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Home स्तंभ

जमीयत उलमा-ए-हिंद का शानदार इतिहास ,मौजूदा दौर के आईने में

shamsaghaz by shamsaghaz
नवम्बर 23, 2021
in स्तंभ
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जमीयत उलमा-ए-हिंद का शानदार इतिहास ,मौजूदा दौर के आईने में
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जमीयत उलमा-ए-हिंद का शानदार इतिहास ,मौजूदा दौर के आईने में
जमीयत उलमा-ए-हिंद के 102वें स्थापना दिवस पर ख़ास

वतन-ए-अज़ीज़ में मिल्लत इस्लामिया हिन्द की नुमाइंदा जमाअत ( संस्था ) जमीयत उलमा-ए-हिंद ने अपने गौरवशाली अतीत के एक सौ दो साल पूरे कर लिए हैं। जमीयत उलमा-ए-हिंद भारत की एकमात्र मुस्लमानाने हिन्द की वो जमाअत है l जिसका नेतृत्व करने वालो ने सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ देश भर में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ जनमत को जगाने और देश की आज़ादी की लड़ाई एवम मुल्क की उन्नति तरक़्क़ी में नाकाबिले फरामोश भूमिका निभाई है। स्वतंत्रता आंदोलन में उलमा-ए-इकराम ( विद्वानों ) ने स्वतंत्रता आंदोलन में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है कि अगर वे अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ नहीं लड़ते तो हमें आजादी का सूरज नसीब ना होता ।

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इसलिए इस संगठन के घोषणापत्र में मानवता की केंद्रीयता और मानव कल्याण का सर्वोपरि महत्व है। जमीयत उलमा-ए-हिंद के वरिष्ठ उलमा क़ायदों ने इस बात पर भी अफसोस जताया था कि वह दो राष्ट्र की विचारधारा का पुरजोर विरोध करने वाले और एक संयुक्त राष्ट्र का पूरी तरह से समर्थन करने वाले पहले व्यक्ति थे।
जमीयत उलमा-ए-हिंद की 19 नवंबर 1919 को स्थापना ऐसे समय में की गयी थी जब अंग्रेजी अत्याचार अपनी तर हदो को पहुंच रहा था।अंग्रेज के इस खून खराबे के विरोध में कोई साहस व ज़बान तक ना खोलने की हिम्मत नही कर पा रहा था तथा इस जुल्मो अत्याचार के ख़िलाफ़ बड़े बड़े दानीश्वराने कौम तक लाचार हो गये l तब इस जमाअत के संस्थापको ने देश की पूर्ण आजादी की मांग का नारा दिए और इस आवाज़ को बड़ी मजबूती से उठाया l इस जमाअत का दृष्टिकोण हमेशा देश और राष्ट्र के मामले में सकारात्मक, सदाचारी और उपयोगी रहा है। जमीयत ने हमेशा ईमानदारी और उदारता के साथ सामाजिक और जनहित के लिए काम किया है।जोकि इतिहास में दर्ज है।

इस प्रकार जमीयत उलेमा-ए-हिंद की सेवाओं के कई अध्याय और शीर्षक हैं। इसकी स्थापना से अब तक जमीयत का एक मिशन रहा है, जिसे जमीयत के अकबीरीन ने बनाया है l इस जमाअत का मुख्य मिशन सेवा करना है ओर बिना किसी भेद भाव से लोगो के मानवाधिकारों की रक्षा, धार्मिक सहिष्णुता, शांति और एकजुटता, धार्मिक हिंसा का और घृणा का खात्मा, अल्पसंख्यकों और अन्य पिछड़े और उत्पीड़ित वर्गों के मुद्दे को उठाना हमेशा इसके एजेंडे में सबसे ऊपर रहे हैं।

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जमीयत के इतिहास पर नजर डालें तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश और देश की जो भी समस्याएं हैं, उन्हें संवैधानिक और कानूनी ढांचे के भीतर हल करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, क्योंकि जमीयत उलेमा-ए-हिंद जीवन और सामाजिक कल्याण की एक व्यापक अवधारणा है जो हमेशा उसके सामने रहती है। बाबरी मस्जिद के जीर्णोद्धार का मामला हो, पक्षपातपूर्ण अधिनियम और विधेयक हो, पोटा, यूएपीए, सीएए, एनआरसी जैसा काला कानून हो, असम में नागरिकता का मुद्दा हो, या मुसलमानों को ‘डी-वोटर’ घोषित किया गया हो और चाहे हिंदुओं का मामला हो, जमानत का मामला हो और आतंकवाद के आरोप में निर्दोषों की रिहाई का मुद्दा हो, जमीयत ने बिना किसी भेदभाव के सभी मोर्चों पर सफलतापूर्वक मुकदमो को अदालतों में मजबूत पैरवी की कोशिश की है और उत्पीड़ितों को संवैधानिक सुरक्षा का प्रावधान सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने ना केवल आतंकवाद के आरोपियों के मामलों को आगे बढ़ाया है बल्कि उनके परिवारों को राहत और वित्तीय सहायता प्रदान करने और उन्हें हर तरह की राहत प्रदान करने का भी प्रयास किया है। जमीयत ने न केवल उन्हें सम्मानजनक रिहाई दिलाई है, बल्कि उन्हें मुआवजा देने और उनके जीवन को बेहतर बनाने के प्रयास भी जारी रखे हुये हैं। जमीयत ने किसी आपदा या किसी अन्य अवसर पर केवल मानवीय सहानुभूति के आधार पर बाढ़ पीड़ितों को राहत प्रदान की है। इससे पहले बाढ़ पीड़ितों को घर सौंपे गये ।

बिहार में न केवल बाढ़ पीड़ितों के लिए भोजन की पूरी व्यवस्था की गई थी एवम पीड़ितों के लिए घरों का निर्माण भी किया गया था। इसी तरह गुजरात बाढ़ पीड़ितों के लिए तत्काल राहत कार्य किया गया। जमीयत ने मुजफ्फरनगर दंगों के पीड़ितों के लिए घर, मस्जिद और मदरसे भी बनवाए। असम दंगा पीड़ितों के पुनर्वास के लिए घरों का निर्माण किया गया है और हाल ही में महाराष्ट्र बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास का काम भी जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा बहुत तेजी से चल रहा है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुए दंगों के मद्देनजर जमीयत अपनी सामाजिक और राष्ट्रीय जिम्मेदारी को समझते हुए पीड़ितों की हर संभव मदद करने, कानूनी मदद देने ओर शहीद मस्जिदों के पुनर्निर्माण के लिए समय पर आगे आयी । गरीबों और असहाय लोगों को चिन्हित कर पीड़ितों के लिए व्यापार उपकरण भी व्यवस्थित किए गए थे जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया था ताकि वे रोजगार शुरू कर सकें और अपने परिवारों का पालन पोषण कर सकें। जब वैश्विक महामारी “कोरोना” की भयावहता के कारण देश में उथल-पुथल मची हुई थी, सरकार एवं मीडिया द्वारा तबलीगी जमात को देश में वायरस फैलाने का दोषी ठहराया गया था।

राष्ट्रीय मीडिया में उनके खिलाफ एक बहुत ही शर्मनाक और घृणित अभियान चलाया गया। पूरे देश को यह विश्वास दिलाया गया कि कोरोना के खतरनाक वायरस के फैलाने के लिए पूरी तरह से तब्लीगी जमात ही जिम्मेदार है। तथा तब्लीग का काम करने वालों पर कानूनी कार्रवाई की गई और उन्हें भी सलाखों के पीछे भेज दिया गया। यह एक बहुत ही संवेदनशील और गंभीर मुद्दा था। तब्लीगी से जुड़े लोगों को जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सम्मानपूर्वक रिहा कराने में भी विशेष भूमिका निभाई ।

जमीयत ने बेलगाम मीडिया पर पक्षपाती और पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया, जिसकी सुनवाई अभी जारी है। जमीयत उलमा-ए-हिंद के सदर मौलाना सय्यद अरशद मदनी ने सबसे पहले मुसलमानों से पहले से बेहतर (तब्लीगी कार्य जैसे गश्ती, सलाह) जारी रखने की साहसिक अपील की, जो इतिहास का हिस्सा है। अपील के शब्द इस प्रकार थे: उन्होंने आगे कहा कि यदि कोरोना का प्रकोप अपने सभी विनाशों के बावजूद राजनीति के आकाओं को अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने और चुनाव के प्रचार से नहीं रोक सकता है , तो अल्लाह की रजा पाने के लिए हमे भी अपने धार्मिक कार्ये से कोई नही रोक सकता है । यह उपदेश की प्रथा को रोकने के लिए एक मुसलमान के जीवन को कैसे प्रभावित कर सकता है? ”

वैश्विक महामारी की तबाही के कारण दैनिक जीवन ठप हो गया था, महानगरों में बेबस मजदूर भूखे मर रहे थे, चिलचिलाती धूप में पैदल चलने को मजबूर थे, उनके पास खाने या घर जाने के लिए पैसे नहीं थे. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इन असहाय और असहाय प्रवासी श्रमिकों के दर्द को महसूस किया और यथासंभव राहत प्रदान करने का प्रयास किया। दिल्ली, कर्नाटक, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, असम और जहां भी जमीयत की शाखाएं और इकाइयां हैं, वहां के लोगों ने जरूरतमंदों की मदद की l
समाज का दायरा बहुत व्यापक है, लेकिन यह विस्तार कभी भी इसके रास्ते में नहीं आता बाधा नही बनता है। इसकी सफलता का प्रभाव सामाजिक जीवन के सभी क्षेत्रों में देखा जा सकता है। शिक्षा समाज में एक सफल मानव जीवन की कुंजी है। जमीयत का वर्तमान नेतृत्व लगातार देश के धनी लोगों से शिक्षा के क्षेत्र में आगे आने और देश के युवाओं को निरक्षरता के दलदल से बाहर निकालने का आग्रह कर रहा है। जमीयत उलमा-ए-हिंद अपील कर रही है कि अपनी भूमिका निभाएं और बुनियादी शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक और तकनीकी शिक्षा के संस्थानों की स्थापना करें विभिन्न स्थानों पर धार्मिक शिक्षा।

राष्ट्र के शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए, जमीयत कई वर्षों से कमजोर और अक्षम छात्रों को उनके शैक्षिक भविष्य को उज्ज्वल करने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान कर रही है, जिसमें मुस्लिम और गैर-मुस्लिम छात्र भी शामिल हैं। आज जीवन के किसी भी क्षेत्र में नौकरी पाना पहले से कहीं अधिक कठिन हो गया है।देश के बच्चों को बच्चों की तरह न केवल प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेना चाहिए बल्कि देश और राष्ट्र की बेहतर तरीके से सेवा करने में सक्षम होना चाहिए। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस संबंध में भी सकारात्मक पहल की है।जिसके अच्छे परिणाम आने की पूरी उम्मीद भरोसा है l

लेख के अंत में, यदि जिस व्यक्ति के संरक्षण में उपर्युक्त मामलों को सफलतापूर्वक पूरा किया जा रहा है उस महान व्यक्ति का ज़िक्र ना किया तो शायद इतिहास के साथ न्याय नहीं होगा।यह कहने में कोई झिझक नही है कि यदि अध्यक्ष जमीयत उलमा-ए-हिन्द मौलाना सैयद अरशद मदनी साहब जैसे सक्रिय गतिशील और धार्मीक विद्वान, ऋषि, निडर, राजनीतिक रूप से जागरूक और व्यावहारिक बेख़ौफ़ देश व विदेश में अपनी अलग पहचान रखने वाले क़ायद की सरपरस्ती इस जमाअत को हासिल ना होती तो शायद 21 वीं सदी में कामयाबी का सफर कठिन हो जाता । ऐसे समय में जब मुस्लिम नेतृत्व संकट में है, मौलाना अरशद मदनी साहसपूर्वक देश और राष्ट्र के मुद्दों पर अपने विचार प्रस्तुत करते हैं। ओर मीडिया मिल्ली देश की वर्तमान स्थिति पर अपने बयानात जारी करते है एवं मुस्लिम नेतृत्व को भी नई राह एवम नया रास्ता दिखाते है l

यही कारण है कि मौलाना अरशद मदनी के नेतृत्व का आज देश के सभी वर्गों में सम्मान एवम मौलाना मदनी की क़यादत पर पूर्ण भरोसा भी है। उन्होंने हर मोर्चे पर अपना दृढ़ संकल्प और साहस दिखाया है और ताकतों को चुनौती दी है जो देश कि अखंडता, एकता, एकजुटता और एकजुटता के लिए खतरा है। ऐसे माहौल में बेझिझक कहा जा सकता है कि मौलाना मदनी मिल्लत के अमीरे कारवां के फ़र्ज़ को निभा रहे है l

Tags: #ArshadMadni#JamiatUlmaeHind#MahmoodMadniin the mirror of the present eraMazmoonThe glorious history of Jamiat Ulama-e-Hind
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