नेहरू जब दिल्ली के पुलिस प्रमुख, राज्यों के मुख्यमंत्रियों, देश के गृह और देश के भावी राष्ट्रपति को आरएसएस और हिंदू महासभा के खतरे से बारे में आगाह कर रहे थे. तब एक और महत्त्वपूर्ण शख्स था, जो नेहरू को इस खतरे की गंभीरता की जानकारी दे रहा था. वह शख्स उस समय संयुक्त प्रांत अब उत्तरप्रदेश सरकार का एक मंत्री था और नेहरू के बाद देश का प्रधानमंत्री बनने वाला शख्स थे लाल बहादुर शास्त्री.
राष्ट्रपिता की हत्या से दो दिन पहले 28 जनवरी, 1948 को नेहरू ने पटेल को लिखे ख़त में यह बात बताई. नेहरू ने कहा : “संयुक्त प्रांत सरकार के मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने मुझे बताया है कि आरएसएस के लोगों को भरतपुर में हथियारों की ट्रेनिंग दी जा रही है. संयुक्त प्रांत से बहुत से लोग ट्रेनिंग के लिए या अन्य दूसरी वजह से इन शिविरों में गए हैं. ये लोग वहां से हथियारों के साथ लौटे हैं. हमने पहले भी सुना है कि भरतपुर रियासत में इस तरह के ट्रेनिंग कैप चलाए जा रहे हैं. यह बात साफ़ है कि इस तरह की चीजें अभी भी चल रही हैं और संयुक्त प्रांत की सरकार इस बारे में काफ़ी चिंतित है.’
(पत्र के नीचे की टिप्पणी: मई-जून, 1947 में भरतपुर और अलवर में आरएसएस के शिविर और रैलियां आयोजित किए गए और इन राज्यों में आरएसएस के स्वयंसेवकों को मिलिट्री ट्रेनिंग भी दी गई.)
लाल बहादुर शास्त्री से मिली सूचना ने नेहरू को उद्विग्न कर दिया, अब तक के कांग्रेसियों से संवाद कर रहे थे, लेकिन अब वे श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तरफ़ मुड़े।
मुखर्जी उस समय नेहरू सरकार में उद्योग मंत्री थे, तब तक उन्होंने जनसंघ की स्थापना नहीं की थी और हिंदू महासभा से जुड़े हुए थे. उस हिंदू महासभा से जिसकी उम्र सांप्रदायिक गतिविधियों पर नेहरू बराबर निगाह रखे हुए थे. और आगे चलकर जिसका नाम गांधी हत्याकांड में आने वाला था. जल्द ही नेहरू के दबाव में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ख़ुद को हिंदू महासभा से दूर करने वाले थे और जनसंघ खड़ा करने वाले थे, जिससेबाद में भारतीय जनता पार्टी का उदय होना था. इस तरह परोक्ष रूप से नेहरू के दबाव से ही जनसंघ का जन्म हुआ और फिर उससे भाजपा बनी, बहरहाल, पटेल को शास्त्री की तरफ से बताए गए ख़तरे से आगाह करने के बाद इसी दिन नेहरू ने मुखर्जी को समझाया:
“पिछले कुछ समय से हिंदू महासभा की गतिविधियों से मैं बेहद दुखी हूं. इस समय यह न सिर्फ भारत सरकार और कांग्रेस के लिए मुख्य विपक्ष है, बल्कि यह एक ऐसा संगठन है जो लगातार हिंसा को भड़का रहा है. आरएसएस ने तो इससे भी बुरी तरह काम किया है, उसकी करतूतों और दंगों और अशांति में इसके जुड़े होने के बारे में हमने सूचना इकट्ठा की है.
इसके अलावा जो मैंने ऊपर लिखा है, जो चीज़ मुझे सबसे ज्यादा तकलीफ़ दे रही है, वह है हिंदू महासभा के मंच से बेहद अश्लील और असभ्य भाषा का प्रयोग. गांधी मुर्दाबाद उनके विशेष नारों में से एक हैं. हाल ही में हिंदू महासभा के एक प्रमुख नेता ने कहा कि नेहरू, सरदार पटेल और मौलाना आजाद को फांसी पर टांगने के बारे में लक्ष्य साधा जाना चाहिए.
सामान्य तौर पर किसी व्यक्ति को दूसरों की राजनीतिक गतिविधि में हस्तक्षेप नहीं। करना चाहिए, भले ही वह उसे कितना ही नापसंद क्यों न करता हो. लेकिन इन चीज़ों की भी कोई हद है. मुझे लग रहा है कि अब पानी गले तक पहुंच गया है. मैं आपको इसलिए लिख रहा हूं, क्योंकि आप खुद भी हिंदू महासभा से क़रीब से जुड़े हैं. हमसे हमारी पार्टी में, संविधान सभा में और दूसरी जगहों पर लगातार पूछा जाता है कि इस बारे में आपकी स्थिति क्या है, मैं आपका बहुत आभारी रहूंगा, यदि आप मुझे यह बताएं कि इन हालात से निबटने के बारे में आप क्या सोच रहे हैं. क्योंकि यह हालात उसी तरह आपको भी शर्मिंदा कर रहे होंगे, जिस तरह मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं।”
(पत्र के नीचे नेहरू-वांग्मय के संपादक की टिप्पणी: हिंदू महासभा ने पुणे, अहमदनगर और दिल्ली में निषेधाज्ञा का उल्लंघन कर सभाएं आयोजित की. इस तरह के भाषण दिए गए जिनमें कहा गया कि महात्मा गांधी एक बाधा हैं और वह जितनी जल्दी भर जाएं, देश के लिए उतना अच्छा है. 15 अगस्त, 1947 के बाद से 2 जीने के भीतर आरएसएस के लोगों पर हथियार इकट्ठा करने, गांव पर हमला करने, लोगों से मारपीट करने के 700 के करीब मामले दर्ज किए गए थे. 24 जनवरी, 1948 कुछ लोग बिरला भवन के गेट के बाहर खड़े हो गए और गांधी मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे नेहरू महात्मा गांधी से मुलाकात के बाद बाहर आ रहे थे. जब उन्होंने यह सुने तो वह अपनी कार से नीचे उतर आए और चिल्लाए, ‘तुम्हारी यह बात कहने की हिम्मत कैसे हुई। आओ पहले मुझे मारो।”)
पीयूष बबेले