कहाँ जाता है कि ईश्वर पता नही कब किसको अपनी और अग्रसर करले, हालांकि हर व्यक्ति हर वक़्त डाटा की ज़ानिब ही अग्रसर रहता है, लेकिन अपनी कामयाबी को हासिल करने के लिए वह उस ईश्वर की वंदना करना भी भूल जाता है जिसने उसको पैदा किया है, ज़िन्दगी की भागदौड़ में कुछ के कुछ ख्याल आते है,कही मैं ऐसा होता वैसा होता।
हम बात कर रहे हैं आरिफ़ ख़ान की,जिसने मशहूर फ़िल्म फूल और कांटे में बेहतरीन किरदार अदा किया था,वो इस फ़िल्म में नेगेटिव भूमिका में थे।आरिफ़ के फूल और कांटे फ़िल्म में बेहतरीन अभिनय करने के बाद आरिफ़ की फ़िल्मी दुनिया मे काफ़ी तारीफ़े हुई थी,जिसके बाद आरिफ़ के पास काफ़ी फिल्मों में काम करने के ऑफर आये थे जिनको आरिफ़ ने क़ुबूल कर अपनाया था और कई फिल्मों में काम किया था।

आरिफ़ ने इन फिल्मों को पूरा करने के बाद यानी 2003 के बाद फ़िल्मी दुनियां को अलविदा कहकर इस्लामिक संस्था तब्लीग जमाअत से रिश्ता बना लिया और मज़हब-ए-इस्लाम के प्रचार प्रसार में लग गए।
90 के दशक में अजय देवगन की आई फ़िल्म ‘फूल और कांटे’ में विलेन रॉकी का किरदार अदा करने वाले आरिफ खान अब पिछले 15 सालों से फिल्मी दुनिया से दूर होकर अब इस्लाम के आदर्शों के मुताबिक अपना सीधा साधा यानी इस्लाम के मुताबिक़ जीवन बसर कर रहे हैं।

तब्लीग़ी जमाअत से जुड़ने के बाद आरिफ़ ख़ान इस्लाम के प्रचार प्रसार करने के लिए विदेश भी गए तथा कई देशों की यात्राएं भी की है,आरिफ़ कई बार औरंगाबाद में जमाअत में भी आ चुके है और वहां की जामा मस्जिद में उनके कई इस्लाम के लिए बयानात भी दिए गए है.आरिफ़ ने फिल्मों में काम करके जो भी रुपया कमाया था उसको छोड़ दिया था इसलिए उनके सामने कई बार आर्थिक रूप से कमज़ोर भी हुए।
औरंगाबाद जिले के इज्तेमा में मुंबई से आकर उन्होंने 2 बार जूस सेंटर चलाया। उन्होंने काफ़ी कठिनाइयों का सामना भी किया व ज़िन्दग़ी को नीचे ऊपर होते हुए भी देखा. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। वह लगातार धर्म के काम में लगे रहे। अब फ़िलहाल पुणे में कपड़े की दुकान चलाते हैं और अब उनकी आर्थिक हालत भी ठीक हो गयी है.
धर्म के लिए उन्होंने एक ग्लैमरस फ़ील्ड को छोड़ दिया।हम देखते हैं कि अक्सर लोग पैसों के चक्कर में और दुनिया के फ़ेक ऐश ओ आराम के चक्कर में सब कुछ भूल जाते हैं। इस वजह से उन्हें अवसाद जैसी शिकायतें आती हैं।
आप किसी भी प्रोफेशन में रहें लेकिन ज़रूरी ये है कि आप अपने अंदर एक अध्यात्म तो ज़िंदा ही रखें, यही हमें कामयाबी का रास्ता दिखाता है.किसी न किसी प्रकार की सेवा में लगे रहना बेहतर रहता है। अपने आस पास जो लोग परेशान हैं उनकी मदद करें और किसी का बुरा न करें।ज़िन्दगी इसी तरह ख़ुश रह सकती है।