आइये आपको मीनाक्षी झा से मिलाता हूं। वर्चुअल दुनिया में मीनाक्षी mee jey हैं। मी को हम सभी ने कई साल से कला की साधना में देखा है। हरे रंग की बुलेट से मी और सुशील भारत के अलग-अलग हिस्सों में जाते रहे। लोगों के घरों में ठहरते रहे। उनकी दीवारों पर मी की कलाकृतियां पूरी होते ही सफर पूरा हो जाता था। दोनों अगली यात्रा के लिए निकल पड़ते थे और इस तरह से हमारे लिए एक कलाकार को जानने का सफर चलता रहता था। हम पहली बार किसी कलाकार को बनते देख रहे थे। हम से मतलब मैं चूंकि मैं मैं ठीक नहीं लगता इसलिए हम हम लिखते हैं।
पटना से दिल्ली आने के कई साल बाद नई सड़क पर बिकने वाली कला की पतली-पतली किताबों से कुछ महान कलाकारों से परिचय हुआ। बहुत थोड़ा सा। तब यही लगा कि इन महान कलाकारों के बाद कलाकारों का दुनिया में आना बंद हो चुका है। यही हैं जिन्हें जान लेना है। ऐसा इसलिए लगता था कि हमने किसी बड़े कलाकार का ज़िक्र किसी किताब में ही देखा। साक्षात तो देखा नहीं था। इसके पहले प्रेस क्लब के पास जिस इमारत में बी बी सी का दफ्तर हुआ करता था उसके नीचे आर्ट गैलरी थी,वहां एक कलाकार की बनाई बड़ी बड़ी पेंटिंग देखी थी। तेज़ गर्मी के दिन थे और दिल्ली उजाड़ लग रही थी। उस आर्ट गैलरी में घुस गया कि देखते हैं यहां क्या है। उसके बहुत साल बाद अशौक भौमिक को जाना तब उनके घर तक गया। यह देखने के लिए कैनवस पर कलाकार कैसे काम करते हैं। उनकी एक किताब भी पढ़ी मोनालिसा हंस रही थी। फिर उन्हीं के कारण सैनिक फार्म के किसी मकान में जाना हुआ जहां कला के बड़े बड़े पोस्टर रखे थे। लेकिन यहां भी मैं बन चुके या कला की दुनिया में आ चुके लोगों को जान रहा था।
साल और महीना याद नहीं है। फेसबुक या किसी और वजह से यह भी याद नहीं है। मी जे को जानने का सफ़र शुरु होता है। जानने से आप यह न समझें कि घर आना-जाना होने लगता है या मिलना-जुलना होने लगता है। एक बार दफ्तर के बाहर मुलाकात हुई थी। मी अपने बारे में कम बात करती थीं। अब समझ में आ रहा है। शायद यह एक कलाकार का चुनाव होगा कि उस पर ध्यान कम जाए। उसकी बात कम हो। उसकी कला की बात ज़्यादा हो। इसका मौक़ा भी नहीं मिला कि उनके काम को या एक कलाकार के मन को समझने की कोशिश की जाए। जब तब तक इसकी नौबत आती, मी का वो मकान ही बदल गया जिसके बरामदे में खड़ी बुलेट की तस्वीर हर वक्त अगली यात्रा की तरफ निकलती हुई लगती थी। मी और सुशील अमरीका चले गए। बुतरु जो इंडियन होता अमरीकन हो गया। लेकिन फेसबुक के ज़रिए मी के काम से रिश्ता बना रहा। हम क से एक कलाकार को बनते देखते रहे। कभी समझ आता था। कभी समझ नहीं आता था। लेकिन चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक की तरह कभी चुनाव के काम से पहले शहर के मंदिरों में जाने के जैसा तो कभी चुनाक के काम के बीच रुक कर इलाके का स्वाद लेने की तरह हम भी कला की दुनिया में भटक आते हैं। ख़ुद को नहीं रोकते। आप भी अपने को मत रोका कीजिए।
मी एक दिन अमरीका चली गईं।अचानक पति पत्नी हर दिन अपनी तस्वीरें पोस्ट करने लगे। स्लेट पर कुछ नंबर लिखा होता था और साइड और फ्रंट फेस के कई प्रकारों की तस्वीरें एक दिन जब गैलरी में लगी तो पता चला कि हम जिस कलाकार को बनते देख रहे थे, अब उसे जानने लगे हैं। और मी को जानने के लिए चश्मे का नंबर अलग रखना पड़ेगा। हैबिटाट सेंटर में उनकी कला की प्रदर्शनी से लौट कर यही सोचता रहा कि एक कलाकार को ठीक ठीक जानने से रह गया।
मैंने कलाकारों को देखा है। भीड़ में भी कोने की तरह चलते हैं। उनके पास इस दुनिया को कहने और लिखने की भाषा हम सभी से अलग होती है। ऐसे ही एक कलाकार विक्रम नायक को जानता हूं। सामने भी बैठे रहते हैं तो कोने में बैठे लगते हैं। लगता है कि कलाकार की नज़र ने अभी-अभी कुछ स्कैन किया है। पता नहीं किस तरह का प्रिंट-आउट निकलेगा। जो भी है कुछ था जो कला की इस दुनिया तक पहुंचना चाहता था। कभी नहीं पहुंचा। दो दो बार आर्ट फेस्टिवल को लेकर प्रोग्राम भी कर चुका हूं। ताकि जीवन में यह रिकार्ड रहे कि कोशिश की। और हां पेरिस के लुव्र में जब दो दिनों तक आदमकदम उन महान कृतियों को देख रहा था तो ख़ुद पर इतरा भी रहा था। नई सड़क से उठा कर खरीदी गईं पतली सी कला की किताबों से कहीं ज्यादा व्यापक संसार देख रहा था। और हां अभी रुकिए। बर्लिन के pergamon म्यूज़ियम और न्यूयार्क के मेट म्यूज़ियम का किस्सा विस्तार से लिखना ही भूल गया। किसी ने कहा था कि तुम बर्लिन में हो और म्यूज़ियम नहीं जाओगे! मूर्ख हो क्या। तो बस हम पहुंच गए म्यूज़ियम औऱ देखने का अनुभव संसार दिव्य हो गया। धन्य हो गया। अब आप इसी तरह याद कीजिए कब कब कहां कहां कला से टकराए और टकराते टकराते रह गए।
तो आप समझ रहे होंगे कि मैं मी जे के बारे में बात कर रहा हूं या उनकी कला के, या कला से अपने परिचय के बारे में ? इतनी लंबी भूमिका इसलिए बांधी कि आप कला से दहशत खाने की ग़लती न करें। इसके करीब उसी तरह से जाया करें जिस तरह से आप पहली बार किसी शहर में बसने या घूमने चले जाया क रते हैं। मगर जाया कीजिए। आपके अंदर भी ऐसी कोई हूक होगी तो उसे सुनिए। उसे पाने की तलाश में निकल पड़िए। कलाकार बनिए।
मी जे की कला को दुनिया में मिल रही मान्यताओं से आज हम ख़ुश हैं।सम्मान सिर्फ पाने वाले का नहीं होता है उसे सराहने वालों का भी होता है। उसके ज़रिए सभी को मिलता है। तो मी जे को सेंट लुई विज़नरी इमर्जिंग अवार्ड मिला है। उनके साथ पांच अन्य महिलाओं को भी यह पुरस्कार दिया जाएगा जिसमें एमिली पुलित्जर भी हैं। पत्रकारिता की दुनिया का प्रतिष्ठित पुरस्कार इसी परिवार की तरफ से दिया जाता है और एमिली इस परिवार की मुखिया है। तो यह बड़ी बात है और इसका स्वागत ज़ोरदार तरीके से होना चाहिए।
इसी के साथ सेंट लुई शहर ने दो कलाकारों को चुना है। इन दोनों को Laumeier Sculpture Park में एक साल के लिए रेसिडेंसी दी जा रही है जहां इन्हें अपने काम को और निखारने का मौका मिलेगा और कला की दुनिया के लोग मीनाक्षी की कला को और जान सकेंगे। यह अमरिका का सबसे बड़ा मूर्तिशिल्प पार्क है। मातिल्दा ल्युमियेर ने 72 एकड़ ज़मीन भविष्य के कलाकारों के लिए दान कर दी थी। जिसके लिए मीनाक्षी को चुना गया है।
हम नहीं चाहते कि आप केवल मी को जानें बल्कि उनके काम को ज़्यादा जाने तो इसमें बहुत खुशी होगी। तो मेरे साथ मी जे को शुभकामानाएं दीजिए और उनकी बनाई आकृतियों पर एक नज़र डालिए। कमेंट में एक वीडियो का लिंक दे रहा हूं उसे देखने के बाद आपको और अधिक जानने में मदद मिलेगी। मी जे को बहुत बहुत बधाई। मी जे फेसबुक पेज पर भी हैं। कभी-कभार ही लिखती हैं लेकिन वहां आपकी मुलाकात हो जाएगी। बस आपको उनका पेज खोजना पड़ेगा। मी को बहुत बहुत बधाई। शानदार काम है।