नई दिल्ली – केरल में तबाही मचाती हुई आई बाढ़ से हुई त्रासदी के चलते राहत और पुनर्वास का कार्य प्रगति पर है. ऐसे में मलप्पुरम जिले की एक मस्जिद में लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक हिंदू परिवारों को आसरा दिया गया है. इन सभी पीड़ित लोगों के रहने, खाने-पीने तथा स्वच्छता का पूरा जिम्मा कई मुस्लिम लोग उठा रहे हैं.यहां तक कि बाढ़ से छतिग्रस्त हुए दो हिंदू धार्मिक स्थलों (मंदिरों) की साफ-सफाई के लिए भी मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग पूरी तरह से कार्य मे लगे हुए हैं।
उत्तर मलप्पुरम के अकमपदम में मौज़ूद ये जुमा मस्जिद बाढ़ पीड़ितों के लिए राहत शिविर बन गई है. यहां 17 हिंदू परिवारों में बच्चे, बूढ़े,औरतों के लिए सभी जरूरी व्यवस्था की गई है. खाने में पौष्टिक आहार समेत इनकी सभी जरूरतों को मुस्लिम समुदाय के लोग ही व्यवस्था कर रहे हैं.
छलियार गांव की यह मस्जिद लगभग 78 लोगों की जीवन बसर की जरूरतों का पूरा खर्च उठा रही है.
ग्राम प्रधान पी टी उस्मान ने इस बारे में पूरी जानकारी दी है.प्रधान ने बताया कि 8 अगस्त से रिफ्यूजी कैम्प बनी इस मस्जिद में बाढ़ प्रभावितों का पूरा ख्याल रखा जा रहा है. कुछ लोगों को बाढ़ नियंत्रित होने के बाद उनके घर सही होने के चलते भेज भी दिया गया है, उस्मान ने बताया कि बकरीद को देखते हुए यहां मुस्लिम शरणार्थियों के लिए भी पूरी व्यवस्था की गई.
वहीं मलप्पुरम जिले के वायनाड में बाढ़ से नुक़सान में तब्दील हुई मंदिरों की देखरेख के लिए यही मुस्लिम लोग जुटे हुए हैं,और चारो तरफ फ़ैली नफ़रतों को मुँह तोड़ जवाब दिया जा रहा है, और एकता की मिसाल को क़ायम किया जा रहा है,यानी प्रदेश में बाढ़ प्रभावित हर समुदाय के लोगों के लिए यह मस्जिद और यहां मुस्लिम समुदाय के यह लोग मददगार साबित हो रहे हैं.सोशल मीडिया पर भी इनके द्वारा किए जा रहे राहत-बचाव के काम की तस्वीरें वायरल हो रही हैं. बता दें कि प्रदेश में विनाशकारी बाढ़ से चार सो से ज्यादा लोग मारे गए हैं. इस बाढ़ से कुल 3.91 लाख परिवारों के 14.50 लाख लोगों को राज्य के 3,879 राहत शिविरों में रखा गया है.
केरल में इसी तरह की कई तस्वीरें सामने आई है, कही मुस्लिम मंदिरों में आसरा लिए हुए हैं तो कही हिन्दू मस्जिदों में बाढ़ के बाद अपना जीवन बसर कर रहे हैं, कही ग़ैर मुस्लिम मदरसों में भी अपना जीवन गुजार रहे है, ऐसे में मुस्लिम टुडे की ज़ानिब से सभी पाठकों को शायर नवाज़ देवबंदी के एक शेर के साथ जीवन बसर करने की सलाह देता है, जिसमे शायर ने लिखा है कि:
कब तक लड़ेंगे, धर्म के जाति के नाम पर,
आओ चलो प्यार के रिश्तों पे ध्यान दे,
दो दिन की ज़िंदगी के लिए कैसी नफ़रतें,
अब तुम भी कीर्तन करो और हम भी अज़ान दे।
यानी शायर ने इस शेर में समझते हुए कहा कि ज़िन्दगी दो दिन की उसमे नफ़रतें ना करके मोहब्बत करो, हिन्दू कीर्तन करे और मुस्लिम अज़ान दे।