लगता है कांग्रेस के राजनीतिक सलाहकारों के दिमाग ने काम कर दिया है । तभी तो पंजाब कांग्रेस कमेटी की कमान बागी नेता नवजोतसिंह सिद्धू को सौंपी गई है । इससे पंजाब कांग्रेस में सुलह के बजाय आग और ज्यादा भड़कने की संभावनाओं से इनकार नही किया जा सकता है ।
सबसे पहला सवाल यह उठता है कि कांग्रेस में शीर्ष स्तर पर निर्णय लेने का अधिकार आखिर है किसको ? सोनिया, प्रियंका अथवा राहुल को । सब अपनी मनमानी कर पार्टी का भट्टा बैठा रहे है । सोनिया अपने निवास में कैद है तो राहुल अपनी उटपटांग हरकतों की वजह से आये दिन पार्टी की देशव्यापी फजीहत कराने पर आमादा है ।
आजकल प्रियंका भी हर मामलों में दखल देने लगी है । अब यह जाहिर होगया है कि कांग्रेस पार्टी पूरी तरह से इन तीन हाथों में सिमटकर रह गई है । वैसे तो कांग्रेस पहले से नेहरू या गांधी परिवार की मिल्कियत थी । उस वक्त अधिकांश निर्णय पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की सलाह पर लिए जाते थे । आज सभी कमेटियां गौण हो चुकी है और मां, बेटी और पुत्र पार्टी को हांकने की कोशिश कर रहे है ।
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वैसे तो कांग्रेस की पूरे देश मे लुटिया डूब चुकी है । पंजाब, राजस्थान, एमपी तथा छतीसगढ़ में कांग्रेस नही जीती, बल्कि बीजेपी हारी है । कोई कितना भी दावे करे कि उसके नेतृत्व में पार्टी ने सौ सीटों पर परचम फहराया है तो यह उनका सबसे बड़ा मुगालता होगा । जैसे सचिन के बारे में यह राग अलापा जाता है कि कांग्रेस सत्ता हासिल करने में कामयाब हुई । हकीकत से किसी को मुंह नही मोड़ना चाहिए । महारानी की तानाशाही और ललित मोदी जैसे लोगो की दादागिरी के फल का मजा कांग्रेस ले रही है ।
यदि सचिन पायलट का इतना ही करिश्मा था तो लोकसभा चुनावों में पार्टी को शर्मनाक हार का सामना क्यों करना पड़ा ? सभी 25 सीटों पर भाजपा काबिज होगई और कांग्रेस प्रत्याशियों को लाखों वोट से शिकस्त खानी पड़ी । विधानसभा चुनाव के दौरान भी कमान पायलट के हाथ मे थी तो लोकसभा चुनावों में भी वे ही पार्टी के कप्तान थे । फिर दोनों चुनावों में इतनी हेरफेर क्यों थी ?
हकीकत यह है कि पायलट का कोई करिश्मा नही था । स्वयं महारानी ने कांग्रेस को सौ सीटें दी । महारानी के प्रति जनाक्रोश को देखते हुए कांग्रेस द्वारा 150 सीट जीतने का अनुमान था । अगर बीजेपी थोड़ा और संभल जाती तो आज प्रदेश में कांग्रेस के बजाय बीजेपी की सरकार होती । कांग्रेस की इतनी सीट आना सुनिश्चित था । प्रदेश की जनता महारानी को सबक सिखाने पर आमादा थे । मोदी तुझसे बैर नही, वसुंधरा तेरी खैर नही, नारा इसलिए गड़ा गया था ।
बात चल रही थी सोनिया के कुटुम्ब की । प्रियंका यह साबित करना चाहती है कि उनमें राजनीतिक सूझबूझ है और वे निर्णय लेने की क्षमता भी रखती है । तीनो कुटुम्बवासियो ने बगावती सचिन पायलट को गले लगाकर अपनी मूर्खता का परिचय दिया । उसका परिणाम सामने है । प्रदेश का कामकाज ठप्प है और मुखिया गहलोत का ज्यादातर समय अपनी कुर्सी बचाने में व्यतीत होता है । कभी होटल मेरियट भागना पड़ता है तो कभी जैसलमेर में विधायकों की करनी पड़ती है बाड़ेबन्दी ।
जिस तरह गहलोत राजनीति के जादूगर है, उसी तरह मसखरों के उस्ताद नवजोतसिंह सिद्धू भी पूरे नौटंकीबाज है । अपनी नौटंकी के जाल में ऐसा फंसाया कि अमरिंदर सिंह जैसे राजनीति के माहिर को चारों खाने चित होना पड़ा । यह सबकुछ प्रियंका और राहुल की बचकाना हरकतों का दुष्परिणाम है ।
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इस फैसले के बाद पंजाब में तो बवंडर उठना स्वाभाविक है । इसकी आग राजस्थान और छतीसगढ़ तक भी जा सकती है । सिद्धू की इस ताजपोशी से आगामी विधानसभा चुनावों में भयंकर परिणाम कांग्रेस को देखना पड़ सकता है । इसके अतिरिक्त चुनाव से पहले भी शायद नया ड्रामा देखने को मिले ।
सिद्धू को कांग्रेस की कमान सौपने के निर्णय से कैप्टन अमरिंदर सिंह बेहद खफा है । सिद्धू और कैप्टन में दिल से कोई सुलह होगी, इसकी संभावना दूर दूर तक नही दिखाई देती है । ऐसा भरत मिलाप होगा, जैसा एक साल पहले गहलोत और पायलट का हुआ था । गले मिलने के बाद भी दोनों एक दूसरे के कट्टर दुश्मन है । पायलट और उनके समर्थकों को कुर्सी चाहिए । जबकि गहलोत कुर्सी का विभाजन करने को फिलहाल कतई राजी नही है । नतीजतन राजस्थान में रोज नए नए ड्रामे देखने को मिल रहे है ।
पंजाब में हुए फैसले के बाद राजस्थान के असंतुष्टों में आशा की एक नई किरण जागी है । ये बागी नेता मानकर चल रहे है कि कुर्सी अब उनके बिल्कुल नजदीक है । बागी नेता खामोश तो पहले भी नही थे । लेकिन पंजाब एपिसोड के बाद ये ज्यादा सक्रिय होकर उधम मचाएंगे । खानदानी कांग्रेस के तीनों नेताओं को एक आध महीने पंजाब पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए । उसके बाद ही कोई निर्णय हो तो बेहतर होगा । जल्दबाजी में लिया गया निर्णय कांग्रेस की रही सही भी भट्टी बुझा सकता है ।