यूँ तो मोदी की छवि एक कुशल वक्ता की है। लेकिन सच यही है कि यह कुशलता टेलीप्रॉम्प्टर की है जिसके मोहताज हैं मोदी। टेलीप्राम्पटर हट जाए फिर मोदी बग़लें झांकने लगते हैं।
कल विश्व आर्थिक मंच में बोलते हुए प्रधानमंत्री के टेलीप्रॉम्प्टर में अचानक गड़बड़ी आ गयी और मोदी बेबस हो गए। तकनीक के बिना अंतिम वाक्य ‘टेम्परामेंट और हम भारतीयों का टैलेंट जिस…’ को भी पूरा न कर सके। अब सोशल मीडिया पर यह वीडियो वायरल है।
लेकिन मोदी की सच्चाई यही है। यहाँ होता कुछ और है, दिखता कुछ और है। संभवतः यही कारण है कि मोदी सार्वजनिक संवाद से बचते नज़र आते हैं।
टेलीप्रॉम्प्टर के सहारे घंटों अच्छा भाषण देने वाले मोदी सवाल-जवाब, संवाददाता सम्मेलनों से भागते रहे हैं। हाँ सेट इंटरव्यू जहाँ सवाल-जवाब पहले से तय हों, से उनकी छवि को बनाए रखने का प्रयास होता है। ‘मन की बात’ जैसे एकतरफ़ा संवाद से इस भ्रम को क़ायम रखा जाता है।
सात सालों से अधिक समय तक प्रधानमंत्री बने रहने वाले मोदी इकलौते प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने कोई संवाददाता सम्मेलन नहीं किया सिर्फ़ एक अपवाद को छोड़कर जहाँ वह अमित शाह के साथ रिपोर्टरों के सामने बैठे थे। परन्तु जब उनसे सवाल हुए तो उन्होंने खुद जवाब न देकर अमित शाह की ओर इशारा कर दिया। जब अधिकांश मीडिया उनके अनुकूल काम करती हो तब भी प्रेस कांफ्रेंस से बचना उनकी मजबूरी लगती है। यह डर है कि एजेंसियों और तमाम हथकंडों के दम पर गढ़ी गई छवि कहीं टूट न जाए। संसाधनों के सहारे बना आभामंडल बिखर न जाए।
यही कारण है कि ऐसी कोई चूक होने पर भाजपा का आईटी सेल उस आभामंडल के बचाव में पूरी ताक़त से उतर जाता है।
संलग्न तस्वीर देखिए… ये उस आभामंडल को बचाने और बनाए रखने की क़वायद है। सैंकड़ों-हज़ारों ट्वीट हुए बचाव में लेकिन सब एक ही जैसे… समान शब्दों में हू-बहू!
यह मायाजाल ही तो है जिसमें अलग-अलग लोग अलग-अलग जगहों से एकदम से एक ही ट्वीट करते हैं। समझिए कि कितनी मेहनत से बजता है- डंका!!