के लिए बनाया दूसरी राष्ट्र को अपना मूल नाम भारत वापस मिला और तीसरी बड़ी उपलब्धि ब्रिटिशों द्वारा नियुक्त गर्वनर के स्थान पर हमारा अपना राष्ट्रपति मिला।
देश के पहले राष्ट्रपति के रूप डा० राजेन्द्र प्रसाद जी ने पद सम्हाला। भारत की दशा एवं दिशा तय करने में सन 1950 काफी अहम था 25 जनवरी 1950 को ही भारत में चुनाव आयोग की स्थापना हुई
देश का पहला लोक सभा चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक चला में चुनाव 68 चरणों में कराया गया जिसमें पहले स्थान पर कॉग्रेस रही और दूसरे स्थान पर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया रही आजादी के बाद पहले आम चुनाव में 53 राजनैतिक पार्टी उतरी जिसमें 14 राष्ट्रीय पार्टियां शामिल थी इस तरह पंडित जवाहरलाल नेहरू आजाद भारत के पहले प्रधान मंत्री बने। देश को तरक्की के रास्ते पर लाने के लिए नेहरू ने पंचवर्षीय योजना बनाई जिसके पहले उपाध्यक्ष गुलजारी लाल नंदा बने।
आजाद भारत के शुरूआती ३ दशक भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के पास रहे। उसके उपरान्त सत्ता जनता दल कॉग्रेस और बीजेपी के पास समय समय पर आती जाती रही लेकिन अगर देखा जाय तो भारत को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अन्य देशों के बराबर लाकर खड़ा करने का श्रेय भारतीय राष्ट्रीय कॉग्रेस को ही जाता है क्योंकी सत्ता में बने रहने का सबसे ज्यादा समय जनता ने कॉग्रेस को दिया।
आजादी के पहले 3 दशक में देश ने पडित जवाहरलाल नेहरू, गुलजारी लाल नंदा, लाल बहादुर शास्त्री इन्दिरा गांधी की अगुवाई में कई सफलतायें प्राप्त की रेलवे का राष्ट्रीकरण करने के बाद भारतीय रेलवे दुनिया का सबसे बडा नटर्वक बना 119630 किलोमीटर पटरी बिछी ओलंपिक हॉकी में गोल्ड मेडल मिला 1955 तक देश धीरे धीरे हर सेक्टर में अपनी जगह बनाने में सफलता की ओर बढ़ चुका था देश में सबसे बड़े कॉर्मशियल(इम्पीरियल बैंक) बैंक को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में तबदील कर दिया गया था इसी दौर में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडू जैसे राज्यों की स्थापना हुई।
आजादी के इन 77 सालों के सफर में भारत ने राजनीतिक दलों की नीति और नीयत को देखते हुए कई चुनौतियों का सामना किया और साथ ही उत्तरोत्तर विभिन्न क्षेत्रों (आर्थिक विज्ञान, प्रोद्योगिकी औद्योगीकरण, कृषि, शिक्षा, फिल्म-कला, अंतरिक्ष अनुसंधान और आधुनिकीकरण) में महत्वपूर्ण प्रगति भी हासिल की।
लेकिन भारत में राजनीतिक दल कब राजनीतिक धर्म से धार्मिक राजनीति की ओर बढ़ गये ये एक लोकतांत्रिक देश के लिए चिंता का विषय है संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के तहत सभी भारतीयों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है।
जिसमे स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि धर्म पूरी तरह से निजी मामला है इसमें धर्म को जीवन के सरकारी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सिद्धांतों से अलग करना शामिल है लेकिन इसके बावजूद केन्द्र और तमाम राज्य सरकारों द्वारा किसी एक विशेष धर्म पर जनता के दिये गये टैक्स के पैसे को पानी की तरह धार्मिक आयोजनों में बहाया जा रहा है वर्तमान भारत में राजनीतिक दलों का एक मात्र उद्देश्य सत्ता पर बने रहने के लिए देश की जनता को धार्मिक अफीम देकर एक दूसरे से लड़ाये रखना और आपसी भाईचारे को खत्म करना है
देश की पूंजी चन्द हाथों में सीमित हो गई है समूचा देश तीन भागों में बट गया है एक पूंजीपति वर्ग जिन्होंने सरकार को अपनी कटपुतली बना रखा है दूसरा निम्न वर्ग जिसे सरकार ने अपनी कठपुतली बना रखा है और तीसरा मध्यम वर्ग जो गरीबी बेरोजगारी, किसानों, मजदूरों और विकास के मुददों पर सवाल करता है।
देश में जिस तरह से जनता के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है वह एक लोकतान्त्रिक देश के लिए चिंता का विषय है अगर हम पिछले 10 सालों को मुड़ कर देखें तो देश कई बड़े आन्दोलनों और हिंसा से गुजरा है किसान आन्दोलन, सीए, एनआरसी, एनपीआर आन्दोलन पहलवान महिलाओं का आन्दोलन, शिक्षकों का आन्दोलन, बेरोजगार युवाओं का आन्दोलन, महिलाओं के साथ बढ़ती हिंसा को लेकर आन्दोलन, मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदाय के बीच हई हिंसा और महिलओं के साथ बन्दूक की नोक पर सामूहिक बलात्कार, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में छात्रा के साथ बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख द्वारा बन्दूक की नोक पर शीलभंग करना और दो महीने खुलेआम घूमना जैसे तमाम मामलों को सरकार ने जिस तरह कुचलने और संसद में जवाब न देने की हठर्धिमता की वह लोकतंत्र से राजतंत्र की ओर हस्तांतरण का खुला संकेत है। जिसे आसानी से देखा जा सकता है।
15 अगस्त 1947 का आजाद भारत जनता का जनता के लिए जनता द्वारा शासन की बात करता था जबकी 2023 का भारत पूजीपति का पूंजीपति के लिए पूंजीपतियों द्वारा संचालित शासन की बात करता है जहां अनिल अंबानी और अनिल अग्रवाल जैसे पूंजीपतियों के हजारों करोण के लोन माफ कर दिये जाते हैं और सरकार उन्हें मंचों पर बैठाकर मेहमाननवाजी करती है उसी जगह एक किसान अगर 2 लाख का कर्जा अदा नहीं कर पाता तो उसका घर बुलडोज कर दिया जाता है।
आज भारत में मीडिया हाउस, चुनाव आयोग, सीबीआई. ईडी, न्यायपालिका जैसी तमाम संवैधानिक संस्थाओं का इस्तेमाल सरकार के इशारे पर सरकार से सवाल उठाने वाली जनता में भय पैदा करने एवं मुंह बंद करने के लिए किया जा रहा है।
बिलकीस बानों के बलात्कारियों को गुजरात कोर्ट द्वारा फॉड करके छोड दिया जाना, स्वतंत्र पत्रकारों पर बिना किसी सबूत के छापा डालना और उनके उपकरणों को जप्त करना, उमर खालिद, तीसता सीतलवाड, संजीव भट्ट, डा० कफील, जैसे तमाम बुद्धजीवियों पत्रकारों और सच बोलने वाले लोगों को जेल की सलाखों के पीछे डाल कर जनता के भीतर भय पैदा करना, चुनाव आयोग का दुरूपयोग करना, राम रहीम जैसे बलात्कारी को बार बार पेरील पर चुनाव के समय छुटटी देना संसद भवन का धार्मिकीकरण करना ऐसे अनेकों उदाहरण है जो भारत के लोकतंत्र के लिए अर्लानिंग हैं।

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