महात्मा गांधी पूरी दुनिया के लिए अहिंसा के अग्रदूत बनकर आये। उन्होंने दुनिया को यही संदेश दिया कि विभिन्न संस्कृतियों के बीच सौहार्दपूर्ण समन्वय का काम अहिंसा के बिना आगे नहीं बढ़ सकता। हथियारों के दम पर हम किसी देश को तो जीत सकते हैं पर उस देश के लोगों के दिल को नहीं जीत सकते। लोगों के दिल को जीतना दरअसल प्रेमपूर्वक उसका ह्रदय परिवर्तन करना है।
आज रूस यूक्रेन युद्ध को लेकर कुछ लोग गांधीजी का यह कहकर मजाक उड़ा रहे हैं कि रूस ने भारत से चरखे नहीं मंगाए। ऐसे लोगों को मैं कहना चाहता हूँ कि रूस हो या कोई और देश ये छल कपट पर आधारित मैक्यावली की समझ पर काम करते हैं इसलिए इनकी नीति में नैतिकता नहीं है मोरैलिटी नहीं हैं।
ये देश अभी हथियारों की ही भाषा समझते हैं चरखे की भाषा नहीं। हथियारों की ताकत पर जो संघ बना वह 1991 में 15 भागों में विभाजित हो गया लेकिन गांधी के चरखे पर बना देश आज तक अक्षुण है।
जब गांधी के 78 वें जन्मदिन पर कांग्रेसियों ने संकल्प लिया कि वे 78 दिन तक चरखा कातकर 78 किलो सूत जमा करेंगे। गांधी ने उन्हें फटकारते हुए कहा कि चरखे का पहला दौर खत्म हो चुका है। पहले दौर का मतलब था समाज के गरीब लोगों को उनकी ताकत का अहसास कराकर देश को आजाद कराना। अब देश आजाद हो चुका है इसलिए अब चरखे का अब दूसरा दौर शुरू होगा जिसका सीधा अर्थ है आजाद भारत में सक्रिय अहिंसा।
अब हमें आजादी मिल चुकी है और सारी ताकत हमारे हाथों में आ चुकी है इसलिए अब हम इस ताकत का उपयोग देश के नवनिर्माण में लगाएं। चरखे के दूसरे दौर का मतलब यही है कि हम आजादी से प्राप्त ताकत का इस्तेमाल समाज के सबसे कमजोर और अहिंसक व्यक्ति को मारने में न करें। हम एक सभ्य राष्ट्र बनें। सभ्य राष्ट्र का मतलब यही है कि हमें एक नए ढंग से मिलजुल कर रहने की एक नई जुबान विकसित करना होगी।
हमें एक दूसरे के साथ जुड़ाव महसूस करना होगा तथा साथ रहने का एक नया तरीका निकालना होगा। हिंदुस्तान एक ऐसा मुल्क होगा जो सम्पूर्ण शांतिप्रिय मानवता के लिए एक तरह का आमंत्रण, एक तरह का खुला दरवाजा होगा जिसमें कोई भी आकर शांति, सुकून और इत्मीनान महसूस कर सकता है।
इसलिए गांधी के चरखे ,गांधीजी के पहनावे का मजाक उड़ाने वाले लोग यह समझ लें कि कई बातें ऐसी हैंजिनके लिए हम गांधीजी को पूरी दुनिया में अनूठा मान सकते हैं। पहला उनको मौत से भय नहीं था, दूसरा उनको हारने के कोई भय नहीं था, तीसरा उनको खुद के पहनावे का कोई हीनताबोध नहीं था, चौथा उन्हें किसी भी नए काम में गलती करने से कोई भय नही था और पांचवा उन्हें अपने देशवासियों को कड़वे सच सुनाने में कोई भय नहीं था। वे भारत सहित पूरी दुनिया के लिए एक ऐसी पहेली बनकर आये जिसको समझने और शोध करने में सैकड़ों साल लग जाएंगे।
गांधीजी दरअसल सियासत का एक नया उसूल पेश कर रहे थे जिसे अधिकांश लोग समझ नहीं पा रहे थे। क्योंकि अधिकांश लोगों की सियासत की समझ चाणक्य और मेकियावली की समझ थी। गांधीजी का मानना था कि चाणक्य और मैक्यावली छल प्रपंच के व्याख्याता कहे जा सकते हैं नैतिकता के नहीं। यानी चाणक्य व मैक्यावली की समझ में एथिक्स और मोरालिटी नहीं है।
गाँधी कहते हैं नीति अगर कोई है तो उसमें नैतिकता होना जरूरी है। वे यह भी कहते हैं कि अहिंसा मेरी नीति और मेरा मजहब है और मैं अपने नैतिक बोध पर टिका रहूंगा। हो सकता है कि कांग्रेस एक पार्टी व संगठन के रूप में अहिंसा को अपनी नीति या मजहब न समझती हो। शायद इसलिए वे कांग्रेस की चार आने की सदस्यता तक से खुद को अलग कर लेते हैं। क्योंकि उनका मानना था एक संगठन के लिए यह मुश्किल है कि वह पूरी तरह से अहिंसा के सिद्धांत पर अमल करें।
किसी भी राष्ट्र के लिए नैतिक होना मुश्किल है ये बात गांधीजी अच्छी तरह समझते थे। किसी भी राष्ट्र की रक्षा के लिए सेना का अहिंसक होना मुश्किल है इस बात को भी गांधीजी अच्छी तरह समझते थे। इसीलिए 1947 में जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया उस समय गांधीजी ने सरदार पटेल को खत लिखा कि पाकिस्तान का मुकाबला करो, फौज कश्मीर भेजो और वहां से पाकिस्तान को खदेड़ कर बाहर कर दो।
लेकिन अपना नैतिक पक्ष मजबूत रखो। बंटबारे में जो धनराशि तुमने पाकिस्तान को देना तय किया है, उससे पीछे मत हटो, उसे पूरा करो। यही नहीं उन्होंने पाकिस्तान से लड़ने वाली भारतीय फौज को भी आशीर्वाद दिया और कहा कि जाइये और लड़िये। अन्तराष्ट्रीय सीमा पर देश की रक्षा कैसे होगी, मैं अहिंसा के जरिये फिलहाल ये रास्ता अभी तक नहीं खोज पाया हूँ। इसलिए जो रास्ता तुमको मालूम है उस रास्ते से देश की रक्षा करो।
इसलिए मैं कहना चाहता हूँ कि आधुनिकता अगर कुछ है तो वह अहिंसा में छिपी हुई है, हिंसा में नहीं। अहिंसा का अभ्यास करना, लोगों को अहिंसक बनाना मेहनत का काम है। गांधी ने अहिंसक लोगों को बहादुर बनाया। उन्हें पुलिस की लाठी झेलने के लिए तैयार किया।
अगर लोगों का दिमाग नहीं बदला तो समाज नहीं बदलेगा। हिंसा के सबसे आधुनिक हथियार इकट्ठा कर आप किसी देश के लोगों का जनसंहार करते हैं तो आप आधुनिक नहीं हो जाते। आप आधुनिक तब होते हैं जब हजारों हजार निहत्थे लोगों के अंदर आप यह विश्वास पैदा कर सकें कि वे खड़े होकर अन्याय का मुकाबला करें ।