शुरूआती धुंवाधार तूफानी विदेश दौरों के संधर्भ में चेतावनियां दी थी की इनका एक इवेंट से ज़ियादा कोई महत्त्व नहीं। मोदी जी के विदेशों में चन्द गुजरातियों दुवारा इवेंट मैनेज कर के भारतीय मीडिया में विश्व गुरु का खुद ही स्लोगन दे कर भारतीय जनमानस की उम्मीदों को चमत्कारी हिमलाय से ऊँची छोटी की निर्माण किया जिसके नतीजे में खूब चुनाव जीते। मगर देश में चुनाव जीतना कूटनीतिक कामयाबी है नाही जीडीपी ग्रोथ। वह महज़ राष्ट्र अध्यक्ष बदलने की एक छोटी सी प्रक्रिया मात्र है। विदेश मंत्रलय को अपने हाथो में लेकर मोदी जी ने देश की संप्रुभता के साथ बचकाना खिलवाड़ किया है,
भारत की कूटनीति को प्रतियक्ष अमेरिकी रणनीति के साथ मजबूती से जोड़ दिया फ्रीडम कॉरिडोर के नाम पर जापान अमेरिका से संधि की जिसके कारण रुसी कूटनीतिज्ञों ने मान लिया की भारत अब अमेरिका का समर्थन रूस के खिलाफ भी करेगा ,क्योकि रूस दक्षिण चीन सागर में चीन का सहयोगी है जिसके विरुद्ध यह संधि है।
संघ की सदियों पुरानी इजराइल भक्ति इच्छा की सनक ने रही सही विदेश निति में गहरी सेंध लगाई। भारत की फौज ने एस ४०० रक्षा प्रणाली की मांग की थी जिसके बदले इस सरकार ने संघ की इजराइली वफादारी को साबित करने के लिए इजराइली पेट्रियट खरीदने का फैसला किया जबकि उस प्रणाली को रुसी प्रणाली ने सीरिया में धुल चटाई है दूसरा प्रमाण फिलीपींस के राष्ट्रपति रॉड्रिगो डुटेर्टे का यह कहना है कि उनका देश अब अमरीका के सेकंड हैंड हथियार नहीं ख़रीदेगा। तीसरा प्रमाण तुर्की ने एस400 की रूस के साथ बड़ा सौदा किया है।
और अब भारत (शंसस) समिट में रूस के साथ फिर से एस ४०० की डील को आगे बढ़ाया। जिसे घर के बुद्धू घर को आये की संज्ञा दी जा सकती है। दूसरी भूल सुधार भी एक और भूल है (शंसस) शंघाई सहयोग संगठन में शामिल होने पर रूस का शुक्रिया अदा करना है , ज्ञात रहे इस वक्त दुनिया में चार अलग अलग संगठन अपने अपने बर्स्चव के लिए प्रयासरत हैं और भारत चारो में हम भूमिका से हासिय पर चला गया है। 1 फ्रीडम कॉरिडोर, अमरीका जापान इंडिया, विरुद्ध चीन रूस,२ रूस द्वारा बनाया जा रहा ’अन्तरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण गलियारा जिसमे भारत ईरान रूस शामिल हैं। ३ ’एक पट्टी-एक सड़क’ परियोजना पूर्व-पश्चिम जिसमे चीन पकिस्तान और युरसिया के बहुत से देश ४ शंसस, यह संगठन यूरेशिया में एकीकरण।
भारतीय प्रधानमंत्री का यह दौरा सिर्फ इस मायने में बहुत महत्त्व रखता है भारत शंसस का सदस्य होगा , यदि १ महीने तक भारत इसी निति पर टिका रहा तो इसका असली अर्थ होगा की अब रेशम मार्ग का पिछला विरोध वियर्थ गया और बदली निति में भारत पाक शांति वार्ता की दिशा में जल्दी ही आगे बढ़ेंगे। और भारत में मिडिया उफान दाल के झाग की भाति नीचे बेठ जायेगा और कश्मीर में भी थोड़ी शांति आएगी। जब की पकिस्तान कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीय करण करने का प्रयास करेगा ज्ञात रहे अब यह मुद्दा त्रिपक्षीय हो गया है क्योकि चीन भी कॉरिडोर के कारण इसका स्टेक होलडर बन गया है।
ज्ञात रहे अमेरिका से धोका खाकर भारत का वापस चीन रूस के साथ समन्वय प्रयास भरोसेमंद नहीं रहा है जबकि तीन वर्ष पहले भारत बिरिक का दुसरे नंबर का स्टेक होल्डर था। भारत की तीन वर्ष भटकती निति के कारण ही अब बिरिक बैंक के अलावा शंसस, बैंक भी होगा जो दुनिया को लीड करेगा और भारत को इसमें इतनी एहमियत नहीं प्राप्त कर सकेगा।
कुल मिला कर निचोड़ यह है की भारत की विदेश निति भटकाव के कारण किसी भी पक्ष ने गंभीरता से लेना बंद कर दिया है। और चुनावी वादे संघ एंटी मुस्लिम निति के चलते पूरे नहीं हो पाए हैं जिनमे ३० रूपए में डालर, २ करोड़ रोज़गार FDI, किसानो की आमदनी दुगनी जीडीपी १० मुख्य हैं । ज्ञात रहे भारत में हिन्दू मुस्लिम दंगो के चलते विदेशी कंपनी कारोबार करना अशुरक्षित मान रही हैं वह भारतीयों के बीच दलित मुस्लिम हिन्दू के बीच आपसी विस्वाश की कमी व् किसी भी वक्त आगजनी के खतरों में अपनी पूँजी का जुआ नहीं खेलना चाहते।
अब चौथे वर्ष में विपक्ष भारी नज़र आएगा और इजराइली लॉबी जो की इस वक़्त भारत में सबसे मजबूत है कुछ कमज़ोर होगी।
पिछले तीन वर्ष में विदेश निति का हाल मात्र दो लफ्ज़ खाया पीया कुछ नहीं गिलास तोडा बारा आना।
वाहिद नसीम