पिछले दो दशक से देश की राजनीति में प्रमुख किरदार बनकर उभरे राहुल गाँधी को मोदी सरनेम मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है। चार बार सांसद और लगभग 20 महीने तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे राहुल गाँधी इस समय मोदी सरकार के सबसे बड़े आलोचक और विपक्ष के सबसे मज़बूत चेहरा बनकर उभरे हैं। जिस प्रकार पिछले कुछ सालों में राहुल गाँधी ने उद्योगपतियों के साथ सरकार के सांठगांठ एवं उनके गलत नीतियों के खिलाफ बेबाकी आवाज़ से आवाज उठाया है और भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गाँधी को एक जननायक के रूप में देखा जाने लगा है।
पुरानी कहावत है ना कि जो निराशा, पराजय, आलोचना, गालियां के बीच के लम्बे संघर्ष को पार कर लिया आने वाला समय के सत्ता की चाभी उसी के हाथ में होगी। इतिहास गवाह है कि जिन महापुरुषों ने सत्ता के लालसा को त्याग कर आमजन की लड़ाई को अपनी लड़ाई समझी उन्होंने सत्ता को लम्बे समय तक चलाया है। सूरज जैसा चमकने के लिए सूरज की तरह जलना पड़ता है। सूर्य ग्रहण पर पृथ्वी का एक बड़ा हिस्सा अंधकार से घिरा, लेकिन सूर्य के अटल इरादे और पृथ्वी की नियत गति ने इस अंधकार से छुटकारा पा लिया। यानी जिस प्रकार राहुल गाँधी अपने लक्ष्य की ओर बिना डिगे और कांग्रेस नियत गति से जुटी रही तो कांग्रेस ज्यादा दिन केंद्र की सत्ता से दूर नहीं रहेगी।
राहुल गाँधी को मंत्री और प्रधानमंत्री दोनों पदों पर बैठने का मौक़ा मिला था लेकिन उन्होंने वो मिसाल गलत साबित कर दी कि मछली के बच्चे को तैरने की प्रक्टिस नहीं करनी होती है। उन्होने वक्त से खूब सीखा। दादी इंदिरा गांधी के खून से लटपथ शरीर और पिता राजीव गांधी के टुकड़े टुकड़े हो चुके शरीर से देश की सियाह राजनीति को देखा। मां सोनिया गांधी के शांत स्वाभाव और क़ुर्बानी को देखा, जिसमें उन्होंने कहा था कि सत्ता ज़हर है। साल 2009 के लोकसभा परिणामों के बाद जिस प्रकार राहुल गाँधी की लोकप्रियता रही है उस समय पीएम पद पर बैठना बहुत आसान था लेकिन उन्हें मंझना था, तपना था, आलोचनाएं सहनी थी और खूब संघर्ष करने का जुनून था।
सियासत के शिखर पर पंहुचने से किसी भी व्यक्ति को खूब आलोचना, विरोध और संघर्ष की भट्टी में अच्छी तरह तपना पड़ता है। पिछले एक दशक में जितनी गालियां, आलोचना, विरोध का सामना राहुल गाँधी को करना पड़ा उतना किसी विपक्षी नेता ने नहीं किए लेकिन राहुल गाँधी डटे रहे, हताश और निराशा का बदल उनको कमज़ोर नहीं होने दिया। नफरत के इस दौर में वह मोहब्बत का पैगाम देते रहे। राहुल गांधी ने बेहद कम उम्र में दो बड़े हादसों का सामना किया। जब राहुल महज 14 साल के थे तो उनकी दादी इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। इस घटना से राहुल गांधी उबर ही पाते कि साल 1991 के मई महीने में उनके पिता राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। इतना कम समय इतने बड़े हादसों से उभर जाने के बाद इंसान के अंदर डर खत्म हो जाता है और वह हिम्मत से पहाड़ जैसे परेशानी का सामना आसानी से कर लेता है।
कांग्रेस पार्टी ज़ब सत्ता में थी तो एक अध्यादेश उन्हें जनहित मे नहीं लगा तो उस अध्यादेश का विरोध किसी विपक्षी नेता की तरह करते हुए कांग्रेस सरकार द्वारा तैयार किया हुआ अध्यादेश को फाड़ कर अपना विरोध प्रकट किया था। पिछले 8-9 सालों में राहुल गाँधी की छवि को धूमिल करने के लिए सरकारों के साथ मिलकर कई उद्योगपति विभिन्न हथकंडे अपनाएं। उन्हें एक नासमझ नौजवान दर्शाने की कोशिश की गई, कमज़ोर और नेतृत्वहीन बताने की कोशिश की गई। उनकी सोशल मीडिया और मीडिया में आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, गालियां सुननी पड़ी लेकिन इन विरोधों के कारण राहुल गाँधी इतने मज़बूत बन गए कि आज इन्हीं उद्योगपतियों एवं सरकार के गले में फंसे हड्डी बन गए हैं।
विपक्ष की सक्रिय भूमिका में वो जमीनी नेता बनते जा रहे हैं। गांधी परिवार का कोई एक भी नेता इतनी लम्बी विपक्षी भूमिका मे नहीं रहा जितना वो रहे। आज राहुल गाँधी कभी छात्रों की समस्याओं को जानने के लिए उनके बीच पहुँच जाते हैं, कभी किसानों एवं महिलाओं के साथ धान की रोपाई करते नज़र आते हैं तो कभी छोटे कारोबारियों के दर्द को सुनने के लिए सब्जी मंडी पहुँच जाते हैं। कभी ट्रक की सवारी तो कभी मकैनिक की दुकान पर पहुँच जाते हैं।
विपक्षी राजनीति में सबसे अधिक सक्रिय और चर्चा मे रहने वाला कांग्रेस का ये नेता थक नहीं रहा, हार नहीं रहा और हताश नहीं हो रहा, बल्कि परिपक्व होता जा रहा है। कोई शक नहीं है कि आलोचनाओं का गुबार छंटने के बाद राहुल गांधी भारत की आम जनता के सबसे बड़े लोकप्रिय नेता साबित हों। जिस प्रकार राहुल गांधी लड़ाई लड़ रहे हैं, समय उन्हें नेहरू, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी और अटल से भी अधिक लोकप्रियता नेता बना देगा