त्रिपुरा हिंसा, फेक न्यूज़ और भारत के मुसलमान
मुफ़्ती शादाब क़ासमी
हाल में ही त्रिपुरा पुलिस ने उन 102 सोशल मीडिया एकाउंटस को बैन किया जिनसे कथित तौर पर धार्मिक हिंसा भड़काने वाले फेक न्यूज़ के ट्वीट किए गए थे। साथ ही साथ त्रिपुरा पुलिस ने फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब के अधिकारियों को यह भी आदेशित किया कि वह उन एकाउंट्स का भी ब्यौरा दें जिनसे त्रिपुरा में हुई हिंसा के बारे में झूठे और मनगढंत पोस्टस किये गए थे। पिछले कुछ दिनों में ,त्रिपुरा पुलिस ने 58 ट्वीटर खातों, 31 फेसबुक खातों और दो यूट्यूब चैनलो को चलाने वालों के खिलाफ दर्जनों प्राथिमिकी भी दायर की है। इनसब के खिलाफ मुख्य आरोपी यह है कि ये एकाउंट्स साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील किन्तु अपुष्ट खबरें दिखा रहे थे जिनके वजह से साम्प्रदयिक दंगों में तीव्रता आयी।
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कुछ मीडिया हाउस ने त्रिपुरा के दो उत्तरी ज़िलों में 29 अक्टूबर से 30 अक्टूबर के बीच हुई हिंसा को हाल में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हुई हिंसा की प्रतिक्रिया के रूप में पेश किया। हालांकि की मुख्यधारा के समाचार पत्र जैसे टाइम्स ऑफ इंडिया ने त्रिपुरा के पुलिस महानिदेशक के बयानों का संदर्भ लेते हुए यह समाचार छापा कि वहां हिंसा के दौरान कोई भी मस्जिद नही जलाई गई और सोशल मीडिया में वायरल हुई फोटो और वीडियो न केवल गलत है बल्कि भारत से बाहर के स्थानों में हुई घटनाओ की हैं। त्रिपुरा पुलिस ये यह भी कहा कि इस बारे में अतिशयोक्तिपूर्ण और गलत खबरें सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही है जिनसे साम्प्रदायिक तनाव बकता है।
कई प्रमुख समाचार पत्रों ने यह माना कि त्रिपुरा के कुछ इलाकों में हिंसा की छुटपुट घटनाये जरूर हुई थी किन्तु सोशल मीडिया पर फेक और गलत सूचनाएं, चित्र, वीडियो प्रसारित होने से सारे मामले को मुस्लिम विरोधी करार दिया गया है। वास्तविकता में अधिकांश फोटो और वीडियो बांग्लादेश और पाकिस्तान की घटनाओं के थे।
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प्रश यह है कि क्या भारत के लोग, खासतौर पर भारत के मुसलमान को उन देशविरोधी और बंटवारा प्रेमी ताकतों के प्रति सजग रहने की आवश्यकता है जिन्होंने कथित तौर पर त्रिपुरा हिंसा के दौरान सोशल मीडिया पर गलत खबरें चला कर साम्प्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने के कोशिशे की। यदि इस तरह हुआ है तो यह समय की मांग है कि भारत का मुसलमान यह सुनिश्चित करे कि वह अपनी धार्मिक, सामाजिक छवि, अस्तित्व और धार्मिक इदारों, मस्जिदों को किसी भी फेक न्यूज़ का शिकार नही बनने देगा जिससे न केवल उसके धर्म बल्कि सामाजिक सौहार्द पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो।
इसमें कोई दो बात नही है कि भारत के मुसलमान, भारत के अस्तित्व का एक अमिट अंग है और भारत की प्रगति, एकीकरण और विकास के मार्ग के मील के पत्थर है जिन्होंने सदा की संवैधानिक मर्यादाओ में राह कर दुनिया के सामने के नई मिशाल पेश की है। किन्तु समय की माग यह भी है कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि नियमों को तोड़ने वालों से सख्ती से पेश आया जाए और उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाए, भले ही वो किसी मजहब के हो। इस मामले में सरकार के द्वारा कोई भी बर्ताव भारत के मुसलमानो को नाकाबिले बर्दाश्त होगा।