युवा व्यक्तियों का वह समूह जो प्राधिकार या शासकीय अपेक्षाओं के खिलाफ विद्रोह करता है, विशेष रूप से एक वैध समूह के भीतर से उसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाती है।
दरअसल यह शब्द तुर्क या ऑटोमन साम्राज्य से आया. वर्ष 1889 में वहां सैन्य कैडेटों व विश्वविद्यालय छात्रों ने सुधारों की मांग को लेकर एक आंदोलन शुरू किया जिसे सुल्तान अब्दुल हामिद द्वितीय की राजशाही के ख़िलाफ़ युवा तुर्क (यंग टर्क) क्रांति नाम दिया जाता है.
क्यों कहा गया चंद्रशेखर जी को युवा तुर्क…
ताशकंद में लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद कांग्रेस के पुराने नेताओं के समूह (जिन्हें ‘सिंडीकेट’ कहा जाता है) ने मोरारजी को किनारे कर इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाया था, मोरारजी उस सरकार में वित्तमंत्री बने। 1969 में मोरारजी ने संसद में कुछ व्यापारिक घरानों को फायदा पहुंचाने वाला एक बिल( MRTP एक्ट)प्रस्तुत किया। इंदिरा गांधी उस बिल के पक्ष में नही थी, लेकिन वह सिंडिकेट से दुश्मनी मोल लेने का साहस नही कर पा रही थी। परंतु, उनकी हार्दिक इच्छा थी कि कोई इस बिल का विरोध करे। चंद्रशेखर जी उस वक्त कांग्रेस में थे, उनके नेतृत्व में मोहन धारिया, कृष्णकांत आदि ने अपनी ही पार्टी के अपने ही सरकार के वित्त मंत्री के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इस पर मीडिया द्वारा और साथ ही कुछ प्रबुद्ध लोगों के द्वारा चंद्रशेखर जी और उनके समूह को ‘युवा तुर्क’ कहा जाने लगा। तभी से उनके नाम के साथ यह विशेषण जुड़ गया।
ये भी पढ़ें : मोदी मंत्रिमंडल विस्तार : ज्योतिरादित्य सिंधिया, सर्बानंद सोनोवाल, मीनाक्षी लेखी सहित 43 नेता बनेंगे मंत्री
लेकिन इस विशेषण के सार्थकता या इम्तिहान की कहानी कुछ समय बाद 1971 के बाद से शुरू होती है।
1971 का चुनाव ‘इंदिरा हटाओ’ और ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के द्वंद को लेकर लड़ा गया। इंदिरा के विरोधियों ने ‘इंदिरा हटाओ’ का नारा दिया बदले में इंदिरा जी के द्वारा इंद्रकुमार गुजराल की सलाह पर ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया गया। युवा तुर्को की टीम गरीबी हटाने के नेक नियत के साथ इंदिरा जी को जिताने में लग गयी। चंद्रशेखर जी ने लगातार कई जन सभाएं की, बहुत परिश्रम हुआ। युवा तुर्को का साथ और नारे की प्रभावशीलता से इंदिरा जी पुनः प्रधानमंत्री बनी।
1971 के चुनावों में विजय, पाकिस्तान युद्ध में विजय आदि के बाद अब इंदिरा गांधी सत्ता/शक्ति की धुरी हो गयी थी। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष D. K बरुआ की कृपा से ‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’ का नारा फिजाओं में तैरने लगा था। चौतरफा इंदिरा का गुणगान शुरू हो गया था। तत्कालीन नेता इंदिरा जी के कृपादृष्टि के लिए लालायित थे।
ऐसे समय मे चंद्रशेखर जी इंदिरा जी से मिलते हैं और उनसे वादे का जिक्र करते हुए कहते है कि – “अब हमें वो वादे पूरे करने चाहिए जो हमने जनता से किया है।’
इंदिरा जी ने कहा- आप क्या समझते हैं कि गरीबी 24 घंटे में खत्म हो जाएगी?
चंद्रशेखर जी ने उत्तर दिया- यह मैं भी समझता हूं कि गरीबी को खत्म करने में एक लम्बा वक्त लगेगा लेकिन अमीरी के दिखावे को तो 24 घंटे में खत्म किया जा सकता है।
बहरहाल,इंदिरा जी ने वादा पूरा न किया उल्टे वह पूंजीपतियों के एक संगठन के सामने एक भाषण दे आयी जो उन नीतियों के बिल्कुल उलट था जिसका वादा वो या युवा तुर्को ने जनता से किया था।
ये भी पढ़ें : इजराइल के पक्ष में बोलने वालों की हुई बेइज़्जती नेतन्याहू ने 25 देशों को कहा शुक्रिया-भारत का नाम नहीं लिया
मैं मानता हूँ कि यही वह वक्त था जब ‘युवा तुर्क’ शब्द ने वास्तव में अपनी सार्थकता ग्रहण की। चंद्रशेखर जी (जो उस समय कांग्रेस के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के महासचिव थे) ने प्राधिकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया। उन्होंने फिर एक बार अपनी ही सरकार के सत्ता खिलाफ बोला।
चंद्रशेखर जी ने अपने पत्र ‘यंग इंडिया’ में (जिसे उन्होंने 1969 में शुरू किया था) एक संपादकीय लिखा जिसका सार यह था कि – जनता के विश्वास से खेला नही जाना चाहिए। यदि मौजूद सरकार अपने वादे को पूरा नही करती है, तो जनता के पास यह अख्तियार है कि वह सरकार से जवाब मांगे।
कहना न होगा कि जनता ने सरकार से जवाब मांगा लेकिन यह हुआ 3 साल बाद, 1974 में और जेपी के नेतृत्व में।