इंडिया गेट भी एक युद्ध स्मारक ही है, पर वह युद्ध ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा प्रथम विश्वयुद्ध के रूप में लड़ा गया था। बड़ी संख्या में भारतीय सैनिकों ने उस युद्ध मे भाग लिया था और अपनी वीरता से दुनिया को अचंभित भी किया था। उन्ही बहादुर सैनिकों के नाम उस इंडिया गेट पर अंकित है। इंडिया गेट को ब्रिटिश भारत की ओर से लड़ते हुए शहीद हुए 90 हजार भारतीय सैनिकों की याद में अंग्रेजों ने 1931 में बनावाया था। यह सैनिक फ्रांस, मेसोपोटामिया, पर्शिया, पूर्वी अफ्रीका, गैलिपोली, अफगानिस्तान, दुनिया के कई अन्य हिस्सों में लड़े थे। यहां 13 हजार शहीद सैनिकों के नामों का उल्लेख है।
1971 में भारत की पाकिस्तान पर अभूतपूर्व विजय हुयी थी और धार्मिक राष्ट्रवाद का सिद्धांत ध्वस्त हो गया था। एक नए देश के रूप में बांग्लादेश का उदय हुआ। 1971 के युद्ध की जीत व बांग्लादेश की आजादी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शहीदों की याद में 1972 के गणतंत्र दिवस पर इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति प्रज्वलित की थी, जो 21 जनवरी तक अनवरत जलती रही।
देश मे कोई वॉर मेमोरियल नहीं था। इंडिया गेट के पास ही एक नया वॉर मेमोरियल बनाया गया। वहां भी शोक परेड और पुष्पचक्र अर्पित कर के शहीदों को श्रद्धांजलि देने की व्यवस्था है। पर वह एक सामान्य वार मेमोरियल है, जबकि अमर जवान ज्योति, स्वाधीनता के बाद, अब तक की सबसे गौरवशाली युद्ध के शहीदों की स्मृति में प्रज्वलित थी।
केंद्र सरकार का कहना है कि वह अमर जवान ज्योति को बुझा नहीं रही है, बल्कि उसका कुछ ही दूरी पर बनाए गए राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की ज्वाला में विलीन किया जा रहा है। केंद्र का कहना है कि अमर जवान ज्योति के स्मारक पर 1971 और अन्य युद्धों के शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है, लेकिन उनके नाम वहां नहीं हैं।
अब इंडिया गेट की उस ज्योति विहीन सूनी जगह का क्या उपयोग होगा, यह तो पता नहीं, पर दिल्ली शहर के उस सबसे आकर्षक स्थल से गुजरते हुए पहले, जिस अमर जवान ज्योति के दर्शन हो जाते थे, वह अब अतीत बन चुकी है। अब न वहां ज्योति दिखेगी, और न ही उसके बारे में कोई जिज्ञासा उठेगी। अब वहां एक खालीपन है। कुछ दिन यह खालीपन अखरेगा, लोगों के मन मे, तरह तरह के सवाल उठाएगा, शंकाएं उत्पन्न करेगा और फिर जैसे सब कुछ सामान्य हो जाता है, यह भी सामान्य हो जाएगा।