भारत – मिस्र संबंधों के लिहाज से साल 2023 ऐतिहासिक होने वाला है। ऐतिहासिकता की दो बड़ी वजह हैं- प्रथम, भारत और मिस्र अपने राजनयिक संबंधों की स्थापना के 75 वर्ष पूरे कर चुके हैं। द्वितीय, 75 वर्षों की इस यात्रा को यादगार बनाने के लिए मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि की हैसियत से भाग लेने के लिए भारत आ रहे हैं।
मिस्र के साथ द्विपक्षीय संबंधों में यह एक महत्वपूर्ण अवसर है, जब भारत अपनी सैन्य कूटनीति के फलक पर मध्य पूर्व एवं उत्तर अफ्रीकी देशों के साथ अपने सुरक्षा संबंधों का विस्तार कर रहा है। मिस्र के साथ भारत के संबंध हमेशा से ही सौहार्दपूर्ण रहे हैं। 15 अगस्त, 1947 को भारत को आजादी मिलने के तीन दिन बाद ही दोनों देशों ने औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर के बीच गहरे दोस्ताना संबंध थे।
दोनों नेताओं ने यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज टीटो के साथ मिलकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी थी। कुल मिलाकर कहें तो 50 और 60 का दशक भारत- मिस्र संबंधों का स्वर्ण काल था। लेकिन 1970 के दशक के उत्तराद्ध से जब काहिरा ने सोवियत संघ के नेतृत्व वाले गुट से दूरी बनाते हुए अमेरिका के क करीब जाना शुरू किया तो भारत – मिस्र संबंधों में भी शून्यता का भाव भरने लगा।
घरेलू मुद्दे और जुदा भू-राजनीतिक विचारों की वजह से शून्यता का यह भाव अगले कुछ दशकों तक बरकरार रहा। हालांकि, शीतयुद्ध के दौरान आए इस ठंडेपन ने रिश्तों की खाई को अधिक गहरा नहीं होने दिया और अलग-अलग दौर के भू- राजनीतिक परिदृश्यों के बीच भारत मिस्र संबंध कमोबेश आगे बढ़ते रहे। कोविड-19 और उसके बाद आये डेल्टा लहर के भयानक दौर ने द्विपक्षीय संबंधों को ठंडे बस्ते से बाहर निकालने में उत्प्रेरक के तौर पर काम किया। डेल्टा लहर के उस भयावह वक्त में मिस्र उन चंद देशों में से एक था जिसने भारत को मेडिकल ऑक्सीजन की सप्लाई मुहैया करवाई।
बहुपक्षीय मंचों पर मिस्र के साथ हमारा उत्कृष्ट सहयोग है। क्षेत्रीय और दूसरे अनेक वैश्विक मुद्दों पर भी दोनों देशों का साझा दृष्टिकोण है। इसके बावजूद यह प्रश्न है कि अरब जगत की इस बड़ी शक्ति के साथ संबंधों के मामले में भारत इतना संजीदा क्यों बना हुआ है।
राजनयिक संबंधों का साढ़े सात दशकों का निर्विवाद काल कोई छोटी बात नहीं है, फिर भी विदेश नीति के मोर्चे पर मिस्र हमारा प्रमुख सहयोगी क्यों नहीं बन सका, यह प्रश्न भी विचारणीय है। भारत अपनी ‘लुक वेस्ट’ पॉलिसी को लेकर किस कदर उदासीन है इसका अनुमान इस बात से ही हो जाता है कि पिछले डेढ़ दशक में किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री ने मिस्र की यात्रा नहीं की।
आखिरी बार 2009 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए मिस्र गए थे। इस लिहाज से भी राष्ट्रपति सीसी का भारत दौरा ऐतिहासिक माना जा रहा है। मिस्र परंपरागत रूप से भारत के सबसे महत्वपूर्ण अफ्रीकी व्यापारिक साझेदारों में से एक रहा है।
मार्च, 1978 से दोनों देश मोस्ट फेवर्ड नेशन क्लॉज पर आधारित द्विपक्षीय व्यापार समझौते से बंधे हुए हैं। हाल के वर्षों में भारत- मिस्र व्यापार संबंधों में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 3.15 बिलियन डॉलर के वर्तमान भारतीय निवेश के साथ भारत मिस्र में सबसे बड़े निवेशक के तौर पर उभर कर आया है।
भारत की तीन प्रमुख कंपनियों ने मिस्र में ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए 18 बिलियन डॉलर के एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं। सुरक्षा, नवीकरणीय ऊर्जा, बुनियादी ढांचा, आईटी, फार्मास्युटिकल्स, कृषि, उच्च शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे कई क्षेत्रों में भारत और मिस्र के बीच बहुआयामी साझेदारी मजबूत हो रही है।
पिछले कुछ समय से दोनों देश रक्षा और कृषि क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर विशेष जोर दे रहे हैं। पिछले साल भारत ने मिस्र को 61 हजार टन गेहूं का निर्यात किया है, जो निर्यात के लिहाज से अपने आप में एक रिकॉर्ड है। वर्तमान में दोनों देशों की सेनाओं के बीच पहला संयुक्त युद्धाभ्यास ‘साइक्लोन – 1’ चल रहा है।
राजस्थान के जैसलमेर में चल रहे इस युद्धाभ्यास के जरिए दोनों देशों की सेनाओं की संस्कृति और लोकाचार को समझने में मदद मिलेगी। मिस्र के साथ संबंधों की दिशा में आगे बढ़ते हुए भारत ने जी-20 की अध्यक्षता के दौरान मिस्र को अतिथि देश के तौर पर भी आमंत्रित किया है। अगले महीने बेंगलुरु में होने वाली एयरो- इंडिया प्रदर्शनी में भी मिस्र भाग ले रहा है।
दरअसल, मिस्र इस समय आर्थिक कठिनाई के दौर में है। दीर्घकालिक आर्थिक संकट से बचने के लिए उसे तत्काल आर्थिक मदद की जरूरत है। ऐसे में सीसी भारत से बड़े निवेश की उम्मीद कर सकते हैं।
दूसरी ओर एशिया, अफ्रीका और यूरोप के त्रिकोण पर अवस्थित होने के कारण भारत सामरिक मोर्चे पर मिस्र की अहमियत को अब समझने लगा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सीसी के इस दौरे से भारत-मिस्र संबंधों में मित्रता और सद्भाव के नए युग आगाज तो होगा ही, साथ ही नई दिल्ली और काहिरा के बीच के संबंध नेहरू- नासिर युग से आगे निकल कर मोदी-सीसी युग के तौर पर पहचान स्थापित करेंगे।