आगा खुर्शीद खान
2024 के लोकसभा चुनावों के लिए एक साल से भी कम समय बचा है, देश की सभी विपक्षी दल एक साथ आने लगी हैं। एक एक करके जैसे जैसे सभी दल एकजुट हो रहे हैं, ऐसा लगता है कि वैसे-वैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने अपने राजनीतिक भविष्य को गंभीरता से लेते नजर आ रहे हैं। जिस पर मीडिया रिपोर्ट में इस साल हो रहे विधानसभा चुनावों में कई राज्यों में बीजेपी को हार मिल रही है, उससे कहीं ना कहीं 2024 का रास्ता थोड़ा कठिन होता जा रहा है।
भारतीय जनता पार्टी के सामने लगातार समस्याएं बढ़ती जा रही हैं, जहां एक तरफ इस साल होने वाले राज्यों के चुनाव में बीजेपी में आपसी गुटबाजी खुलकर सामने आ रही है तो दूसरी तरफ अदानी मामला तूल पकड़ रखा है। जहाँ विपक्षी दल लगातार अदानी मामले में केंद्र की मोदी सरकार को खेलते हुए जेपीसी की मांग कर रहे हैं, तो वहीं भारतीय जनता पार्टी अदानी मामले पर पूरी तरह चुप्पी साध रखी है।
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद जिस तरह से उनकी संसद सदस्यता रद्द की गई उसके बाद जनता का राहुल गांधी के प्रति एक संवेदना प्राप्त हो रही है। इन्हीं सबके बीच पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का पुलवामा हमले को लेकर हुए खुलासे ने बीजेपी को बैकफुट ला खड़ा किया है।
शायद इसी डर के कारण पीएम मोदी ने अपनी पार्टी के स्थापना दिवस के मौके पर सम्बोधित करते हुए मोदी ने दो बातें बहुत जोर देकर कहीं, एक यह कि 2014 में देश 800 साल से ज्यादा की गुलामी से बाहर निकला, 2014 में मिली आजादी सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं थी बल्कि भारत अपना खोया हुआ गौरव प्राप्त करने के लिए दोबारा उठ खड़ा हुआ है। दूसरी बात जो वह बार-बार कह रहे हैं और उसे मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके विरोधी कह रहे हैं ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’।
भारतीय जनता पार्टी लगातार हिंदू वोटर्स को अपनी तरफ से आदमी की कोशिश कर रही है इसके लिए हाल में ही NCERT की किताबों से मुगल काल के कई चैप्टर को हटाया। इसके अलावा मौलाना आजाद समेत कई अन्य मुसलमानों के इतिहास को भी धीरे-धीरे किताबों से गायब किया जा रहा है, इस पूरे मामले से यह समझ आ रहा है कि बीजेपी 2024 के चुनाव को लेकर पूरी तरह से संतुष्ट नहीं है।
पीएम मोदी ने 800 साल से ज्यादा की गुलामी से देश को बाहर निकलने की बात कहकर पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, अटल बिहारी वाजपेयी, इंदिरा गांधी और मनमोहन सिंह सभी के कार्यकाल को गुलामी बता दिया। हालांकि 800 साल में मुगलों की साम्राज्य तो लगभग 300 साल ही रही। इसके बावजूद उन्होने 800 साल की गुलामी कहकर यह साबित करने की कोशिश की है कि पृथ्वीराज चैहान के बाद से 2014 में उनके आने तक मुगलों, तातारियों, खिलजियों, गुलामों, लोधियों, अंग्र्रेजों और मराठों सभी के शासनकाल में हम गुलाम ही थे। पीएम मोदी के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि 2013 से 2023 तक उन्होने देश से जितने वादे किए एक भी पूरा नहीं हुआ उल्टे उनके कई नजदीकी जानने वाले देश का हजारों करोड़ रूपया लेकर भाग गए फिलहाल वह अपने दोस्त गौतम अडानी की कम्पनियों के घपलों घोटालों में उलझे हुए हैं।
800 साल की गुलामी का मुद्दा छेड़कर पीएम मोदी अपने कमियों को छिपाना और आम हिन्दुओं को एकजुट करना चाहते हैं। साथ ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ का बार बार जिक्र कर जनता के बीच अपने प्रति संवेदना प्राप्त करना चाहते हैं। एकजुट करने की कोशिश कितनी कामयाब होती है, इसका अंदाजा आने वाली कर्नाटक चुनाव के नतीजों से लग जाएगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस साल हो रहे कर्नाटक चुनाव में बीजेपी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ सकता है। इसके कई कारण है जिसमें मुख्य कारण है कि बीजेपी द्वारा किए गए वादे एक भी पूरे नहीं हुए बल्कि भ्रष्टाचार में पूरी सरकार लिप्त रही। दूसरी तरफ बीजेपी में बड़ी तेजी से भगदड़ मची हुई है और कई बड़े नेता कांग्रेस को ज्वाइन करने में लगे हुए हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि बीजेपी शायद 60 से 70 सीटों तक ही सिमट जाएगी। अगर कर्नाटक के नतीजे बीजेपी के हक में नहीं आते हैं तो सीधे-सीधे पीएम नरेन्द्र मोदी की अस्तित्व का सवाल बन जाएंगे और यहीं से 2024 के लिए उनकी राजनीति की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। पूरी बीजेपी सिर्फ नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर यह चुनाव लड़ रही है। ठीक उसी तरह जैसे पिछले दिनों बीजेपी ने दिल्ली एमसीडी, गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा था और सिर्फ गुजरात जीत पाए।
अगर बीजेपी कर्नाटक का चुनाव हारती है तो मोदी देश के शायद पहले पीएम हो जाएंगे जिनकी पार्टी का पूरे दक्षिण भारत से कोई ताल्लुक नहीं रहेगा। नेहरू के जमाने में तमिलनाडु और केरल तक में कांग्रेस सरकारे थी। इंदिरा गांधी के दौर में कर्नाटक और आंध्रप्रदेश कांग्रेस का मजबूत गढ हुआ करते थे। राजीव गांधी के दौर में तमिलनाडु में भले ही उनकी सरकार न रही हो बाकी तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें होती थी। यहां तक कि पंडित अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में कभी डीएमके तो कभी आल इंडिया अन्ना डीएमके की सरकारों में बीजेपी की साझेदारी रहती थी।
अब अगर मोदी कर्नाटक में हारते हैं तो दक्षिण भारत से उनका सम्बन्ध पूरी तरह खत्म हो जाएगा। केरल में बीजेपी का एक भी विधायक नहीं है, तमिलनाडु में मामूली प्रतिनिधित्व है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बीजेपी बहुत कमजोर है वाजपेयी की जमाने में आंध्र प्रदेश की चन्द्र बाबू नायडू सरकार में भी बीजेपी शामिल हुआ करती थी। कर्नाटक के बाद बीजेपी दक्षिण भारत से पूरी तरह साफ हो जाएगी। पूरब में पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, झारखण्ड और बिहार में फिलहाल बीजेपी की सरकारें बनती नजर नहीं आ रही हैं।
मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बीच आपसी कलह ने पार्टी को बहुत नुकसान पहुंचा है तो वही इस पूरे गुटबाजी और कलह को कांग्रेस पार्टी चुनाव भुनाने में लगी है। राजस्थान में जहां कांग्रेस में गहलोत और पायलट की लड़ाई है तो बीजेपी में वसुंधरा राजे और आलाकमान के बीच खटास नज़र आ रही है। हालांकि अशोक गहलोत के जिलों को बनाने तथा स्वास्थ्य के अधिकार के फैसले ने विपक्षी दल को काफी पीछे छोड़ दिया है। छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी का बुरा हाल है और वहां पर कांग्रेस की सरकार बनती नजर आ रही है। फिर 2024 में मोदी की बीजेपी इस दावे के साथ कैसे मैदान में उतरेगी कि देश के एक सौ चालीस करोड़ लोगों की ताकत नरेन्द्र मोदी के साथ है।